UTTARAKHAND
जिला प्रशासन ही क्यों, पैरवी करने वाले अपर मुख्य सचिव पर क्यों न हो कार्रवाई
उत्तराखंड के वरिष्ठ नौकरशाह ने अपने को बचाने के लिए सारा दोष देहरादून जिला प्रशासन के सिर पर मढ़ने का खेल शुरू कर दिया
क्या पैरवी करने से पहले चमोली और रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी से जानकारी मांगी थी कि विधायक को बदरीनाथ धाम और केदारनाथ धाम भेजा जा सकता है या नहीं
अपर मुख्य सचिव ने जिला प्रशासन को तीन गाड़ियों में 11 लोगों की यात्रा की परमिशन देने के पैरवी क्यों की
यूपी के विधायक त्रिपाठी क्या उत्तराखंड राज्य के लिए इतने महत्वपूर्ण हो गए कि उनकी यात्रा का कार्यक्रम तय करने से लेकर परमिशन की व्यवस्था अपर मुख्य सचिव के स्तर से हुई
उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव के संज्ञान में क्या यह तथ्य नहीं था कि वर्तमान में बदरीनाथ धाम के कपाट नहीं खुले हैं
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
आरटीआई एक्टिविस्ट पत्र जारी करने वाले के खिलाफ की कार्रवाई की मांग
आरटीआई एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश व देहरादून के अपर जिलाधिकारी पर कार्रवाई के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा है।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से ही उत्तरप्रदेश के विधायक और उनके साथियों के नाम से पास जारी किया गया था।
यह पत्र उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के आदेश पर देहरादून के अपर जिलाधिकारी रामजी शरण के हस्ताक्षर से जारी हुए थे।
देहरादून। उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी की उत्तराखंड की सैर की चर्चा लखनऊ और दिल्ली तक पहुंच गई। विधायक त्रिपाठी और उनके साथियों को सैर सपाटे की अनुमति की पैरवी करने वाले उत्तराखंड के वरिष्ठ नौकरशाह ने अब अपने को बचाने के लिए सारा दोष देहरादून जिला प्रशासन के सिर पर मढ़ने का खेल शुरू कर दिया। उन्होंने किसी चैनल को बयान में कहा कि देहरादून जिला प्रशासन को पूरी जांच के बाद ही अनुमति देनी चाहिए थी।
जिला प्रशासन का क्या दोष है या नहीं, यह बात तो जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन पैरवी करने वाले इन चर्चित नौकरशाह के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए, यह भी सवाल है। यह मामला सोशल मीडिया में खूब छाया हुआ है ।
कोरोना संक्रमण की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन घोषित है। केंद्र सरकार की गाइड लाइन का पालन करना हर व्यक्ति करने लिए अत्यंत आवश्यक है और आम आदमी उसका पालन भी कर रहा है। वहीं केंद्र सरकार के तमाम विभाग और वरिष्ठ अधिकारी समय-समय पर देश की जनता के लिए गाइड लाइन भी राज्य सरकारों इ मार्फ़त और सोशल मीडिया के द्वारा दे रहे हैं. ऐसे में अब यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या उत्तराखंड के वरिष्ठ नौकरशाह अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को नहीं मालूम कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइड लाइन क्या हैं या जानते हुए भी उनके लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन कोई मायने नहीं रखती या वे उसे जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर कर रहे हैं। इस स्वीकृति से तो यह लगभग साफ़ सा हो गया है कि यदि उनके लिए गाइड लाइन के कोई मायने होते तो देहरादून के जिलाधिकारी को यूपी के विधायक अमनमणि त्रिपाठी और उनके दस साथियों को उत्तराखंड की सैर करने की परमिशन दिलाने की पैरवी ही नहीं करते।
पैरवी में उत्तराखंड में यात्रा करने का उद्देश्य बदरीनाध धाम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिताजी का पितृ कार्य बताया गया है। उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव के संज्ञान में क्या यह तथ्य नहीं था कि वर्तमान में बदरीनाथ धाम के कपाट नहीं खुले हैं। ऐसे में वहां ब्रह्म कपाली में भी पितृ कार्य नहीं हो सकते। वैसे भी सनातन धर्म के अनुसार पितृ कार्य केवल स्वजन ही कर सकते हैं।
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सवाल तो यह भी उठता है कि क्या पैरवी करने से पहले अपर मुख्य सचिव ने चमोली और रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी से यह जानकारी मांगी थी कि वर्तमान हालात में यूपी से आने वाले विधायक और उनके साथियों को बदरीनाथ धाम और केदारनाथ धाम भेजा जा सकता है या नहीं।
पैरवी में विधायक के साथियों के नाम तथा तीन गाड़ियों के नंबर उपलब्ध कराए हैं। क्या अपर मुख्य सचिव के संज्ञान में केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइड लाइन का यह तथ्य नहीं था कि चार पहिया वाहन में ड्राइवर और दो अन्य लोगों के ही परिवहन करने की अनुमति है। किसी राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह होने के नाते उनसे यह उम्मीद तो रखी ही जा सकती है कि उनको गाइड लाइन के इस तथ्य की जानकारी होगी, तो फिर तीन गाड़ियों में 11 लोगों के परिवहन की पैरवी किस आधार पर कर दी गई।
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वहीं देहरादून जिला प्रशासन ने अपने अनुमति पत्र में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार पांच से अधिक लोगों को आवागमन की अनुमति नहीं दी जा सकती। जब यह नियम है तो अपर मुख्य सचिव ने जिला प्रशासन को तीन गाड़ियों में 11 लोगों की यात्रा की परमिशन देने के पैरवी क्यों की।
एक और अहम बात तो यह है कि यूपी के विधायक अमन मणि त्रिपाठी क्या उत्तराखंड राज्य के लिए इतने महत्वपूर्ण हो गए कि उनकी यात्रा का कार्यक्रम तय करने से लेकर परमिशन दिलाने की व्यवस्था अपर मुख्य सचिव को करनी पड़ गई। आखिर किस प्रोटोकाल के तहत विधायक त्रिपाठी और उनके साथियों को यह सुविधा दी गई ?
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वह भी ऐसे में जब उत्तराखंड में मुख्यमंत्री लगातार अधिकारियों से कह रहे हैं कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए केंद्र सरकार की गाइड लाइन का शत-प्रतिशत पालन किया जाए। राज्य में बाहर से आने वाले व्यक्तियों का चेकअप कराया जाए तथा उनको अनिवार्य रूप से 14 दिन के क्वारान्टाइन में रखा जाए। अपर मुख्य सचिव ने उत्तराखंड में इस सैर सपाटे को टालने का प्रयास करने की बजाय अनुमति दिलाने की पैरवी कर दी।
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चर्चा है कि मुख्यमंत्री की अपील का अपर मुख्य सचिव पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि उनको यूपी के विधायक से अपने संबंधों को निभाना था, इसके लिए भले ही उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए बनाई गई सुरक्षा रेखा को ही क्यों न भेदना पड़ जाए। कोरोना संक्रमण की आपात स्थिति में सभी नियमों के उल्लंघन के लिए दबाव बनाने, पैरवी करने वाले वरिष्ठ नौकरशाह पर कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। वह भी तब जब महाराष्ट्र सरकार ने भी अपने एक ऐसे अधिकारी को कोरोना संक्रमण काल के दौरान उनकी कार्यप्रणाली से क्षुब्ध होते हुए उन्हें लम्बी छुट्टी पर भेजा दिया है। तो यह कार्रवाही उत्तराखंड में क्यों नहीं हो सकती ?