पहले कुर्सी पाने के लिए टोटके, अब मिली कुर्सी तो बैठने के लिए टोटके
देहरादून : कुर्सी की लड़ाई में यहाँ कुर्सी के लिए ही टोटके शुरू हो गए हैं । त्रिवेंद्र सरकार के दो मंत्री ऐसे हैं, जो कि कुर्सी पाकर भी कुर्सी से दूर हैं। या यूँ कहें जो कुर्सियां इनको मिली हैं वे इसपर नहीं बैठ रहे हैं। यहां बात हो रही है कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल और राज्य मंत्री डा. धन सिंह रावत की। दोनों नेताओं ने विधानसभा के अपने कक्ष से काम तो शुरू कर दिया है, लेकिन कुर्सी पर नहीं बैठ रहे हैं। दोनों का मानना है कि नवरात्र के शुभ दिनों में यदि वे कुर्सी पर आसीन होते हैं, तो बेहतर रिजल्ट दे पाएंगे।
त्रिवेंद्र सरकार में नौ मंत्री बनाए गए हैं। इनमें से सात कैबिनेट और दो स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री हैं। सुबोध उनियाल नरेंद्रनगर से जीतकर कृषि मंत्री बने हैं, तो डा. धन सिंह रावत श्रीनगर से जीतकर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री बने हैं। दोनों मंत्री अपने कार्यालय कक्ष में लगातार बैठ रहे हैं, लेकिन मंत्री की उस कुर्सी से दूर हैं, जो वहां पर रखी गई हैं।
शुक्रवार को सुबोध उनियाल और डा. धन सिंह रावत ने दूसरी कुर्सी पर बैठकर लोगों की शुभकामनाएं लीं। बातचीत की और अपने विभागों की प्राथमिकता साझा की। सुबोध उनियाल ने स्वीकार किया कि वह नवरात्र की वजह से अभी अपनी कुर्सी पर नहीं बैठ रहे हैं। हालांकि डा. धन सिंह रावत ने इस संबंध में अपना कोई दृष्टिकोण सामने नहीं रखा है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, वे भी नवरात्र से ही कुर्सी पर बैठना शुरू करेंगे।
…इसलिए नहीं लिया सुबोध ने बड़ा कमरा
कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल को पूर्व शहरी विकास मंत्री प्रीतम सिंह पंवार का कक्ष आवंटित किया गया है, जो कि अपेक्षाकृत अन्य कक्षों के छोटा है। इसके सामने वाला पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी का कक्ष अभी तक किसी को आवंटित नहीं किया गया है। सुबोध उनियाल के सामने इस कक्ष का भी विकल्प था, लेकिन उन्होंने छोटा कमरा लेना ज्यादा मुनासिब समझा। सूत्रों के अनुसार, सुबोध उनियाल ने अपने कक्ष के पक्ष में वास्तु के हिसाब से कई छोटी-छोटी चीजें भी महसूस की हैं। इसीलिए उन्होंने इसके लिए सहमति प्रकट की।
नैथानी ने तो बाहर डलवा दिए थे कुर्सी-मेज
एनडी तिवारी सरकार में 2002 में सहकारिता मंत्री बने मंत्री प्रसाद नैथानी ने तो अपने कक्ष से कुर्सी मेज ही बाहर डलवा दिए थे। उन्होंने अपनी ओर सबका ध्यान खींचने के लिए गद्दे डालकर वहीं से कामकाज निबटाना शुरू किया था। हाल ये रहा था कि जो भी मंत्री के कक्ष में उस वक्त आता था, उसे जूते-चप्पल बाहर ही उतारने पड़ते थे। हालांकि बहुत जल्द ये व्यवस्था ध्वस्त हो गई और मंत्री मेज-कुर्सी पर आ गए।