किसान अपनी उपज के उचित मूल्य की गारंटी चाहते हैं। इसमें अवैध, असंवैधानिक क्या है ?
किसानों को उनकी मेहनत का न्यूनतम मूल्य देने में उसे दिक्कत क्या है ?
रमेश पहाड़ी
सवा 2 महीने से न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए आंदोलन कर रहे किसानों के साथ मोदी सरकार न्याय नहीं कर पा रही है। इसके उलट सरकार के अंध समर्थकों ने इस जानलेवा ठंड में जान की परवाह न कर अपनी माँग पर अड़े आंदोलनकारियों को टुकड़ों में बाँटकर तोड़ने-बिखरने के लिए प्रचार-तन्त्र को जिस निम्न स्तर तक उतार दिया है, वह गम्भीर सोचनीय विषय बन गया है। किसान अपनी उपज के उचित मूल्य की गारंटी चाहते हैं। इसमें अवैध, असंवैधानिक क्या है? सरकार जब मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की पक्षधर है और उसके लिए अनेक सुधारात्मक कार्य कर रही है तो किसानों को उनकी मेहनत का न्यूनतम मूल्य देने में उसे दिक्कत क्या है? उसका फार्मूला भी कृषि विशेषज्ञों ने तय किया है और सरकार उसको अस्वीकार भी नहीं करती। स्वयं भी पिछले 5 वर्षों से किसान की आमदनी दुगनी करने की घोषणाएं करते थक नहीं रही है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य और अनिवार्य बीमा-सुरक्षा जैसे कानून बनाकर उनकी न्यूनतम आमदनी व जीवन की सुरक्षा की व्यवस्था करने से बचना क्यों चाहती है?
देश की एक-एक इंच जमीन को उर्वरा बनाकर, उसकी कोख से समृद्धि की फसल उगा कर देश को सर्वाधिक रोजगार देने वाले कृषि-क्षेत्र को आजादी के बाद से ही उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा है, इस सत्य झुठलाने की कोशिशें भी सही नहीं हैं लेकिन वर्तमान सरकार एक ओर किसानों की आय बढ़ाने की बात करे और दूसरी तरफ उनकी न्यायसंगत माँग मानने की बजाय, उनको लांछित करे, सड़कों-चौराहों पर महीनों आन्दोलन करने, मरते रहने को छोड़ दे और ऊपर से अनर्गल प्रलाप के द्वारा ध्यान हटाने, उन्हें टुकड़ों में बाँटने, अराजकता का वातावरण बनाने के अवसर प्रदान करे, यह किस प्रकार के राष्ट्रवाद की फसल उगाने की कोशिश हो रही है?
आँकड़ों के और प्रमाणों के द्वंद्व में उलझने की बजाय सत्ता के शीर्ष नेतृत्व की काल्पनिक तुलना की जाय तो इस स्थिति में नेहरू जी या अटल जी क्या करते ? निश्चय ही वे स्वयं चल कर आंदोलनकारी किसानों के बीच जाते या उन्हें अपने पास बुलाते, उन्हें समझाते, उनकी समझते और उन्हें सम्मान के साथ घरों को वापस भेजते। यह देश दिमाग से ज्यादा दिल से चलता है, ताकत से ज्यादा समन्वय से चलता है, भौतिक समृद्धि से ज्यादा आत्मिक समृद्धि से चलता है। भारतीयता तो यही है। इसे अमेरिका या चीन बनाने की सोच पूरी तरह गलत है। समाज को टुकड़ों में बाँटो और मंत्र वसुधैव कुटुम्बकम् के जपो, नाम राम का हो, सोच रावण की, यह कैसा भारत होगा? सब सोचें।