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एनजीटी के आदेश को पलट सुप्रीम कोर्ट ने दी चार धाम हाईवे परियोजना को हरी झंडी

  • उच्चाधिकार प्राप्त समिति को चार महीने में रिपोर्ट देने का आदेश 

  • पर्यावरण व वन मंत्रालय को 22 अगस्त तक समिति गठन के निर्देश

  • समिति करे विचार कि चार धाम परियोजना के क्या हैं प्रभाव 

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के चार पवित्र धार्मिक शहरों को हर मौसम में जोड़ने वाली 900 किलोमीटर लंबी महत्वाकांक्षी चार धाम हाईवे परियोजना को मंजूरी दे दी। कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के आदेश में बदलाव करते हुए पर्यावरण पहलुओं पर विचार के लिए एक नई उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करने को कहा है। 

जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण व वन मंत्रालय को 22 अगस्त तक इस समिति का गठन करने का निर्देश दिया है। इससे पहले एनजीटी ने इस परियोजना पर निगरानी के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक पूर्व जज की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।

गैर सरकारी संगठन सिटीजंस फॉर ग्रीन दून ने एनजीटी के पिछले साल 26 सितंबर के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। एनजीटी ने व्यापक जनहित को देखते हुए इस परियोजना को मंजूरी दी थी। एनजीओ का दावा है कि इस परियोजना से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी।  

पीठ ने उच्चाधिकार प्राप्त समिति में देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक प्रतिनिधि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के एक प्रतिनिधि, अहमदाबाद स्थित केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के एक प्रतिनिधि, सीमा सड़क मामलों से संबंधित रक्षा मंत्रालय के एक प्रतिनिधित्व को शामिल करने को कहा है। पीठ ने समिति को चार महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा है।

समिति इस पर विचार करेगी कि चार धाम परियोजना से क्या प्रभाव पड़ सकता है। समिति तीन-तीन महीने पर बैठक करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजना के निर्माण में पर्यावरण मानकों का ध्यान रखा जा रहा है या नहीं। साथ ही बैठक में आगे की रणनीति भी तैयार की जाएगी। 

समिति इस बात पर भी गौर करेगी कि इस परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर कम से कम प्रतिकूल असर पड़े। साथ ही समिति परियोजना के निर्माण से निकलने वाले कचड़े के सुरक्षित निस्तारण के लिए जगह की पहचान करेगी। साथ ही इसकी वजह से पेड़, वन क्षेत्र, जन स्रोतों के नुकसान का भी आकलन करेगी।

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