हाई कोर्ट में उमेश की सुरक्षा पर उठा सवाल, शासन से लेकर नेताओं तक मच रहा बवाल
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The question raised on the security of Umesh in the High Court, there was a ruckus from the government to the leaders.
विवादित पत्रकार और खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार वो नाम है जो हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। हाल ही में उमेश कुमार को मिली सुरक्षा को चुनौती देते हुए नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल की गई जिसमें विधायक को मिली सुरक्षा पर सवाल उठाए गए हैं। हरिद्वार से याचिका करने वाले भगत सिंह ने हाई कोर्ट के सामने दाख़िल याचिका में कहा कि उमेश कुमार जैसे आपराधिक इतिहास व प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदेश सरकार द्वारा आख़िर क्यों दी गई है? आमतौर पर विधायकों को एक सुरक्षा कर्मी मिलता है
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इसके अलावा अगर कोई अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी किसी व्यक्ति विशेष को उपलब्ध होता है तो वह निर्भर करता है संबंधित व्यक्ति के ऊपर किस लेवल की थ्रेट या फिर ख़तरा है जो सुनिश्चित करना पुलिस विभाग व एल.आई.यू यानी लोकल इंटेलिजेंस यूनिट का काम है। LIU की रिपोर्ट के बाद पुलिस द्वारा शासन को रिपोर्ट सौंपी जाती है और उसके बाद ही व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान है। लेकिन उमेश कुमार के मामले में याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए RTI से प्राप्त दस्तावेजों को कोर्ट को उपलब्ध कराकर यह बताया गया कि इस मामले में सभी मापदंड और प्रक्रिया ताक पर रखकर उमेश कुमार को सुरक्षा मुहैया कराई गई।
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उमेश कुमार के ऊपर किसी प्रकार का कोई ख़तरा एल.आई.यू द्वारा नहीं बताया गया है।यहाँ तक कि अतिरिक्त सुरक्षा के लिए उमेश कुमार द्वारा दिए गए चिट्ठी पर जाँच करने के बाद पुलिस द्वारा शासन को यह स्पष्ट रूप से रिपोर्ट सौंप दी गई कि उमेश कुमार को किसी प्रकार का कोई भी जान माल का भय नहीं है। बावजूद इसके उमेश कुमार को वाय केटेगरी की सुरक्षा और साथ में पुलिस एस्कॉर्ट की सुविधा भी प्रदान की गई है और इसके साथ ही उसकी पत्नी सोनिया शर्मा को भी दो पुलिसकर्मी (असला समेत ) प्रदान किए गए हैं। याचिकाकर्ता के वक़ील ने कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की दलील देते हुए बताया कि जिस व्यक्ति के ऊपर 19 से भी ज़्यादा आपराधिक मामले चल रहे हों जिनमें बलात्कार जैसा जगन्या अपराध शामिल हो ऐसे व्यक्ति को भला सरकार इतनी बड़ी सुरक्षा कैसे प्रदान कर सकती है?
पहले से ही सुरक्षा का शौक़ीन है उमेश…
उमेश कुमार जिस वक़्त समाचार प्लस का CEO था, उस वक़्त भी उमेश कुमार अपनी हाई फ़ाई सिक्योरिटी के लीए चर्चा में रहता था।आपको बता दें कि उस दौरान उमेश कुमार के पास सेंटर की वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा थी, इसके अलावा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से भी सुरक्षा थी। उस दौरान उमेश कुमार पाँच से छह गाड़ियों के क़ाफ़िले में चलता था और अपने भोंकाल से नेताओं से लेकर अधिकारी प्रॉपर्टी डीलर आम जनमानस सभी को विधिवत चमकता,धमकाता और अपने काम निकलवाता था। (इस हरकत से संबंधित राजपुर थाने में एक प्लॉट में जाकर अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ एक व्यक्ति को धमकाने व उसकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का मामला भी दर्ज है।)
हालाँकि उमेश यह जलवा कुछ सालों में ख़त्म हो गया जब उसे उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने ब्लैकमेलिंग के आरोपों में सलाखों के पीछे डाल दिया। इसके बाद केंद्र और सरकार ने इसकी सुरक्षा वापस ले ली। राजनीति में आने से पहले कुछ दिन उमेश कुमार ने भाड़े के सफारी सूट व वाकी टाँकी वाले बाउंसरों से और छुटभैये बदमाशों को अपने क़ाफ़िले में रखकर काम चलाया। फिर उमेश की रंगबाजी में चार चाँद लगाने के लिए कुछ अफ़सर मेहरबान हुए।
(उमेश पर मेहरबान कौन??)
एक वरिष्ठ चर्चित IPS जो शासन में विशेष जगह व पद पाने के बाद मुख्यमंत्री के बेहद क़रीब हुए उनके रहमोकरम पर उमेश की पत्नी सोनिया शर्मा को दो गनर दिलवाए गए। इन दो गनर को साथ लेकर उमेश हरिद्वार के खानपुर क्षेत्र में अपनी हवाबाज़ी में लग गया। खानपुर में अपने फ़र्ज़ी विवाद व ख़तरा दिखाकर इसने सरकार को कई चिट्ठियां लिखीं इन चिट्ठियों में इन साहब ने बताया कि साहब मेरी जान को ख़तरा है। मुख्यमंत्री के बेहद नज़दीक विशेष पद प्राप्त IPS अधिकारी की दोस्ती और मेहरबानी ने उमेश बाबू को भी सुरक्षा प्रदान करवा दी। इसके बाद उमेश कुमार खानपुर से निर्दलीय विधायक बन गए उसके बाद तो जैसे उमेश बाबू भारी भरकम सुरक्षा के प्रबल दावेदार बन गए। लेकिन जनता के पैसों से चलने वाला पुलिस अमले का अगर बेजा इस्तेमाल होगा तो जनता सवाल पूछेगी? मान लीजिए सरकार में बैठे कुछ अधिकारी उमेश कुमार की मेहरबानियों से दबे हो या फिर उसके द्वारा बनायी गई पूर्व की स्टिंग सीडीयों से ख़ौफ़ में हो या फिर उमेश कुमार द्वारा दी गई ख़ास और एक्स्ट्रा सर्विसेज़ से ओब्लाइज भी हो, पर प्रदेश और देश चलता है अदालतों से याचिकाकर्ता ने पत्रकारों को बताया कि कई चिट्ठियां देने के बाद भी जब शासन प्रशासन द्वारा नहीं सुनी गई तो याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय जाने के लिए मजबूर हो गया। न्यायालय ने अब इस याचिका को मंज़ूर करते हुए 29 मार्च को शासन से लेकर प्रशासन तक सब को नोटिस भेज तीन हफ़्ते में जवाब माँगा है।
अब शासन को ये जवाब देना पड़ेगा कि एक अपराधी को आख़िर इतनी सुरक्षा कैसे प्रदान की गई किस अधिकारी के कहने पर यह मेहरबानी की गई। पुलिस और LIU द्वारा किसी प्रकार का कोई भी ख़तरा न होने की रिपोर्ट देने के बावजूद भी किसकी स्वीकृति से यह कार्य किया गया? इस याचिका के बाद से शासन से लेकर प्रशासन तक सब में हड़कंप मचा हुआ है सब अपना अपना पल्ला झाड़ कर दाएँ बाएँ झांक रहे है। हालाँकि इस पूरे मामले का कोर्ट ने संज्ञान ले लिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में उमेश कुमार की भौकाली, चमकाने वाली चाक चौबंद सुरक्षा रहती है या फिर हट जाती है?