विधानसभा सभा चुनावों में चार सीट से अपना खाता खोलने वाली यूकेडी के वर्तमान में एक भी विधायक सदन में नहीं
लुसून टोडरिया के फेसबुक वाल से साभार
आम आदमी पार्टी के राज्य में चुनाव लड़ने के एलान के बाद जिस दल की सबसे ज्यादा चर्चा फिर से शुरु हो गयी है वो न तो कांग्रेस है न बीजेपी वो है वह दल है जो उत्तराखण्ड राज्य गठन को लेकर सबसे पहले से आक्रमक रहा है । जी हाँ , उत्तराखण्ड क्रांति दल । परन्तु उत्तराखण्ड क्रांति दल की कुछ गलतियों के कारण हालत कुछ ऐसे हो गए कि जो पार्टियां उत्तराखण्ड राज्य की माँग को लेकर या तो विरोध में थी या चुप्पी साधे हुई थी उन्ही को इन गलतियों का सीधे तौर पर फायदा पहुंचा । हालत इस कदर बुरे हो गए कि राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा सभा चुनावों में 4 सीट से अपना खाता खोलने वाली यूकेडी के वर्तमान में एक भी विद्यायक सदन में मौजूद नही है ।
उत्तराखण्ड क्रांति दल का अगर इतिहास देखा जाए तो उनके पास हमेशा आक्रमक और जनता से जुड़े नेता रहे है चाहे वो डीडी पंत, बिपिन चन्द्र त्रिपाठी या इंद्रमणि बडोनी हो जिनको जनता ने सिर आंखों में बिठाया । परन्तु समय के साथ साथ यूकेडी का जादू फीका पड़ता गया और कुछ गिने चुने गलत फैसलों की वजह से यूकेडी की पकड़ राज्य की राजनीति से ढीली हो गयी ।
आसान शब्दो मे कहा जाए तो दिल्ली से चलने वाली राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस बीजेपी जो चाहती थी यूकेडी उन्ही के जाल में फँस गयी । पर शायद संसार के हर दल के सामने ऐसी चुनौती आती है जब उस पर संकट आता है और जब अस्तित्व पर ही संकट आ जाए तब जिस आक्रमकता और आत्मबल से वो संगठन वापसी करता है वो इतिहास के पन्नो में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में हमेशा के लिए छप जाता है । पर प्रश्न ये उठता की उन पन्नों को लिखे कौन ? क्या वह लोग जिनकी वजह से शायद आज अस्तित्व का ही संकट पैदा हो गया हो या वो लोग जो एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत है ।
जाहिर है यूकेडी को अब सबसे ज्यादा जरूरत उन ऊर्जावान लोगों की ही है जो राज्य के प्रश्नों को लेकर मुखर है और सड़कों पर है और वो लोग उसी मुखरता से तभी आवाज़ उठा पाएंगे जब संगठन में भी उनको पूर्ण रूप से आज़ादी और ताकत मिले । यूकेडी अगर चाहती है कि 2022 में उसे जनता से वोट की खुराक मिले तो उसे एक बार अंतिम आत्ममंथन करने की जरूरत है क्योंकि यह उत्तराखण्ड क्रांति दल को भी पता है कि एकमात्र पार्टी
जो उत्तराखण्ड आंदोलन से मूल निवासियों की आवाज़ उठा रही है वो वह ही है इसलिए मूल निवासियों के हक और राज्य की बुनियादी समस्याओं को लेकर अगर उसे कुछ कड़े कदम भी उठाने पड़े तो उसे पीछे नही हटना चाहिए ।