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आरामतलब और बीमार अधिकारी ने दो भवनों के बीच बनवा डाला 32 लाख का पुल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : जिस राज्य उत्तराखंड में आपदा के चार साल बाद भी मन्दाकिनी नदी को पार करने के लिए झूला पुल नहीं बन पाये हैं और मन्दाकिनी घाटी सहित सूबे और जिले भी हैं जहाँ आज भी मोटर पुल तो दूर पैदल पुल भी नहीं बन पाए हैं और वहां के लोग और स्कूली बच्चे जान जोखिम में डालते हुए नदी -नालों को पार करने को मजबूर है ऐसे राज्य में अधिकारियों ने देहरादून जैसे स्थान में वह भी सचिवालय के भीतर एक भवन से दूसरे भवन में आने -जाने के लिए पुल का निर्माण करा डाला वह भी 32 लाख रूपये खर्च करके और अपनी सहूलियत के लिए। अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जिन अधिकारियों पर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का दारोमदार है वे जब अस्थायी राजधानी देहरादून के सचिवालय में एक भवन से दूसरे भवन तक पैदल नहीं चल सकते तो वे क्या सूबे के पहाड़ में जा पाएंगे ?
उत्तराखंड में बेलगाम ब्यूरोक्रेसी का ताज़ा मामला इस पुल के रूप में सामने आया है। लाखों की लागत से सचिवालय में विश्वकर्मा भवन से एपीजे अब्दुल कलाम भवन को पीछे की तरफ से जोड़ने वाला यह पुल किन अधिकारियों के लिए बनाया गया है यह आजकल सचिवालय में चर्चा का विषय बना हुआ है। सचिवालय कर्मचारियों का कहना है जो अधिकारी एक भवन से दूसरे भवन तक महज़ 100 मीटर तक की दूरी भी पैदल चलकर पार नहीं कर सकते वे उत्तराखंड के सुदूरवर्ती इलाकों तक क्या ख़ाक चलकर पहुंचेंगे यह विचारणीय है। इनका कहना है कि आराम तलब ऐसे अधिकारियों से राज्य का क्या विकास होगा यह भी सोचनीय विषय है।
सचिवालय में हो रही चर्चाओं के मुताबिक यह पुल विश्वकर्मा भवन में बैठने वाले एक चर्चित अधिकारी के लिए विशेषतौर पर बनाया गया है जो पुल से होकर सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय के चौथे मंजिल तक बिना ज्यादा चले पहुँच जायेंगे। एक जानकारी के अनुसार इस पुल को बनाने के लिए जहाँ विश्वकर्मा भवन के एक कक्ष की बलि ले ली गयी है वहीँ एक और कमरे की बलि एपीजे अब्दुल कलाम भवन की भी ली गयी है।चर्चाओं के अनुसार दिल की बीमारी से ग्रसित एक आला अधिकारी के लिए यह पुल बनाया गया है जिसको लिफ्ट से नीचे उतरकर दूसरे भवन में बैठे अपने आका को मिलने के लिए एक बार फिर लिफ्ट से ऊपर चढ़ना पड़ता था। उसने अपनी सहूलियत के लिए सरकार के जहाँ लाखों रुपये इस पुल के निर्माण में खर्च कर डाले वहीँ दोनों भवनों के दो कमरों की भी इस पुल को बनाने के लिए बलि ले ली।
सूबे बुद्धिजीवियों का कहना है कि जिस राज्य के अधिकारी एक भवन से दूसरे भवन तक वह भी मात्र 100 मीटर पैदल नहीं चल सकते उस राज्य के अधिकारियों से पर्वतीय राज्य के विकास की उम्मीद करना बेकार है। इनका कहना है कि सरकार को चाहिए ऐसे आरामतलब और बीमार अधिकारियों से इस राज्य को बचाया जाय ताकि मेहनतकश इस राज्य की जनता को कम से कम आधारभूत सुविधाएँ तो मिल सके।