लालढांग-चिलरखाल मोटर मार्ग मामले में एसीएस ओमप्रकाश को झटका
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून: कंडी रोड के लालढांग-चिलरखाल मार्ग पर वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत के सख्त तेवरों के चलते अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश को बैक फुट पर आना पड़ा है क्योंकि मामले में वन विभाग ने शासन को रिपोर्ट भेजकर साफ किया है कि इस सड़क के निर्माण की कार्यवाही नियमानुसार हो रही है, इसलिए इसे रोका जाना उचित नहीं है। इसके बाद शुक्रवार को वन मंत्रालय ने इस रिपोर्ट के आलोक में अपर मुख्य सचिव लोनिवि को पत्र भेजकर सड़क का निर्माण कार्य कार्यदायी संस्था लोनिवि को सुचारू रूप से चालू करने के लिए निर्देशित करने का आग्रह किया है ।
यह था सड़क का मामला:
गढ़वाल व कुमाऊं दोनों मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार- लालढांग) प्रदेश सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल रहा है। कंडी रोड के राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाली 11 किमी लंबे गैर विवादित हिस्से लालढांग-चिलरखाल (कोटद्वार) के निर्माण को सरकार ने पहल करते हुए लोनिवि को सवा छह किमी सड़क के लिए वन भूमि हस्तांतरित की गई। सड़क के सुदृढ़ीकरण के साथ ही सड़क के डामरीकरण और मार्ग में आने वाली तीन बरसाती नदियों पर पुलों के निर्माण को धनराशि जारी की गई थी। इसी बीच नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (NGT) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा इसका संज्ञान लेते हुए सड़क को लेकर आख्या मांगी थी। जिस पर लैंसडौन के डीएफओ ने अति उत्साह में आकर कुछ ही समय पूर्व लोनिवि को ट्रांसफर इस सड़क पर चल रहे निर्माण कार्य को रोकने को कहा। इतना ही नहीं मामले में सूबे के अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने डीएफओ से और ज्यादा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए पहले मौखिक और फिर लिखित में आदेश जारी करते हुए काम रोकने के आदेश जारी कर दिए, इतना ही नहीं पर मुख्य सचिव ने मामले में मंत्री के दखलंदाज़ी के बाद कार्य शुरू करवाने के चलते लोनिवि के अधिकारियों को वहां विडिओग्राफी तक करने के आदेश देते हुए जांच करने को कहा ताकि सड़क निर्माण को लेकर चल रहे कार्य को रोका जा सके।
मामले में वन मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने सड़क को मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट की बात उठाते हुए अपर मुख्य सचिव लोनिवि ओम प्रकाश के खिलाफ मोर्चा खोल डाला। उनका कहना था कि यह सड़क पूरी तरह नियमों के अनुरूप बन रही है। इतना ही नहीं वन मंत्री ने वन विभाग को निर्देश दिए थे कि इस सड़क के आलोक में एनजीटी व एनटीसीए को भेजी जाने वाली रिपोर्ट तुरंत शासन को भेजी जाए। इसके बाद उन्होंने कहा कि एनटीसीए की गाइडलाइन इसमें लागू नहीं होती। वहीं इसके बाद लोक सभा चुनाव और आचार संहिता खत्म होते ही वन मंत्री ने विधानसभा में दोनों विभागों के अधिकारियों की जमकर क्लास ली। जिसके बाद शासन के अधिकारियों ने मंत्री की बात को सही मानते हुए मामले में आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी और मार्ग निर्माण को नियमानुसार बताते हुए क्लीन चिट दे डाली। साथ ही वन विभाग को निर्देश दिए थे कि इस सड़क के आलोक में एनजीटी व एनटीसीए को भेजी जाने वाली रिपोर्ट तुरंत शासन को भेजी जाए।
वहीं मामले को लेकर वन मंत्री के साथ ही शासन के निर्देशों के क्रम में प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव की अध्यक्षता में गुरुवार को बैठक हुई। इसके कार्यवृत्त पर शुक्रवार को प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) जय राज के साथ मंथन किया गया। इसके बाद पीसीसीएफ ने प्रमुख सचिव वन को रिपोर्ट भेज दी। इसमें कहा गया है कि लालढांग-चिलरखालमार्ग के सुदृढ़ीकरण का कार्य पारिस्थितिकीय रूप से पूर्णतया पोषणीय (कंप्लीटली सेस्टेनेबल) है। इसी कारण वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसके लिए वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
रिपोर्ट में इस प्रकरण में वृक्षों का पातन न होने, संबंधित कार्य से भूमि कटाव की रोकथाम होने, कलवर्ट व क्रॉस ड्रेनेज निर्माण से वन्यजीवों का आवागमन सुलभ होने, वनकर्मियों द्वारा वन्यजीवों की सुरक्षा को वर्षाकाल में नियमित गश्त की सुगमता का हवाला दिया गया है।