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मोदी सरकार बुला सकती है एनडीए की बैठक!

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के एक साथ कई झटके लग रहे हैं। एक ओर तो उपचुनाव में उसकी हार लगातार हो रही है दूसरा उसकी एक सहयोगी टीडीपी एनडीए से अलग हो गई है। उसने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान कर दिया है।टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न देने से नाराज होकर ये कदम उठाया है।दूसरी ओर वाइएसआर कांग्रेस ने भी अविश्वास लाने का ऐलान किया है।

लेकिन ऐसा नहीं कि इस अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई ख़तरा है।संख्या बल उसका पर्याप्त है।बस उसके लिए मायूसी की बात इतनी ही है कि कुछ अपने पराये हो गए और कुछ होते लग रहे हैं।टीडीपी ने आंख फेर ली, शिवसेना आंख दिखा रही है।जबकि दूसरी सहयोगी लोजपा ने भी उपचुनाव नतीजे पर चिंता जताते हुए भाजपा को आगाह किया कि सहयोगी दलों के साथ ससम्मान 2019 की रणनीति तय की जाए।कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं ने औपचारिक रूप से भी घोषणा कर दी कि सोमवार को जब फिर से प्रस्ताव लाया जाएगा तो वह समर्थन देंगे।

यह और बात है कि सरकार के लिए कोई समस्या नहीं है। खुद संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने भी कहा कि सरकार के पास पर्याप्त नंबर है। अकेले भाजपा ही बहुमत के पार है। जबकि सहयोगी दल भी साथ खड़े हैं। जाहिर तौर पर सरकार को कोई संकट नहीं है। लेकिन सहयोगी दलों ने सुर उंचा करना शुरू कर दिया है और भाजपा को उन्हें एकजुट रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होगा।
लोजपा सदस्य चिराग पासवान ने सरकार को याद दिलाया कि टीडीपी रिश्ता तोड़ चुकी है, शिवसेना पहले ही 2019 का चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी है। दूसरी तरफ सोनिया गांधी 20 दलों को इकट्ठा कर रही हैं। ऐसे में जरूरी है राजग भी एकजुट होकर रणनीति तय करे और इसका ध्यान रखे कि सहयोगियों को पूरा सम्मान मिले।

टिप्पणिया बीजेपी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत ये है चुनावी साल शुरू होते ही एनडीए में बिखराव शुरू हो गया।चुनाव होने तक बीजेपी को अपने एनडीए के कुनबे को बचाए रखना है।अविश्वास प्रस्ताव आते ही बीजेपी के प्रति उसके सहयोगी शिवसेना और अकाली दल भी अब बीजेपी के रवैये पर अपना दुख खुलकर जता रहे हैं जो एनडीए के लिए ठीक नहीं है इसका असर आम वोटर तक भी पड़ेगा।

माना जा रहा है कि जल्द ही राजग नेताओं की बैठक बुलाई जा सकती है। उन्हें यह संदेश देने की कोशिश होगी कि दो उपचुनाव के नतीजों को लेकर किसी फैसले पर न पहुंचे। उन्हें यह आश्वस्त किया जाएगा कि सहयोगी दलों को पूरा सम्मान मिलेगा और 2019 के चुनाव में सरकार भी भाजपा की ही बनेगी। वैसे यह भी माना जा रहा है कि भाजपा कर्नाटक चुनाव का इंतजार कर रही है जहां उसे सत्ता में आने का भरोसा है। अगर ऐसा होता है तो सहयोगी दलों के दबाव से बाहर आने का भी अवसर मिलेगा और विपक्ष के कथित गठबंधन की गांठ भी ढीली पड़ेगी।

वैसे बदले माहौल में बीजेपी भी अब सहयोगियों के प्रति नर्म हो रही है।सूत्रों के अनुसार जल्दी ही सभी सहयोगी पार्टियों से बात की जा सकती है।बीजेपी के कई मौजूदा सहयोगी दल वाजपेयी सरकार में भी शामिल थे।इस लिहाज से तब मिले अपने महत्व के मद्देनज़र उन्हें पिछले साढ़े तीन साल में निराशा ही हाथ लगी है।लेकिन बीजेपी का कहना है अपने बूते बहुमत मिलने के बावजूद उसने सहयोगी दलों को सरकार में हिस्सेदारी दी है। पर अब जबकि चुनाव सिर पर हैं, बीजेपी अपने खिलाफ बन रही जनधारणा को दूर करने में जुट गई है।

devbhoomimedia

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