CAPITAL

अतिक्रमण अभियान पर सुप्रीम कोर्ट का ब्रेक

देहरादून : अस्थायी राजधानी देहरादून में राज्य सरकार की देख रेख में चल रहे अतिक्रमण अभियान के बीच में ही अतिक्रमणकारियों को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी है। उच्चतम न्यायालय ने दून निवासी सुनीता की विशेष राहत याचिका (एसएलपी-सिविल) पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अतिक्रमण हटाते हुए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के तहत अतिक्रमणकारी को सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम को पुराने अतिक्रमण पर नोटिस भेजकर सुनवाई करने के बाद फैसला लेने को कहा गया है।

गौरतलब हो कि 18 जून 2018 को एक जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय नैनीताल ने अतिक्रमण हटाने के आदेश जारी किए थे। उच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर देहरादून की सड़कों से चार सप्ताह के भीतर अतिक्रमण नहीं हटाया गया तो मुख्य सचिव इसके लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया गया था । वहीँ राज्य सरकार ने जिला प्रशासन  मिलकर देहरादून को चार जोन में बांटकर 28 जून से अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू हो गया था। अतिक्रमण हटाने के लिए नगर निगम, एमडीडीए सहित सभी अन्य कई विभागों की संयुक्त टीम बनाई गई थी। 

इस बीच दून निवासी सुनीता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 18 जून को आए फैसले को संशोधित कर दिया है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अतिक्रमण पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। और साथ ही नगर निगम को निर्देश जारी किए हैं कि अतिक्रमण हटाने में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए अतिक्रमणकारियों को सुनवाई का मौका दिया जाए।

नगर आयुक्त, नगर निगम, विजय कुमार जोगदंडे के अनुसार  सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत सबसे पहले एक समिति गठित की जाएगी। इसके बाद सभी संबंधित विभागों से अतिक्रमण की सूचना मांगी जाएगी। इस रिपोर्ट के आधार पर अतिक्रमणकारियों को नोटिस भेजा जाएगा। उनकी सुनवाई की जाएगी। सुनवाई के बाद निगम फैसले के आधार पर अतिक्रमण को  हटायेगा।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »