उत्तराखंड में सिर्फ और सिर्फ मोदी मैजिक
अविकल थपलियाल
उत्तराखंड में भाजपा की जीत मोदी मैजिक का कमाल ही कहा जायेगा। मतदान के ठीक तीन दिन पहले मोदी की चार चुनावी रैली ने पूरी फिजां ही बदल दी थी। इससे पहले तक उत्तराखण्ड में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही थी। मोदी सुनामी का यह खास असर रहा की मुख्यमंत्री हरीश रावत दोनों सीटों से हार गये । यही नही, कई मंत्री भी सीट गँवा बैठे। इससे पूर्व के तीनों विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस पूर्ण बहुमत के लिए तरसते रह गए थे। मौजूदा समय हरीश रावत के लिए गहन चिंतन का है। और भाजपा के लिए प्रदेश को एक नई दिशा देने का सुनहरा मौका है।
उत्तराखण्ड के मतदाताओं ने राजनीतिक अस्थिरता को किनारे करते हुए मोदी पर वोटो की बारिश की। अब भाजपा को मतदाताओं से कोई भी शिकायत नही होनी चाहिए। जनता ने अपनी भूमिका के साथ सौ प्रतिशत न्याय किया अब बारी मोदी टीम की है।
चुनाव से पूर्व देहरादून की ऐतिहासिक रैली में मोदी ने डबल इंजन की बात करते हुए मतदाताओं से वोट की अपील की थी। और देवभूमि की जनता ने मोदी को शक्तिशाली इंजन दे दिया। लिहाजा उत्तराखण्ड की जनता को अब उसका पूरा हक भी मिलना चाहिए।
इधर, उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार को अब कुछ नए मोर्चो पर भी जूझना होगा। चूँकि उत्तराखण्ड भाजपा की टोकरी में कई बड़े अनार आ गए हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री को लेकर जारी खींचतान और उसके बाद गुटीय संघर्ष भी पार्टी के लिए चिंता का सबब बनेगा।
फिलवक्त मुख्यमंत्री की दौड़ में सतपाल महाराज, त्रिवेंद्र रावत, प्रकाश पन्त, धन सिंह रावत के अलावा कुछ अन्य नाम भी है। अजय भट्ट भी बड़े दावेदार थे लेकिन वो रानीखेत से चुनाव हार गये। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कांग्रेस के बागी हरक सिंह रावत के लिए भी शतरंज बिछा सकते हैं।
भाजपा की जीत से पहले ही मुख्यमंत्री के मुद्दे पर विभिन्न गुट बन्द कमरों में गुफ्तगू कर चुके हैं। पुराने भाजपाई और कांग्रेस के बागी नेताओं की पूरी कोशिश सतपाल महाराज को रोकने की है। हालांकि, ये भी तय है कि मोदी के ग्रीन सिग्नल के बाद प्रदेश भाजपा के नेता अब विरोध की हिम्मत नही कर पाएंगे।
भाजपा की प्रचण्ड जीत के पीछे मुख्य तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के कुछ खास निर्णय रहे। नोटबंदी को सीधे सीधे करप्शन के खिलाफ मुहिम के तौर पर पेश करना। फौजी बहुल उत्तराखण्ड में वन रैंक वन पेंशन व् सर्जिकल स्ट्राइक का भी खास असर देखा गया। 12 हजार करोड़ की आल वेदर रोड, ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल लाइन पर केंद्र की गंभीरता समेत श्मशान बनाम कब्रिस्तान के सवाल पर पहाड़ में भी से हिंदू मतों का ध्रुवीकरण तेजी से हुआ। उत्तराखण्ड में हुए इस ध्रुवीकरण में हरीश रावत सरकार के जुमे के दिन अल्पसंख्यक सरकारी कर्मचारियों को तय अवधि के अवकाश सम्बन्धी फैसले ने भी उत्तराखण्ड में उबाल ला दिया था।
इसके अलावा मोदी समेत उनकी कैबिनेट का तूफानी प्रचार भी हरीश रावत पर भारी पड़ा। पी के की सलाह पर चल रही कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में फूटी कौड़ी भी खर्च नही की जबकि भाजपा ने चैनल और प्रिंट मीडिया में धुंआधार प्रचार और ताबड़तोड़ हमले कर कांग्रेस को सम्भलने का कोई मौका नही दिया।
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 63 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी। लेकिन इस बार स्वंय भाजपा के नेताओं ने भी इतनी बड़ी जीत के सपने नही देखे थे। फिर भी उत्तराखण्ड की जनता ने भाजपा की झोली भर दी। अब ये प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर अशक्त उत्तराखण्ड को बली बनाने की भी जिम्मेदारी आ गयी है। 16 साल बाद भी पलायन, बेरोजगारी, आपदा समेत कई अन्य मोर्चो पर जूझ रहे उत्तराखण्ड वासियों के चेहरे पर भी दो इंच मुस्कान आये प्रधानमंत्री मोदी जी क्यूंकि कि छोटे राज्य उत्तराखण्ड की जनता ने अब आपको अपना छोटा इंजन भी दे दिया। अब चहुमुंखी विकास की छुक- छुक रेल की सीटी पहाडी घाटियों में बजनी ही चाहिए। अब तो नौ मन ही नही पूरे नब्बे मन तेल उत्तराखंड ने दे दिया। अब तो राधा को नाचना ही होगा मोदी जी और अमित शाह जी। आमीन। हैप्पी होली।