द्वितीय केदार मध्यमेश्वर की इस बार आसान नहीं है राह
- समुद्रतल से 3497 मीटर (11470 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है मध्यमेश्वेर
- भगवान मदमहेश्वर को लगाया गया नये अनाज का भोग
- 19 मई को मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली धाम के लिए होगी रवाना
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
उखीमठ । द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर धाम की यात्रा इस बार आसन नहीं होगी जबकि इस धाम की यात्रा शुरू होने में अब महज गिनती के ही दिन शेष हैं इसी बीच कपाट खुलने की प्रक्रिया शुक्रवार को शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मन्दिर में विधिवत शुरू हो गयी है। समुद्रतल से 3497 मीटर (11470 फीट) की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर के लिए इस बार केदारनाथ की तर्ज पर यात्रियों को बर्फ के ऊपर से होकर ही गुजरना होगा। इस धाम में व्यवस्थित रूप से शुरू करवाना श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के जिम्मे है, लेकिन मंदिर समिति की प्राथमिकता केदारनाथ धाम की यात्रा व्यवस्थाएं जुटाने पर है। क्योंकि केदारनाथ में प्रधानमंत्री सहित कई वीवीआईपी का शनिवार से जमावड़ा लगने वाला है.जबकि 21 मई को मध्यमेश्वेर के कपाट खुलने हैं।
गौरतलब हो कि पंचकेदारों में शामिल द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर जाने के लिए श्रद्धालुओं को 18 किमी की चुनौतीपूर्ण दूरी पैदल नापनी पड़ती है। वहीं शीतकाल के दौरान हुई जोरदार बर्फबारी के कारण इस पैदल रास्ते में अभी भी चार स्थानों पर भारी-भरकम हिमखंड खड़े हैं। और यात्रियों को इन हिमखंडों को पार करने के लिए बेहद सावधानी बरतनी होगी। इस वर्ष केदारनाथ यात्रा शुरू कराने के लिए भी भारी बर्फवारी के कारण मंदिर समिति व जिला प्रशासन की टीमों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है और अभी भी वहां चुनौतियां बरकरार हैं। ऐसे में मंदिर समिति व प्रशासन ने पूरी ताकत केदारनाथ में ही झोंकी हुई है।
विदित हो कि मदमहेश्वर में बिजली व पानी की व्यवस्था स्थानीय लोगों को स्वयं करनी होती है। बिजली के लिए व्यापारी बैटरी वाली लाइन के भरोसे रहते हैं, जबकि पानी मंदिर के आसपास स्थित प्राकृतिक पेयजल स्रोतों से जुटाया जाता है। व्यापारी दीपक बताते हैं कि वह यात्राकाल में मध्यमेश्वर के पास स्थित रांसी गांव से अपनी दुकान यहां ले आते हैं। लेकिन, यहां नाममात्र की सुविधाएं होने के कारण यात्रियों को खासी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए भी यहां पर सिर्फ काली कमली धर्मशाला व मंदिर समिति की धर्मशाला ही हैं। इसके अलावा ठहरने की कोई अन्य सुविधा यहां पर नहीं है। वह बताते हैं कि सीमित व्यवस्थाओं के बावजूद यात्री भारी उत्साह से यहां पहुंचते हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या पश्चिम बंगाल व दक्षिण भारत से आने वाले यात्रियों की होती है।