हरीश रावत की ‘खिचड़ी’ से कांग्रेस में सियासी हलचल

- ‘हरदा खिचड़ी’ से निकली सियासी महक पहुंची दिल्ली तक
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : पूर्व सीएम हरीश रावत के राजनीतिक संघर्ष करने का तरीका भी निराला है और अपने विरोधियों को पटखनी देने का करतब भी आश्चर्यजनक है। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उत्तराखंड में एक ही ऐसा जन नेता है जिसके सब दीवाने हैं और सबको यह लगता है ”हरदा” अपना है लेकिन ”हरदा ” का किसी बात को कहने का तरीका भी निराला है कहते कहां है और उन शब्दों का कहां निशाना होता है यह केवल वही समझता है जिसको समझने की जरुरत होती है अन्य लोगों के तो सर के ऊपर से निकल जाती है उनकी बात।
यहां एक फार्म हाउस में उम्र के 70 बसंत पार कर चुके ”हरदा” के लिए उनके समर्थक आज भी वही नारे लगाते हैं कि ‘हरीश रावत संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।’ इस नारे का ”हरदा” के राजनीतिक जीवन से काफी पुराना नाता रहा है। पांच-पांच बार चुनाव में हारने के बाद यही नारा उनका सम्बल रहा है कि वे बार-बार राजनीतिक पिच पर हार खाने के बाद एक बार फिर खड़े हुए और आज उत्तराखंड के ”जननायक” बन चुके हैं। भाजपा या कांग्रेस में उनके जैसा संघर्षशील नेता तो काम से कम आज के दौर में तो नहीं।
हरीश रावत का पहाड़ के खाद्य उत्पादों जैसे कोदा , झंगोरा, गहथ, भट्ट और इनसे बने खाद्य उत्पादों से लगाव रहा है जिनको उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में खूब प्रचारित किया। उनका कहना है जब देश के अन्य राज्यों के उत्पादों जैसे गुजरती ”ढोकला” फाफरा,पंजाब के सरसों का साग और ”मक्की की ऱोटी” दक्षिण भारत का ”इडली डोसा ” आदि राज्यों की प्रमुख खाद्य उत्पाडी आज देश-दुनिया में अपना स्थान बना चुके हैं तो हमारे खाद्य उत्पाद तो उनसे ज्यादा पौष्टिक हैं इनको भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
यहां ‘हरीश रावत संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारों के साथ मशरूम और पहाड़ी उत्पादों के प्रोत्साहन के इस कार्यक्रम में शनिवार को मकर संक्रांति के उपलक्ष्य में ”हरदा खिचड़ी” परोसी गई। हरीश रावत की इस ‘हरदा खिचड़ी’ से निकली सियासी महक सूबे में ही नहीं बल्कि दिल्ली तक लोगों ने महसूस की। हज़ारों समर्थकों के बीच हरीश रावत ने एक पखवाडे़ के भीतर दूसरी बार देहरादून में अपनी राजनीतिक ताकत का अपने विरोधियों को अहसास कराया कि शेर कभी बूढ़ा नहीं होता शेर -शेर होता है अब शेर चाहे जंगल में हो या पिंजरे में कहते तो लोग उसे शेर ही हैं।
वहीं,इस ”हरदा खिचड़ी” कार्यक्रम में उनसे छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले प्रीतम-इंदिरा खेमे से जुडे़ लोगों ने पूर्व की भांति इस बार भी पार्टी का अघोषित बहिष्कार किया। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब नए साल के आगमन पर हरीश रावत ने गुड चाय और पहाड़ी खाद्य पदार्थों का स्वाद अपने मेहमानों को चखाया था। लेकिन हरदा की इस खिचड़ी पार्टी में उमड़े कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की उपस्थिति इस बात का अहसास करवा रही थी कि जन-नेता आज भी हरीश रावत ही हैं। कार्यक्रम में पुराने खांटी नेताओं की मौजूदगी इस बात का अहसास करने को काफी थी कार्यक्रम में पूर्व सांसद व मंत्री टीपीएस रावत, पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल, हीरा सिंह बिष्ट, मनोज रावत, जसबीर रावत , राजीव जैन,अभिषेक भंडारी, जयपाल जाटव सहित सैकड़ों दिग्गज उपस्थित रहे।
अपने सम्बोधन में हरदा ने अपने विरोधियों पर शब्द बाण भी छोड़े। उन्होंने इशारों ही इशारों में सरकार से लेकर अपनी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व तक पर भी जमकर टिप्पणी की। उन्होंने खुद को भूत बताते हुए कहा-वह तो भूत हैं, अब जो करना है वह वर्तमान को करना है। लेकिन उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा उत्तराखंड जहां देवी -देवताओं की भूमि है वहीं यहां के भूत भी तो जागर लगाते हैं। यही कारण है वे भी जागर लगा कर वर्तमान को जगाने का काम कर रहे हैं।