गर्भोत्सव संस्कार भावी पीढ़ी को गढ़ता हैः डॉ पण्ड्या
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
हरिद्वार । भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में जुटे अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा भावी पीढ़ी को गढ़ने के लिए ‘आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी’ आंदोलन को गति दिया जा रहा है। यह आंदोलन आध्यात्मिक व वैज्ञानिक समन्वय के साथ आगे बढ़ रहा है, यही कारण है कि इस आंदोलन की ओर देश-विदेश के आध्याात्मिक विचारकों के साथ-साथ चिकित्सकों व वैज्ञानिकों के रुझान देखे जा रहे हैं। इसे और अधिक गतिशील बनाने के उद्देश्य से देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
संगोष्ठी का शुभारंभ एम्स, ऋषिकेश के निदेशक पद्मश्री प्रो. रविकांत, देसंविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या, कुलपति शरद पारधी, आंदोलन की मुख्य समन्वयक डॉ. गायत्री शर्मा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. रविकांत ने अपने चिकित्सकीय जीवन के लंबे अनुभवों का साझा करते हुए इसे जन-जन में जागरुकता एवं इसमें निरंतरता लाने की बात कही।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में देसंविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि इससे सुसंस्कारी एवं वैचारिक क्षमता वाले प्रतिभावान आत्माएँ आयेंगी, जो समाज व राष्ट्र को नई उपलब्धियाँ प्रदान करेंगी। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रवर्तक डॉ. पण्ड्या ने कहा कि गर्भोर्त्सव संस्कार के माध्यम से गर्भस्थ शिशु में जो बीज बोये जाते हैं, वहीं आगे चलकर पुष्पित व पल्लवित होते देखे जाते हैं।
इस अवसर देश के विभिन्न राज्यों के आये प्रतिभागियों के अलावा शांतिकुंज व्यवस्थापक शिवप्रसाद मिश्र, डॉ. ओपी शर्मा सहित देसंविवि व शांतिकुंज परिवार उपस्थित रहे। वहीं तकनीकि सत्र में गर्भोत्सव का वैज्ञानिक प्रतिपादन पर डॉ. गायत्री शर्मा, गर्भावस्था में योगासन पर रजनी व अनुराधा, गर्भावस्था में दिनचर्या पर डॉ. संगीता सारस्वत, गर्भावस्था में आहार पर डॉ राधेश्याम श्रोतिया, गर्भस्थ शिशु से संवाद पर रूपाली गाँधी आदि ने प्रकाश डालते हुए संस्कार परंपरा को सर्वोपरि बताया।