POLITICS

अब हरदा को निशाना बना गढ़े मुर्दे उखाड़ने में जुटे कांग्रेसी नेता

हरदा बोले जब मैंने उस दावेदारी से, उस चाहत से अपने को हटा लिया तो फिर यह दनादन क्यों? 

पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर और आपस में इस बात को लेकर विवाद न हो इसलिए मैंने 2017 की हार को अपने ऊपर लिया 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : गुटों में बंटी उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं में आजकल आपसी संघर्ष चरम पर है। एक दूसरे पर व्यंग बाण छोड़े जा रहे हैं।  कोई पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर वर्ष 2017 में हुई हार का ठीकरा फोड़ रहा है तो कोई अपनी सफाई दे रहा है।  सभी को अगले वर्ष विधान सभा चुनाव नज़दीक आते देख अपनी जमीन की फ़िक्र पड़ी है लेकिन कांग्रेस नेताओं के इस सोशल मीडिया की लड़ाई में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपना अलग ही अंदाज है वे पहले तो दिन में एक बार सोशल मीडिया में सक्रिय रहते थे लेकिन अब कभी -कभी दो दो बार सामने आ जाते हैं।   

गुरुवार को उन्होंने अपने फेस बुक अकाउंट पर एक पोस्ट डाली है।  जिसमें उन्होंने कहा 2017 की चुनावी हार का मुद्दा भी बार-बार उभर करके मुझे डराने के लिये खड़ा हो जाता है। मैं, 2017 की चुनावी हार का सारा दायित्व ले चुका हूँ। मैंने, पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर और आपस में इस बात को लेकर विवाद, हमें और कमजोर न करे इसलिये अपने ऊपर दायित्व लिया। मैंने कोई बहाना नहीं बनाया जबकि बहाने बहुत बनाये जा सकते थे, मगर एक तथ्य हम सबको समझना चाहिये कि हमें 2017 की हार से लिपटे नहीं रहना है, उससे ऊपर उठना है और 2017 की हार के समसम्यक चुनावों के परिणामों को भी अपने सामने रखना है।

उत्तर प्रदेश में हमारा महागठबंधन था, मगर उत्तर प्रदेश की धरती में जाति और सामाजिक समीकरण ध्वस्त हो गये और श्मशानघाट व कब्रिस्तान के नारे ने मानस बदल दिया। उस समय के भाजपा के प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड में आकर जिस तरीके से चुनावों को पोलोराइज किया तो हिंदू, उसमें भी उच्च वर्णीय हिंदुओं के बाहुल्य वाले राज्य में उन सबका प्रभाव पड़ा। मैं आभारी हूं उत्तराखंड की जनता का कि इतने सघन धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशों के बावजूद भी हमारे कांग्रेस के वोटों का प्रतिशत नहीं गिरा।

आप 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त वोटों का प्रतिशत देख लीजिये, यहां तक की वोटों में जो वृद्धि हुई, उस वृद्धि को देखते हुये प्रतिशत में तो हम 2012 में कांग्रेस को पड़े वोटों के बराबर रहे और वोटों में जो वृद्धि हुई, उसके अनुसार हमारे वोटों में कुल वोटों की संख्या में 2012 की तुलना में करीब पौने दो लाख की वृद्धि हुई। कितना अथक परिश्रम किया होगा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने, एक बड़ी टूट और विशेष तौर पर ठीक चुनाव के वक्त में एक पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का चला जाना, कोई सामान्य बात नहीं थी। मगर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से कांग्रेस अपने 2012 के जिस समय हम जीते थे, उस वोट बैंक को कायम रखने में सक्षम रहे।

करीब 12 सीटें ऐसी हैं, जिनमें हमारी हार का मार्जन बहुत कम है, यहां तक की सल्ट में अन्तिम क्षणों में हमने श्रीमती गंगा पंचोली जी को टिकट दिया, तो वहां भी हम 2900 वोटों से पीछे रहे, मतलब 1500 वोट और यदि गंगा पंचोली को मिल जाते तो वो विधानसभा की सदस्य होती तो ये जो अंकगणित है, यह हमको शक्ति देता है। 2022 की रणनीति बनाने के लिये, हमें 4-5 प्रतिशत और वोट अपने बढ़ाने हैं, वो बढ़ोतरी बसपा, यूकेडी और दूसरे दलों के जो वोट समूचे तौर पर भाजपा को स्थानांतरित हो गये थे, उनको कैसे हम अपने पास ला सकें। मैंने इसी रणनीतिक आवश्यकता को लेकर के स्थानीय बनाम स्थानीय नेतृत्व, ताकि चुनावी परिदृश्य में भाजपा मोदी जी को लाने का प्रयास करें तो मोदी जी के बजाय स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेताओं के चेहरों पर चुनाव हो, इसीलिये मैंने 2022 के चुनाव के लिये मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात कही, एक सुझाव दिया।

लोकतांत्रिक पार्टी में चर्चाएं होती हैं और मैंने एक असमंजस हटाने के लिए अपने आपको पीछे कर लिया ताकि लोगों को यह न लगे कि हरीश_रावत केवल अपने लिए इस बात को कह रहा है तो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं, जब मैंने उस दावेदारी से, उस चाहत से अपने को हटा लिया तो फिर यह दनादन क्यों ?

https://www.facebook.com/Harishrawatcmuk/posts/1754870418020858

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