- प्रकाश पाण्डेय की मौत से और कुछ भले ही न हुआ हो लेकिन सिस्टम जरूर बेपर्दा हुआ है
- सरकारों की संवेदनहीनता और सिस्टम की बेपरवाही ने ही एक व्यवसायी की जान ली
योगेश भट्ट
यही सही है कि आत्महत्या कायरता है, किसी भी आत्महत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता न ही उसे नजीर नहीं बनाया जा सकता है। लेकिन उत्तराखंड में व्यवसायी प्रकाश पाण्डेय की आत्महत्या को कायरता कैसे कहा जाए ? बात थोड़ा अटपटी जरूर है लेकिन सच यह है कि यह कोई सामान्य आत्महत्या नहीं बल्कि सिस्टम को चेताने के लिये सोचा समझा एक बडा कदम था, संवेदनहीन राजतंत्र के मुंह पर तमाचा है यह । भविष्य में यह आत्महत्या न जाने कितने मौकों पर नजीर बनने जा रही है, इसका आज अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ।
आखिर क्यों नहीं नजीर बनेगी यह घटना ? जिस सिस्टम के आगे प्रकाश पाण्डेय महीनों गिड़गिड़ाता रहा, उसकी मौत के बाद आज वही पूरा सिस्टम हरकत में है। आज सियासी दलों के दफ्तरों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक में हलचल है, बेपरवाह सरकार “सकते” में है तो ‘लाचार’ विपक्ष भी हरकत में है। सरकार ने मृतक के परिवार को 12 लाख रुपए मुआवजा और मृतक की पत्नी को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है । सरकारी स्तर पर कहीं न कहीं आत्महत्या की वजह भी तलाशी जा रही है तो विपक्षी कांग्रेस सडक पर उतर कर मौत के कारणों को मुद्दा बनाने की कोशिश में है । सरकार की उसकी नीतियों पर घेराबंदी हो रही है, उस पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं ।
यह प्रमाण है कि प्रकाश पाण्डेय के आत्माघाती कदम के पीछे वाकई वास्तविक व व्यवहारिक कारण थे, जिन्हें वह जीते जी सिस्टम को नहीं समझा पाए । आखिरकार प्रकाश पाण्डेय ने आत्महत्या कोई गृह कलेश से तंग आकर या फिर किसी व्यक्तिगत कारण के चलते तो नहीं की । आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम प्रकाश पाण्डेय ने व्यवस्था की रीति नीति और सरकारी सिस्टम में आम आदमी की उपेक्षा के चलते उठया। आज यह साबित हो चुका है कि प्रकाश पाण्डेय की मौत का दोषी सिस्टम है, सरकारों की संवेदनहीनता और सिस्टम की बेपरवाही ने ही एक व्यवसायी की जान ली।
प्रकाश पाण्डेय की मौत से और कुछ भले ही न हुआ हो लेकिन सिस्टम जरूर बेपर्दा हुआ है, संभवत: प्रकाश पाण्डेय यही साबित भी करना चाहता था । दुर्भाग्य यह है कि इसकी बहुत बड़ी कीमत प्रकाश पाण्डेय के परिवार को चुकानी पड़ी है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि जिन कारणों से प्रकाश पाण्डेय ने आत्महत्या की उनसे आज देश भर में एक बड़ा वर्ग जूझ रहा है। कोई दोराय नहीं कि नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी लागू करने का दुष्प्रभाव सर्वाधिक मध्यम वर्ग पर पड़ा है, सबसे बडा संकट तो रोजगार का बना हुआ है ।
हो सकता है कि जीएसटी के दूरगामी परिणाम देश के लिये बेहतर हों लेकिन आज का सच यही है कि लाखों लोगों का रोजगार खत्म हो चुका है। तमाम छोटे व्यापारियों और कारोबारियों का व्यापार चौपट हो चुका है, जीएसटी के बाद सिस्टम से कोई भी सहयोग न मिलने के कारण यह वर्ग आज दोहरी मार का शिकार है । प्रकाश पाण्डेय भी कुछ इसी तरह के हालात सें जूझ रहा था, लेकिन वह चुप नहीं बैठा उसने हालात से पार पाने की पूरी कोशिश की। एक जागरूक नागरिक की तरह उसने हर संभव माध्यम से हर उस मंच तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की, जहां से उसे बदलाव या मदद की उम्मीद थी। लंबे समय तक सरकारों पर भरोसा किया सिस्टम से उम्मीदें रखी ।
इसके तमाम प्रमाण मौजूद हैं कि प्रकाश पाण्डेय लगातार संघर्ष करता रहा, सरकार और सिस्टम को चेताता रहा। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक कहां उसने गुहार नहीं लगायी, लेकिन क्या हासिल हुआ ? सिर्फ उपेक्षा और अनदेखी, कहीं कोई सुनवाई नहीं । नतीजा सामने है अंतत: उसने इतना बडा आत्मघाती निर्णय लिया । काश सरकारें और सिस्टम उस मनोदशा को महसूस कर पाते जिसमें उसने यह कदम उठाया। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि सत्ताधारी पार्टी के लिये यह सियासी ड्रामा या षडयंत्र है तो विपक्ष के लिये सियासत का एक मुद्दा ।
जरा याद कीजिये वह मंजर किस तरह प्रकाश पाण्डेय जहर खाकर भाजपा दफ्तर में चल रहे मंत्री के जनता दरबार में पहुंचा । वहां मौजूद तमाम लोगों ने उस वक्त प्रकाश पाण्डेय के कदम को किसी ने ड्रामा बताया तो किसी ने उसे कांग्रेसी बताते हुए कांग्रेस की सियासी चाल । सवाल यह है कि प्रकाश पाण्डेय अगर गलत था तो क्यों सरकार आज बैकफुट पर है ? सरकार इसलिये बैकफुट पर है क्योंकि सवाल सिर्फ राज्य सरकार से ही नहीं बल्कि केंद्र की मोदी सरकार की नीति से भी जुड़ा है ? साफ नजर आ रहा है कि सरकार पर हर हाल में इस मुद्दे को दबाने का दबाव है ।
जीएसटी लागू होने के बाद देश में किसी व्यवसायी की आत्महत्या का यह पहला मामला है और यह अपयश आज उत्तराखंड सरकार पर है। इसीलिये सरकार बिना सोचे समझे फिलहाल इस मसले को शांत करने में जुटी है, सरकार की प्राथमिकता घटना से सबक लेने और कारणों के उपाय की कहीं नजर नहीं आती । अफसोसजनक यह है कि सरकार को यह अंदाजा ही नहीं है कि सरकार का मुआवजे का यह फैसला आने वाले दिनों में कितना गंभीर होने जा रहा है ।
उत्तराखंड में ही न जाने कितने प्रकाश पाण्डेय हैं जो सिस्टम से तंग है, लापरवाह सिस्टम उनके लिये मुसीबत बना हुआ है। सरकार तो अब बड़ा मुआवजा घोषित कर एक तरह से यह भी मान चुकी है पाण्डेय की मौत की जिम्मेदार सरकार और सिस्टम ही है। सरकारी सिस्टम इस भ्रम में है कि कर्ज के दबाव में प्रकाश पाण्डेय ने आत्महत्या की है, जबकि सच्चाई यह है कि आत्महत्या राजतंत्र और उसकी व्यवस्था पर सीधी चोट है । इसे सिर्फ नोटबंदी और जीएसटी के आफटर इफेक्ट के तौर पर ही नहीं देखा जा सकता । यह तो सिस्टम में आम आदमी की हैसियत से जुड़ा सवाल है।
यह आम आदमी की जान की कीमत से जुड़ा मुद्दा है, आने वाले वक्त के लिये यह सरकार हो या विपक्ष हर किसी के लिये बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। इस घटना ने यह भी साबित किया है कि एक आम आदमी की आवाज की तब तक कोई सुनवाई नहीं जब तक वह जिंदा है । अकेले सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं आने वाले दिनों में लंबे समय तक पूरे देश के सियासत में प्रकाश पाण्डेय की आत्महत्या की गूंज रहेगी । आज इस मुद्दे पर भले ही सरकार से लेकर विपक्ष तक सियासत में रमे हैं , लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि यह सिर्फ सियासत का मुद्दा नहीं बल्कि संभलने का मुद्दा है । अभी भी संभले नहीं तो अपनी बात “ढंग” से सुनाने का प्रकाश पाण्डेय एक नया रास्ता सुझा गए हैं ।