पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक का राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) तैयार करवाने में अहम योगदान रहा है। इसकी चर्चा भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में होने लगी है। वह भाजपा की दो दिवसीय प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के सिलसिले में हल्द्वानी पहुंचे हैं।
इस नीति को लेकर डा. निशंक सुनहरे भविष्य की उम्मीद जगाते हुए कहते हैं, वैसे भी जब विकसित देश अपनी मातृ भाषा में पढ़ाई कर तरक्की कर सकते हैं तो भारत क्यों नहीं। भारत भी अब मातृभाषा में शिक्षा के जरिये और तेजी से तरक्की करेगा। क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे।
भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने शहर में पहुंचे डा. निशंक मंगलवार की शाम को बातचीत में उन्होंने नई शिक्षा नीति पर खुलकर बात की और कहा कि हमने नारा दिया है स्टडी इन इंडिया और स्टे इन इंडिया। एनईपी हमारे इस नारे को साकार करेगा। जब हमें उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा अपने ही देश में मिलने लगेगी। यहां तक की अपनी ही मातृभाषा में मिलेगी तो भारत में ही अवसरों की संभावनाएं खुली रहेंगी।
डा. निशंक ने बताया कि इस समय देश से बाहर आठ लाख छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं। इससे प्रतिवर्ष दो लाख करोड़ रुपये बाहर चला जाता है। हमें पैसा व प्रतिभा दोनों को रोकना है। ऐसा एनईपी-2020 की वजह से ही संभव है। बढ़ते अंग्रेजी के प्रभाव और सरकारी स्कूलों के भी अंग्रेजीकरण के सवाल पर डा. निशंक कहते हैं, इसके लिए सीबीएसई का पाठयक्रम भी बदलेगा। अंग्रेजी का संकट है, लेकिन यह संकट भी एनईपी की वजह से ही दूर होगा।
यह नीति भारतीयता को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। यह दुनिया का सबसे बड़ा नवाचार है। वैसे भी ध्यान देने की बात यह है कि जब जापान, फ्रांस, जर्मनी समेत तमाम देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं और विकसित राष्ट्र हैं। ऐसे में भारत की समृद्ध मातृभाषा में भी पढ़ाई हो सकती है। अब इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई भी अपनी ही भाषा में की जा सकेगी। यह अपने राष्ट्र के लिए बड़ी उपलब्धि है।
सरे दलों की सरकारों ने किया समर्थन
डा. निशंक कहते हैं, एनईपी को लेकर उन्होंने देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, शिक्षा मंत्रियों, शिक्षा सचिवों से बात की। सबसे अच्छी बात यह रही कि दूसरे दलों की सरकारों ने भी इस नीति का समर्थन किया। इसे सराहा। अब इसके क्रियान्वयन में किसी तरह की अड़चन नहीं है।