- के.वी. वाई. के अधिकारी मंत्री को नहीं देते कार्यों की जानकारी
- कुछ तो गड़बड़ है जो मंत्री को जानकारी को नहीं करते साझा
- संस्थाओं के चयन,प्रशिक्षण कार्यों की विधिवत गहनता से जांच की मांग
- मंत्री ने कहा यदि जांच हुई तो योजना में फर्जीवाड़े और गोलमाल के तत्थ्य सामने आ जायेंगे
- विभागीय सचिव की धींगा -मुश्ती से हलकान हैं मंत्री से लेकर अन्य कर्मचारी तक
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड राज्य में ब्यूरोक्रेसी जनप्रतिनिधियों पर कितनी हावी है इसकी तस्दीक कौशल विकास एवं सेवायोजन विभाग के मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की वह चिट्ठी कह रही है जो उन्होंने 21 जून 2018 को पाने पत्रांक 481 के द्वारा अपर मुख्य सचिव कौशल विकास को लिखी है। इतना ही नहीं पत्र में साफ़ लिखा गया है कि प्रदेश के कौशल विकास से सम्बंधित कौन-कौन कार्य भारत सरकार की योजनाओं के तहत संचालित किये जा और किन-किन संस्थाओं से कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसकी जानकारी मंत्री द्वारा मांगे जाने के बाद भी विभाग द्वारा उनको जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गयी है।
सूबे की राजनीती में सबसे बरिष्ठ कैबिनेट मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत जैसे दबंग मंत्री के इस पत्र के लिखे जाने से यह साफ़ है कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी का सरकार के साथ समन्वय नहीं है और वह अपनी मर्जी से उत्तराखंड में सरकार चला रही है। यह पत्र तो मात्र एक उदाहरण है जो सूबे के नेताओं और ब्यूरोक्रेसी के संबंधों को भी उजागर करता है। चर्चा है कि सूबे में ब्यूरोक्रेसी के मनमाने रवैये के चलते ही सूबे की जनता का जनप्रतिनिधियों से संघर्ष बढ़ रहा है जिसका परिणाम बीते दिनों मुख्यमंत्री के जनता दर्शन कार्यक्रम के दौरान एक शिक्षिका के आक्रोश के रूप में सरकार को झेलना पड़ा। सूबे के बुद्धिजीवियों का मानना है कि यदि सूबे के ब्यूरोक्रेट्स की जनप्रतिनिधियों के साथ इसी तरह से जानकारियों को छिपाने की आदत रही तो एक दिन उत्तराखंड में जनप्रतिनिधियों और ब्यूरोक्रेट्स में संघर्ष होना कोई बड़ी बात नहीं होगी।
गौरतलब हो कि डॉ.हरक सिंह रावत जैसे मंत्री जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी मंत्रित्व पद का दायित्व कल्याण सिंह जैसे मुख्यमंत्री के कार्यकाल में निर्वहन कर चुके हैं का विभागीय अपर मुख्य सचिव को इसतरह के पत्र का लिखा जाना काफी गंभीरता पूर्ण मामला है वह भी तब जब वे उसी विभाग के मंत्री है। अब कैबिनेट मंत्री के इस पत्र पर अपर मुख्य सचिव कौशल विकास क्या कार्रवाही करते हैं यह तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन पत्र में दिल्ली में दिल्ली में केन्द्रीय कौशल विकास मंत्री कि अध्यक्षता में विज्ञान भवन में हुई राज्यों के कौशल विकास विभाग के मंत्रियों की कांफ्रेंस का जो जिक्र सूबे के कैबिनेट मंत्री ने किया है वह और भी चौंकाने वाला और गंभीर प्रकृति का है।
पत्र में डॉ. रावत ने लिखा है कि जहाँ देशभर के कौशल विकास विभाग के मंत्रियों के साथ अपर मुख्य सचिव अथवा सचिव स्तर का कोई अधिकारी मौजूद था लेकिन हमारे राज्य से विभाग द्वारा अत्यंत न्यून स्तर का एक अधिकारी भेज कर विभाग ने अपने कर्तव्यों कि इतिश्री कर डाली। वहीँ मंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि जहाँ देश के अन्य प्रदेशों के अपर सचिव व सचिव द्वारा बहुत ही सुन्दर तरीके से कार्यों का प्रस्तुतीकरण किया गया वहीँ दुर्भाग्य से हमारे प्रदेश से जनपद स्तर के न्यूनतम अधिकारी को वहां भेजा गया जिसे प्रदेश में संचालित कौशल विकास योजनाओं की कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने पत्र में बड़ी साफगोई से बताया कि मंच से उत्तराखंड कि योजनाओं के बारे में अपनी जानकारी के अनुसार ही मुझे प्रस्तुतिकरण करना पड़ा।
अपर मुख्य सचिव को प्रेषित पत्र में सूबे के कौशल विकास मंत्री ने कहा है कि मेरे संज्ञान में आया है कि राज्य में कौशल विकास संस्थाओं के चयन से लेकर प्रशिक्षण तक के कार्यों की विधिवत गहनता से जांच की जाय तो इन योजनाओं में किये गए फर्जीवाड़े और गोलमाल के काफी तत्थ्य सामने आ जायेंगे यह बात हम नहीं राज्य के कौशल विकास एवं सेवायोजन विभाग के मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की वह चिट्ठी कह रही है जो उन्होंने 21 जून 2018 को पाने पत्रांक 481 के द्वारा अपर मुख्य सचिव कौशल विकास को लिखी है।
विभागीय मंत्री को आखिर क्यों अपर मुख्य सचिव कौशल विकास को पत्र लिखने पर क्यों मजबूर होना पड़ा इसको लेकर सत्ता के गलियारों में चर्चा आम है कि विभाग का सचिव न तो विभागीय कार्यों कि जानकारी से मंत्री को अपडेट रखता है और न ही वह मंत्री कि बैठकों में ही उपस्थित रहता है इतना ही नहीं विभागीय सचिव मंत्री को बिना बताये जहाँ वह कई विदेश यात्राओं को करता रहा है वहीँ वह कोई वे विभागीय फाइल मंत्री के अनुमोदन तक को नहीं भेजता। इतना ही नहीं चर्चा सरे आम है कि सूबे में कौशल विकास के कार्यों में संस्थाओं के चयन और प्रशिक्षण तक के बारे में विभागीय सचिव द्वारा मंत्री से कोई विचार विमर्श तक नहीं किया। जिससे मंत्री को बीते दिनों दिल्ली के विज्ञान भवन में आहूत देश के कौशल विकास विभाग के मंत्रियों के सामने प्रस्तुतिकरण में समस्या उत्पन्न हुई। इतना ही नहीं चर्चा तो यहाँ तक है कि विभागीय सचिव ने विभाग में अपना एकाधिकार रखने कि नियत से अपर सचिव तक का एक पद समाप्त कर डाला जिसका सूबे के सचिवालय में व्यापक विरोध भी हुआ था। वहीँ चर्चा यह भी है कि विभागीय सचिव ने विभाग के एक संविदा कर्मचारी के मानदेय में सूबे के अन्य संविदा कर्मचारियों के मानदेय के नियमों को धत्ता बताते हुए उसका मानदेय 25 हज़ार से 75 हजार कर डाला है।