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कारगिल विजय दिवस : भारतीय सैनिकों के पराक्रम को न भूलने वाली गाथा
21 वर्ष पूर्व भारतीय पराक्रमी सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना का मुंहतोड़ जवाब देकर प्राप्त की अद्भुत विजय हासिल
कारगिल युद्ध के विजय दिवस को मनाते समय प्रत्येक भारतीय को राष्ट्रीय जीवन मूल्यों को नई दिशा प्रदान करने एवं देश की एकता और अखंडता को अक्षुण रखने की शपथ लेनी होगी
जब पाकिस्तानी सेना अपने सैनिकों के शव छोड़कर भाग निकली
कमल किशोर डुकलान
40 दुश्मनों को ढेर कर कब्जाई थी मॉस्को वैली और तोलोलिंग : भोजराज सिंह
अंधेरी रात, दुर्गम चढ़ाई, सिर के ऊपर से गुजरती गोलियां और रॉकेट लेकिन न आंखों में डर, न मन में कोई चिंता। बस एक ही बात जो दिमाग में उस वक्त तैर रही थी, वो ए थी कि किसी भी तरह चोटी पर चढ़ना है और वहां बंकर बनाए बैठे दुश्मन से अपनी पोस्ट वापस लेकर तिरंग फहराना है।
मैं हूं भोजराज सिंह, मेरा मूल निवास पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) में है, लेकिन अब परिवार सितारगंज के सिसौना में बस गया है। आज मैं कारगिल युद्ध से जुड़ी अपनी यादें आपसे साझा कर रहा हूं। मई में पाकिस्तान की करतूत का खुलासा होने के बाद सेना को कारगिल भेजने का सिलसिला शुरू हो गया था। पाकिस्तानी सेना ने हमारी कई चोटियों पर कब्जा जमा लिया था और वहां बंकर बना लिए थे। मैं उस वक्त नागा सेकंड में राइफलमैन था। जून के पहले सप्ताह में कुमाऊं रेजीमेंट को कारगिल रवाना कर दिया गया था। इसके साथ ही नागा सेकंड की भी 30 जवानों की टुकड़ी भेजी गयी, जिसमें एक मैं भी था।
हमें पहला टारगेट दिया गया मॉस्को वैली का। दुर्गम चढ़ाई पर स्थिति इस पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा किया था और वो चोटी से लगातार भारतीय सेना पर फायरिंग, गोलीबारी कर रही थी। वो नौ जून 1999 की रात थी, जब हमारी टुकड़ी को मॉस्को वैली पर तिरंगा फहराने का आदेश मिला। घुप अंधेरे में हम सात सौ जवान हथियार लेकर निकल पड़े। अगला कदम कहां पड़ रहा है, यह भी हमें नजर नहीं आ रहा था, लेकिन मन में सिर्फ एक ही बात बैठ गयी थी कि चाहे जो हो जाए, मॉस्को वैली को दुश्मन से वापस लेना है। पाकिस्तानी सेना को हमारी हलचल का पता चल गया और वो ऊपर से गोलियां बरसाने लगे। हमने भी जवाबी फायरिंग की। धीरे-धीरे हम चोटी पर चढ़ गए और कुछ घंटों के संघर्ष के बाद मॉस्को वैली पर फिर भारतीय सेना काबिज थी।
मॉस्को वैली की कामयाबी के बाद हमने इसकी नजदीकी चोटी फतह की और फिर हमें अगला लक्ष्य मिला था तोलोलिंग का। तोलोलिंग कारगिल युद्ध की सबसे अहम और चर्चित चोटी रही। माना जाता है कि कारगिल का सबसे जटिल अभियान तोलोलिंग को फतह करने का ही था। मेरे पास रॉकेट लांचर था, जिससे मैं लगातार दुश्मन पर हमला कर रहा था। 13 जून 1999 की सुबह चार बजे तोलोलिंग भारत के कब्जे में आ गया। इस दौरान हमने दुश्मन के 40 जवानों को ढेर किया, रानीखेत के जांबाज लांसनायक मोहन सिंह भी इस अभियान के दौरान शहीद हो गए। लेकिन, जब चोटी पर फहराता तिरंगा नजर आया तो हम सारे दर्द भूल गए।
आज भी वो पल याद आते हैं तो दिल जोश और जज्बे से भर जाता है। भारतीय सेना का दुनिया में कोई जवाब नहीं। हां, एक बात जरूर बताना चाहूंगा चोटी छोड़ने के बाद पाकिस्तानी सेना अपने सैनिकों के शव छोड़कर भाग निकली। कारगिल की शुरुआत में हमारे कैप्टन और जवानों के शव पाकिस्तानियों ने क्षत-विक्षत कर लौटाए थे, लेकिन भारतीय सेना मानवीय मूल्यों में भी सर्वोच्च है। हमने मॉस्को वैली और तोलोलिंग में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों के शव पूरे रीति-रिवाज के साथ सुपुर्द-ए-खाक किए।
-राइफलमैन भोजराज सिंह (रि.) की कलम से