CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ सात पार्टियों ने दिया महाभियोग का नोटिस

- चीफ जस्टिस की निष्पक्षता के लिए हो पहचान : कपिल सिब्बल
नयी दिल्ली : पिछले हफ्ते से चल रही कयासबाजियों के बाद शुक्रवार को कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात कर उन्हें प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को नोटिस सौंप दिया।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस नोटिस पर सात राजनीतिक दलों के करीब 60 से ज्यादा राज्यसभा सांसदों ने अपने दस्तखत किए। जिन पार्टियों के सांसदों ने इस नोटिस पर दस्तखत किए वो हैं- कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, सीपीएम, सीपीआई, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी। इन राजनीतिक पार्टी के नेताओं ने इससे पहले संसद में मुलाकात की और महाभियोग नोटिस को अंतिम रूप दिया।
बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि महाभियोग के नोटस को आगे बढ़ाया जा रहा था। संसद में जिन नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया वो थे- कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला के साथ ही सीबीआई के डी. राजा और एनसीपी के वंदना चव्हाण शामिल थे।
महाभियोग नोटिस ऐसे वक्त पर दिया गया है जब एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच को लेकर लगाई गई कई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश की अगुवाई वाली बेंच ने सुनाया था।
लोया उस शोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ की सुनवाई कर रहे थे जिसमें बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह का नाम था। जस्टिस लोया की नागुपर में एक समारोह के दौरान नागपुर में 2014 के दिसंबर महीने में दिल का दौरा पड़ने के चलते मौत हो गई थी। उसके जल्द बाद ही अमित शाह को केस से बरी कर दिया गया था।
प्रधान न्यायधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की सलाह 12 जनवरी के सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आई थी। गुरुवार को जज लोया की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस ने इसे ‘निराशाजनक दिन’ बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चार जजों ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस केस को लेकर चिंता जाहिर की थी।
उधर, इस मामले पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि चीफ जस्टिस को वकीलों की भावना समझनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि तीन महीने में कुछ भी नहीं बदला। न्यायपालिका के बिना लोकतंत्र नहीं, लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में। सिब्बल ने कहा कि जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद भी कुछ नहीं बदला। उन्होंने कहा कि ऐसा होना चाहिए कि चीफ जस्टिस निष्पक्षता के लिए जानें जाएं।
जानें : जज को कब और कैसा हटाया जा सकता है
हटाने का आधार
जजों को हटाने के दो आधार हैं- दुर्व्यवहार का साबित होना या फिर अक्षमता।
संविधान के आर्टिकल 124 के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के जज को राष्ट्रपति के आदेश पर हटाया जा सकता है।
संसद के कहने पर राष्ट्रपति की तरफ से हटाने का आदेश जारी किया जा सकता है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में उस मुद्दे को लेकर बहुमत हो (जिसमें उपस्थित और वोटिंग करनेवाले सदस्यों की संख्या दो तिहाई से कम ना हो)। उसे उसी सत्र में राष्ट्रपति के पास हटाने के लिए संसद की तरफ से भेजा गया हो।
हटाने की प्रक्रिया
-हटाने के लिए प्रस्ताव को लोकसभा के 100 सदस्य या फिर राज्यसभा के 50 सदस्य के हस्तक्षर हों और वह लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा के सभापति को दिया जाए।
-हटाने का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन के पटल पर रखा जा सकता है।
-स्पीकर/चेयरमैन उस प्रस्ताव को स्वीकार या खारिज कर सकता है।
-अगर वह स्वीकार किया जाता है तो स्पीकर/चेयरमैन को तीन सदस्यीय समिति गठित करनी होगी जो पूरे आरोपों की जांच करे। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या जज शामिल हों, एक हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस हो और एक मशहूर कानूनविद हो।
-अगर समिति के पास जज के ऊपर लगाए गए आरोप (दुर्व्यवहार या अक्षमता) साबित होता है तो जिस सदन में यह प्रस्ताव लाया गया है वहां उस पर विचार के लिए लाया जा सकता है।
-एक बार जैसे ही उस सदन में जहां पर हटाने का प्रस्ताव रखा गया है, विशेष बहुमत के साथ पास हो जाता है उसके बाद यह दूसरे दूसरे सदन में भेजा जाता है। वहां भी उसे विशेष बहुतम के साथ पास करना होता है।
-विशेष बहुमत के साथ संसद के दोनों सदनों में इसके पास होने के बाद जज को हटाने के बारे में राष्ट्रपति को बताया जाता है।
-आखिर में राष्ट्रपति की तरफ से जज को हटाने का आदेश दिया जाता है।