मी उत्तराखंडी छौं, मिलिए “पहाड़ फ्रेम” के क्रीएटर अमन से
महज 2 दिन में ही जुडे 40 हजार से ज्यादा उत्तराखंडी
संजय चौहान
महज 24 साल की उम्र। इस उम्र में जहाँ युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहतें है। वहीँ अमन छोटे छोटे नौनिहालों का भविष्य बांच रहें हैं। अमन इन नौनिहालों को बेहतर शिक्षा और सुनहरे भविष्य को लेकर तो सचेत कर रहें हैं। लेकिन इन सबके बीच अमन के एक आइडिया ने गांव से लेकर सात समंदर पार में बसे उत्तराखंडी को एक फ्रेम के अंदर पिरो दिया। हर कोई अमन के मी उत्तराखंडी छौं, मेरो पहाड फ्रेम से जुडना चाहता है। महज 2 दिन में 40 हजार उत्तराखंडी अमन के मी उत्तराखंडी छौं, मेरो पहाड फ्रेम से जुड़ी चुकें हैं। लोगों में अपनी जन्मभूमि की पहचान से जुड़ने की लगी होड़ सी लगी है।
भारत नेपाल सीमा में शारदा नदी के दाहिनीं और बसा एक खूबसूरत शहर है खटीमा। जो न केवल एक शहर है बल्कि दो देशों की संस्कृति, मेलजोल, आपसी भाईचारे की मजबूत डोर को भी बांधे है। उत्तराखंड राज्य के उधमसिंहनगर जनपद में रुद्रपुर-टनकपुर मार्ग पर स्थित खटीमा में लोकसंस्कृति की अनुपम छटा देखने को मिलती है। 28-29 अप्रैल 2017 को खटीमा के पास टनकपुर- बनबसा में आयोजित उमेश डोभाल पुरुस्कार सम्मान समारोह में सम्मलित होने के दौरान पहली मर्तबा इस शहर को करीब से देखा था। जो पहली ही नजर में मुझे भा गया था। हो भी क्यों न इसी शहर के लोगों की बदौलत ही हमारे अलग राज्य का सपना पूरा हो पाया था। 1 सितम्बर 1994 के दिन अलग राज्य की मांग पर खटीमा गोलीकांड में 7 आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे और 170 से भी ज्यादा आन्दोलनकारी घायल हो गए थे। इस घटना ने पूरे उत्तराखंड में भारी आक्रोश उत्पन्न कर दिया था। जिसके बाद अलग राज्य की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आये थे। पूरा प्रदेश खटीमा के शहीदों और आन्दोलनकारियों का सदा ऋणी रहेगा। वीरों की इस तपोभूमि को शत-शत नमन है।
गौरतलब है की वीरो की इस तपोभूमि में मारवाड़ी परिवार के होनहार अमन अग्रवाल ‘मारवाड़ी’ का ‘मी उत्तराखंडी छौं, मेरो पहाड फ्रेम’ इन दिनों बेहद चर्चा में है। अमन के इस फ्रेम में महज 2 दिन में 40 हजार से अधिक लोग जुड चुके हैं। अमन के पिताजी का खटीमा में अपना निजी व्यवसाय है तो माँ गृहणी। जबकि दीदी की शादी हो चुकी है। अमन अभी महज 24 साल का है। लेकिन कार्यों, अनुभवों और सोचने की क्षमता को देखकर बेहद आश्चर्य होता है की इतनी छोटी उम्र में इतनी दूरदर्शिता। अमन की पढाई-लिखी खटीमा से ही हुई है। 10वीं और 12 वीं खटीमा से करने के बाद अमन ने आम्रपाली हल्द्वानी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल की। वर्तमान में अमन खटीमा के एक निजी संस्थान में बतौर कम्प्यूटर लेक्चरर कार्यरत है। जिसमें वे छात्र-छात्राओं को कम्प्यूटर की शिक्षा देते हैं। जबकि पेशे से अमन एक ग्राफिक डिजाइनर भी है। अमन की प्रतिभा यहीं पर नहीं रूकती हैं। ये एक बेहतरीन कवि भी है तो एक शानदार एंकर। खटीमा से लेकर हल्द्वानी और देश के कोने कोने में इनकी एंकरिंग का हर कोई मुरीद है। अपने कार्यों के प्रति इतने सजग की आज अल सुबह ही सैनिक नगरी लैंसडौन के लिए निकल गये हैं।
अमन से उनके जीवन और उनके मी उत्तराखंडी छौं, मेरो पहाड फ्रेम पर विस्तार से बातचीत हुई। अमन कहतें हैं कि मैं बचपन से ही हमेशा कुछ अलग करता आया हूँ। चाहे अपने परिवार से हो या फिर अपने स्कूली दिनों और बीटेक की पढाई के दौरान। मेरा मानना है की जीवन का उद्देश्य महज स्वयं या परिवार तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। हमें चाहिए की कैसे लोगों की सहायता की जा सके। मैं लोगों को कैरियर गाइडेंस से लेकर कम्प्यूटर की जानकारी देता रहता हूँ। ताकि लोगों को इसका फायदा मिल सके। मैं चाहता हूँ की लोगों के लिए कुछ कर सकूँ। मैं मोटिवेटर हूं। मुझे जब भी समय मिलता है तो मै आसपास के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने निकल जाता हूँ। विगत दिनों गर्मियों के अवकाश में मैं पिथौरागढ़ के शीतकालीन स्थलों के स्कूलों में गया। जहाँ पर गर्मियों में अवकाश नहीं होता है। सर्दियों में होता है। वहां मैंने स्कूलों में छात्रों को निशुल्क करियर गाइडेंस से लेकर समाज में व्याप्त बुराइयों, नशे को लेकर उपयोगी जानकरी दी? ताकि छात्रों को सही और गलत की जानकरी हो सके। और वो अपने जीवन में मेरी बातों का अनुसरण कर सकें और एक बेहतर व सफल इंसान बन पायें।
अमन कहते हैं कि मेरा दिन ही कम्प्यूटर से शुरू और समाप्त भी कम्प्यूटर से होता है। इसलिए हमेशा कुछ नया करने की सोचता हूँ। कुछ ही दिन पहले मुझे फेसबुक में फ्रेम बनाने के बारे में पता लगा। तो मेरे मन भी विचार आया क्यों न एक फ्रेम बनाया जाय जो मेरे लिए यादगार हो। मेरा परिवार मूलतः मारवाडी है व राजस्थान से है। मेरे पापा खटीमा में ही बस गए और मेरी पैदाइस से लेकर पढ़ाई खटीमा में ही हुई। खटीमा ही मेरी जन्मभूमि है। मुझे खटीमा से बेहद प्यार है। हमारे आराध्य खाटू श्याम जी है। इसलिए सबसे पहले मैंने उनका फ्रेम बानाया जिसे फेसबुक ने अप्रूवल दिया, फिर मैंने उसे फेसबुक पर अपडेट कर दिया। अभी तक हमारे आराध्य खाटू श्याम जी वाले फ्रेम में 4 हजार से भी अधिक लोग जुड़ चुकें हैं। जिसके बाद मेरा हौसला बढ़ा और मैंने अपनी जन्मभूमि के लिए दूसरा फ्रेम बनाने की सोची। मुझे बचपन से पहाड़ों से एक लगाव सा रहा है। मैं कई बार पहाड़ों में हफ़्तों तक रुका हूँ। मेरे जेहन में था कि पहाड़ के लिए कुछ करूँगा। जिसकी परणति मी उत्तराखंडी छौं, मेरो पहाड फ्रेम आप सबके सामने है। महज 2 दिन में ही उत्तराखंड से लेकर देश और दुनिया की विभिन्न हिस्सों तक अभी तक 40 हजार से अधिक लोग इस फ्रेम से जुड़ चुके हैं। इस फ्रेम से लोग अपने आप को इस तरह से जुड़ेंगे मुझे खुद भी इतना अहसास नहीं था। लेकिन भरोसा जरुर था की ये फ्रेम लोगों को जरुर पसंद आएगा। मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुई जब उत्तराखंडी फ्रेम से जुड़ने वालों में अप्रवासी उत्तराखंडी दुबई, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड सहित दुनिया के कोने कोने से लोग जुड़ते चले जा रहे हैं।