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कितना सच ? उत्तर प्रदेश के तीन जिले हरियाणा और दो उत्तराखंड में शामिल किये जा सकते हैं….!!

ये चर्चाएं कितनी हैं दमदार और कितनी बे…दम ?
  • क्या बिजनौर तथा सहारनपुर जिलों को शामिल किया जाएगा उत्तराखंड में…!!
  • क्या मेरठ, मुजफ्फरनगर और शामली को हरियाणा में  किया जायेगा शामिल .!!
  • चर्चा है क्या इस पर सहमती बन गई है ?
  • तीनो राज्यों के मुख्यमंत्री से प्रधांनमंत्री की बात भी हो गई है?
  • 31 मार्च 2018 तक ये बात मोदी सरकार जनता के सामने ला सकती है क्या ?…!!
लोकसभा चुनाव से पूर्व उत्तराखंड का भौगोलिक नक्‍शा बदलने की तैयारियां अंतिम चरण में है, 22 जनवरी को लखनऊ में होगी बैठक, उच्‍च विश्‍वसनीय सूत्रो के अनुसार उत्‍तराखण्‍ड में सहारनपुर और बिजनौर जिले को शामिल करने की रणनीति अंतिम चरण पर है, जबकि मेरठ, मुजज्‍जफरनगर, शामली को हरियाणा प्रदेश में मिलाये जाने की दीर्घकालिन रणनीति को मुकम्‍मल जामा पहनाने की तैयारी पूर्ण कर ली है, वही पश्‍चिमी उत्तरप्रदेश का कुछ हिस्‍सा दिल्‍ली में शामिल किया जायेगा, इस तरह संघ विशेष रणनीति तैयार कर रहा हे, पश्‍चिमी उत्तरप्रदेश के लिए संघ ने यह योजना तैयार की है, गाजियाबाद, नोयडा, बुलंदशहर को दिल्‍ली में शामिल कराये जाने की रणनीति तैयार हो चुकी है, वही एनसीआर में शामिल होने वाले नए जिले मथुरा अलीगढ़, मुरादाबाद, ज्योतिबा फूले नगर, शामली, बिजनौर और सहारनपुर हो सकते हैं। एनसीआरपीबी ने अपने एरिया के सभी जिलों के विकास के लिए एक अलग से जोनल प्लान बनाया हुआ है, जिसकी मियाद वर्ष 2021 में पूरी हो जाएगी। एनसीआरपीबी सेल के अधिकारी टीपीएम कुमार ने कहा कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश के कौन से जिले एनसीआर शामिल किए जा सकते हैं, इसका सर्वे पूर्ण हो चुका है
ज्ञात हो कि एनसीआर में शामिल रीजनल प्लान साल 2000 में बना था जिसे 2021 तक के लिए बनाया गया था। आने वाले कुछ सालों में ही इसकी मियाद पूरी होने वाली है। नए रीजनल प्लान को बनाने का काम 2018 से शुरू होगा। ऐसे में नए जिलों को एनसीआर में शामिल करने का फैसला दिसंबर 2017 तक होने की उम्मीद है।
22 जनवरी को एनसीआर में शामिल किए जाने वाले जिलों के डीएम के साथ लखनऊ में होने वाली बैठक में विधिक रूप से सहारनपुर को भी एनसीआर में शामिल करने संबंधी प्रोजेक्ट को ग्रीन सिग्नल मिलेगा। 22 जनवरी को लखनऊ में मुजफ्फरनगर, शामली व बिजनौर समेत उप्र के छह ओर जिलों को एनसीआर में शामिल करने के लिए हो रही बैठक को ध्यान में रखते हुए यह प्रोजेक्ट तैयार कराया गया।
संघ के क्षेत्र प्रचारको द्वारा दिये गये संकेत के तहत इस तरह लोकसभा चुनाव से पूर्व अपनी यह योजना कार्यान्‍वित करने की योजना विगत वर्ष ही तैयार कर ली थी, वही राज्‍य के राजनीतिक नेताओ ने भी इस पर अपनी मौन सहमति दी है, वही इस योजना का उत्‍तराखण्‍ड में तीव्र विरोध होने की भी संभावना देखते हुए इस पर गोपनीय रूप से रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है, वही उ0प्र0 के मुख्‍यमंत्री ने इस योजना को सहमति देते हुए तेजी दी है, सूत्रो का कहना है कि संघ की यह विशेष रणनीति है, जिसके तहत कई राज्‍यो के भौगोलिक नक्‍शे में बदलाव की तैयारियां की गयी है, इस समय उत्‍तराखण्‍ड, उत्‍तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल में भाजपा की सरकारे है, इसको देखते हुए संघ ने दूरगामी रणनीति तैयार कर भौगोलिक परिवर्तन की योजना तैयार की है, संघ के उच्‍च स्‍तर से इस तरह के निर्देश दे दिये गये है, इसके बाद भाजपा के संबंधित राज्‍य सरकारे इसके लिए तैयारियां शुरू कर देगी, वही एक विशेष नीति के तहत नए राज्यों के गठन की मांग तेज की गयी है, जिस पर उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश की सीमा पर मौजूद उन सैकड़ों गांवों की मांग पर सकारात्मक रुख का संकेत दिया है जो उत्तराखंड में शामिल होना चाहते हैं।
 वही दिल्‍ली से वरिष्‍ठ पत्रकार सत्‍यम जी लिखते है कि *सहारनपुर और बिजनौर जल्द शामिल हो सकते हैं उत्तराखंड में…. और मेरठ, मुजफ्फरनगर और शामली जल्द शामिल हो सकते हैं हरियाणा में___* अगर सूत्रों पर भरोसा करें तो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री की इस बारे में चर्चा हो चुकी है। 31 मार्च 2018 तक सभी के सामने यह मसौदा पेश होगा___ *ऐसा करके केंद्र सरकार एक तीर से कई निशाने साधेगी…* वर्षों से उठती आ रही हरित प्रदेश की मांग खत्म होगी…  पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बनाने की मांग पर भी विराम लग जाएगा… मायावती और मुलायम सिंह यादव की राजनीति भी खत्म होगी…  अजीत सिंह की जाटों वाली राजनीति से भी छुटकारा मिलेगा…. पश्चिम उत्तर प्रदेश के पाॅचो जिले दलित और मुस्लिम बाहुल्य है जिससे मायावती और मुलायम को राजनीति करने में आसानी होती है और अजीत सिंह भी जाट लोबी के नाम पर अपने फायदे की बार-बार राजनीति करते हैं… इसलिए केंद्र सरकार ने सभी परेशानियों का इलाज करने का मन बना लिया है___
ज्ञात हो कि लम्‍बे समय से उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती राज्य के पश्चिमी इलाके में अलग राज्य हरित प्रदेश की मांग कर रहती रही हैं वहीं बिजनौर और सहारनपुर जिले के करीब 200 से 300 सीमावर्ती गांव लम्‍बे समय से यह मांग कर रहे हैं कि इन गांवों को उत्तराखंड में शामिल कर लिया जाए। इसको देखते हुए संघ ने अपनी विशेष रणनीति तैयार की है जिसको शीघ्र परवान चढाया जा सकता है। बिजनौर और सहारनपुर के कुछ गांवों को उत्तराखंड में शामिल कराने के लिए उत्तराखंड के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी उस समय इन गांवों से बातचीत करने को सहमत नजर आये थे।
वही अलग उत्तराखंड राज्य के गठन के पहले ही सहारनपुर और बिजनौर के कुछ गांवों के लोगों ने खुद को अलग राज्य में शामिल करने के लिए धरना प्रदर्शन किया था। इन गांवों को पानी और बिजली भी उत्तराखंड से ही मिलती है। इन गांवों के किसान अपना गन्ना भी उत्तराखंड में ही बेचते हैं। वहीं दूसरी ओर सहारनपुर सबसे अधिक राजस्व उत्पादन वाले जिलों में शुमार है। यहां आईटीसी जैसी दिग्गज कंपनियां मौजूद हैं।
वही दूसरी ओर एक बार बिजनौर जिले में पड़ने वाले अफजलगढ़ इलाके के लोगों ने उत्तराखंड में विपक्ष के तत्‍कालीन नेता हरक सिंह रावत को सम्मानित था तब इस मसले पर हरक सिंह ने उत्‍तराखण्‍ड राज्य की विधानसभा में एक निजी विधेयक पेश करने का भरोसा दिलाया था। हरक सिंह रावत ने उस समय इन गांवो के उत्‍तराखण्‍ड में शामिल होने की पैरवी करते हुए कहा था, ‘मुझे सहारनपुर के बारे में पता नहीं है मगर बिजनौर के करीब 185 गांव हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं।
वही दूसरी ओर
यूपी के कई और शहरों को एनसीआर (नैशनल कैपिटल रीजन) में शामिल किए जाने की योजना है। एनसीआर का नया जोनल प्लान बनाने की तैयारी की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, एनसीआर में शामिल होने वाले नए जिले मथुरा अलीगढ़, मुरादाबाद, ज्योतिबा फूले नगर, शामली, बिजनौर और सहारनपुर हो सकते हैं। अभी एनसीआर में यूपी के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर जिले शामिल हैं। मुजफ्फरनगर को अभी हाल ही में एनसीआर में शामिल किया गया है। एनसीआर में यूपी के इन जिलों को साल 1986-87 में हुए सर्वे रिपोर्ट के आधार पर शामिल किया गया है।
एनसीआरपीबी ने अपने एरिया के सभी जिलों के विकास के लिए एक अलग से जोनल प्लान बनाया हुआ है, जिसकी मियाद वर्ष 2021 में पूरी हो जाएगी। एनसीआरपीबी सेल के अधिकारी टीपीएम कुमार ने कहा कि पश्चिमी यूपी के कौन से जिले एनसीआर शामिल किए जा सकते हैं, इसका सर्वे पूर्ण हो चुका है
ज्ञात हो कि एनसीआर में शामिल रीजनल प्लान साल 2000 में बना था जिसे 2021 तक के लिए बनाया गया था। आने वाले कुछ सालों में ही इसकी मियाद पूरी होने वाली है। नए रीजनल प्लान को बनाने का काम 2017 से शुरू होगा। ऐसे में नए जिलों को एनसीआर में शामिल करने का फैसला दिसंबर 2016 तक होने की उम्मीद है।
सहारनपुर जनपद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में शामिल होगा। डीएम डा. इंद्रवीर सिंह यादव की रिपोर्ट पर कमिश्नर सहारनपुर मंडल तनवीर जफर अली ने अपनी संस्तुति सहित शासन को प्रोजेक्ट भेज दिया है। इसी प्रोजेक्ट के आधार पर आवास एवं शहरी नियोजन के प्रमुख सचिव व कमिश्नर ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र प्लानिंग बोर्ड के सदस्य-सचिव से वार्ता की है।
सूत्रों का कहना है कि 22 जनवरी को एनसीआर में शामिल किए जाने वाले जिलों के डीएम के साथ लखनऊ में होने वाली बैठक में विधिक रूप से सहारनपुर को भी एनसीआर में शामिल करने संबंधी प्रोजेक्ट को ग्रीन सिग्नल मिलेगा।
वही सहारनपुर मंडल को एनसीआर में शामिल करने के इच्‍छुक है राजनैतिक, सामाजिक व व्यापारी संगठनों के प्रतिनिधिगण, इनका यह मानना है कि सहारनपुर मंडल के जनपद शामली व मुजफ्फरनगर को एनसीआर में जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक रूप से जनपद को एनसीआर में जोड़ा जाना अतिआवश्यक है। यदि सहारनपुर को छोड़ दिया जाता है तो यह जनपद के साथ नाइंसाफी होगी। उत्तराखंड बनने के कारण पहले ही यहां की खेती व उद्योग भारी हानि उठानी पड़ी है। इसलिए यदि सहारनपुर को एनसीआर में शामिल नहीं किया जाता तो सहारनपुर, एनसीआर, उत्तराखंड, हरियाणा व हिमाचल के बीच गड्ढे के रूप में रह जाएगा। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सहारनपुर जनपद को एनसीआर में शामिल किया जाना अति आवश्यक है।
वहीँ इसके अलावा मैदानी क्रांति दल ने बिजनौर, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल करने की मांग करते हुए कहा गया कि बिजनौर, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर की जनता की मांग को देखते हुए इन जिलों को उत्तराखंड में शामिल ही करना होगा। तीनों जिलों की जनता लंबे समय से उत्तराखंड में शामिल करने की मांग कर रही है। हम उनकी मांगों को नजरअंदाज नहीं करने देंगे। उन्होंने दावा किया कि बिजनौर, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर जनपदों को उत्तराखंड में शामिल किए बिना वर्तमान उत्तराखंड का विकास अधूरा है। लेकिन उत्तराखंड की जनता इस मसौदे का विरोध कर रही है। इसके पीछे यह साजिश भी हो सकती है कि गैरसैण राजधानी का मुद्दा ही समाप्त कर दिया जाय और देहरादून को ही स्थायी राजधानी बना दिया  जाय !

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