पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता लोकपर्व हरेला
कमल किशोर डुकलान
देवभूमि उत्तराखंड का पर्यावरण प्रकृति और जलवायु का महापर्व हरेला कुंभ महोत्सव आज भारतवर्ष में ही नहीं,अपितु दुनिया में अपनी अनोखी छाप छोड़ चुका है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने और प्रदूषण मुक्त भारत के संकल्प को देश और दुनिया में एक नई पहचान मिली है।
देवभूमि उत्तराखंड का पर्यावरण प्रकृति और जलवायु का महापर्व हरेला भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में एक ऐसा त्योहार है जिसमें सृष्टि में उत्पन्न सभी जीवों के कल्याण के साथ प्रकृति संरक्षण की कामना की जाती है। पेड़ लगाने और पर्यावरण बचाने की एक सुंदर झलक देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति में ही हमें दिखने को मिलती हैं।पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए हरेला पर्व उत्तराखंडी लोक संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है।
रोपण से काटण यानि बुवाई से कटाई हरेला पर्व यहां के लोगों में प्रकृति के बेहद नजदीक होने के कारण बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां के लोग प्रकृति को अपने तीज-त्योहार और संस्कृति में समाहित करने के कारण हरेला पर्व उत्तराखंड की लोक परम्परा से जुड़ा पर्व है। मान्यता है कि हरेला पर्व जितना बड़ा होगा फसल भी उतनी अच्छी होगी। इसलिए हरेला पर्व को प्रकृति संरक्षण के साथ किसानों की सुख-समृद्धि से जोड़कर भी देखा जाता है।
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से भारत सहित पूरा विश्व चिंतित हैं। कोरोना संक्रमण काल में पेड़-पौधे न होने एवं वायु प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण में अनेकों हानिकारक विशैली गैसों की अवशोषित कर की क्षमता कम होने के कारण कोविड बचाव में एकान्तवास एवं सामाजिक दूरी का पालन कारगर साबित हुआ था।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के असर को रोकने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सरकारी अथवा सामाजिक स्तर पर जन-जागरण के संदेशों में सभी जरूरी प्रयास तलाशे जा रहें हैं। ये प्रयास प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बिना सम्भव नहीं हो सकते। इसलिए अगर हरेला पर्व के संदेश पर बारीकी से गौर करें तो पर्यावरण शुद्धता से सम्बन्धित सारी समस्याओं का हल वृहद वृक्षारोपण में ही मिलता है। उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला हमें भारत सहित पूरी दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ने का संदेश देता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तराखंड के पूर्व प्रचारक पर्यावरण प्रेमी,मां भारती की सेवा में अपने को समर्पित किए हुए डाक्टर हरीश रौतेला ने देवभूमि उत्तराखंड में प्रांत प्रचारक रहते हुए पर्यावरण संरक्षण के महापर्व हरेला को उत्तराखंड में ही नहीं अपितु भारतवर्ष के प्रत्येक घर परिवार,खेत खलिहान,स्कूल,कॉलेज और अस्पताल सहित सभी संस्थानों में एक पौधा अपने व अपने परिवार के स्वस्थ सुखी जीवन जीने के आधार का संकल्प लिया था।
प्रकृति प्रेमी डाक्टर हरीश रौतेला जो कि वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ब्रज प्रांत के प्रांत प्रचारक हैं उनके संकल्प के फलस्वरूप पर्यावरण व प्रकृति की रक्षा के लिए मनाया जाने वाला उत्तराखंडी लोक संस्कृति के हरेला पर्व आज भारतवर्ष में ही नहीं,अपितु देश के हर राज्य में पर्यावरण शुद्धि के लिए हरेला कुंभ महोत्सव के रूप में एक पहचान मिली है।
व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए पेड़-पौधों का होना नितांत आवश्यक हैं। ऐसा स्थान जहां कोई पेड़ नहीं है वहां की हवा में ही दुख झलकता है जबकि एक अच्छी संख्या में वृक्षों से घिरा हुआ स्थान स्वचालित रूप से जीवंत और रहने लायक दिखता है। पेड़ न केवल हमें शारीरिक रूप से स्वस्थ रखते हैं,बल्कि हमारे बौद्धिक विकास में भी सहायक होते हैं।
पेड़-पौधों का हमारे मस्तिष्क पर शांत प्रभाव पड़ता है। दिमागी शांति धैर्य रखने की कुंजी है। जो शांत है वहीं बेहतर है और उसी में बेहतर निर्णय लेने की क्षमता है,वहीं विभिन्न परिस्थितियों में स्वस्थ मन,बुद्धि से काम भी कर सकता है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह स्वच्छता को एक जन-आंदोलन के रुप में लिया है, उसी तरह जल-संरक्षण के लिए भी एक जन-आंदोलन की दरकार है। जीने के लिए स्वच्छ प्राणवायु और पीने के लिए स्वच्छ पानी, इन दोनों के बिना जीवन की संकल्पना अधूरी है। इसलिए हरेला पर्व पर हम सभी को अपने संसाधनों के रखरखाव की जिम्मेदारी के साथ संकल्प लेने की आवश्यकता है।
हरेला पर्व हमें अवसर देता है,उस सुंदर प्रकृति को नजदीक से जानने का जिस प्रकृति में हम पलकर बढ़े हुए हैं। हरेला पर्व के अवसर पर बृहद वृक्षारोपण कर हम प्रकृति के कर्ज को चुकाकर पूर्ण कर सकते हैं।
इस हरेला पर्व पर हम सभी का यह संकल्प होना चाहिए कि हम प्रतिवर्ष एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल जरुर करें। साथ ही चाल,खाल या अन्य तरीकों से एक-एक बूंद पानी की बचायेंगे हमारे आज के प्रयास हमारी कल की पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होंगे।