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जीवित व्यक्ति में शामिल हुए ग्लेशियर, बुग्याल, वैटलैंड, जंगल

उच्च न्यायालय का अभूतपूर्व फैसला 

नैनीताल :  हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना के बाद अब गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियर को भी जीवित व्यक्ति यानि एक नागरिक के अधिकार दे दिए हैं। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ ने शुक्रवार को जनहित याचिका के अंतर्गत दिए गए प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद यह निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र की नदियों, झील-झरने और घास के मैदान भी इस श्रेणी में रखे गए हैं।

ग्लेशियर के अधिकार का उपयोग की जिम्मेदारी तय : ग्लेशियरों को दिए गए जीवित व्यक्ति के अधिकार का उपयोग करने के लिए अदालत ने जिम्मेदारी तय की है। इसमें मुख्य सचिव उत्तराखंड, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक प्रवीण कुमार, नमामी गंगे के कानूनी सलाहकार ईश्वर सिंह, चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडेमी के निदेशक प्रशासन बलराम के गुप्ता व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी मेहता व उत्तराखंड के महाधिवक्ता शामिल हैं। कोर्ट ने इसके अलावा सरकार को प्रदेश के 7 जनप्रतिनिधियों का चयन कर इसके लिए कमेटी का गठन करने को भी कहा है।

गंगा के किनारे प्रदूषण रहित श्मशानघाट बनाने के निर्देश: हाईकोर्ट ने शुक्रवार को प्रत्यावेदन पर सुनवाई के बाद 7 नए निर्देश जारी किए हैं। इनमें ग्लेशियरों को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने का निर्देश प्रमुख है। इसके साथ ही गंगा के किनारे प्रदूषण रहित श्मशान घाट बनाने के भी निर्देस दिए हैं। प्रस्तावित 50 में से 10 का निर्माण 8 हफ्ते में शेष का तीन माह में करने को कहा है। इसके अलावा हरिद्वार में गंगा के घाट में भिखारियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के डीएम हरिद्वार के निर्देश दिए हैं। गंगा के लिए इंटर स्टेट काउंसिल के गठन के लिए 6 माह का समय दिया है।

केंद्र सरकार के कदम की सराहना: संयुक्त खंडपीठ ने गंगा के लिए केंद्र सरकार की ओर से की जा रही पहल की सराहना की है। कोर्ट ने कहा है कि गंगा के लिए केंद्र ने 862 करोड़ रूपये जारी किए हैं। केंद्रीय जल संसाधान मंत्री उमा भारती की संवेदनशीलता का भी कोर्ट ने उल्लेख किया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार के संबंधित अधिकारियों की भी सराहना की है।

जनहित याचिका आखिर थी क्या …..
अधिवक्ता ललित मिगलानी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर जनहित याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने 2 दिसंबर 16 को इस मामले में फैसला दिया था। इसका पालन नहीं होने पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के साथ ही प्रदेश के सभी जिलाधिकारी तलब किए थे। इसमें गंगा में प्रदूषण फैला रहे आश्रमों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व उद्योगों को तत्काल प्रभाव से बंद करने के आदेश दिए थे। इधर गत दिवस याची ने पहले दिए आदेश के क्रियान्वयन में ढिलाई के साथ ही हिमालय सहित ग्लेशियरों को भी जीवित प्राणी का दर्जा दिए जाने को लेकर प्रार्थना पत्र दाखिल किया था।

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