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उत्तराखंड में पहली बार रुकी संसाधनाें की लूट…

  • लूट की छूट न मिलने पर बिलबिला रहे हैं नेता ..
  • उत्तरा कांड जैसी छाेटी सी घटना से चला देते हैं नेतृत्व परिवर्तन की हवा

विजेन्द्र रावत

देहरादून : मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत शायद पहले मुख्यमंत्री है, जिनके डेढ़ साल के शासन काल में विकास की गति भले ही धीमी रही हाे पर राज्य के संसाधनाें की लूट काफी हद तक रुकी है….मुख्यमंत्री आवास और कार्यालय में बाहरी दलालाें की अावाजाही थमी है……

इससे बड़ी संख्या में सत्तापक्ष के कई विधायक व नेता बिलबिला रहे हैं जाे बाहरी लाेगाें के लिए बड़े बड़े कामाें की दलाली कर राताें रात कराेड़ाें कमाने के सपने देखने वाले निराश न हताश हैं इसलिये गाहे बगाहे मुख्यमंत्री के विराेध में उनके सुर बाहर निकल रहे हैं…..

यही कारण है कि वर्षों स्कूल से गायब रहने पर निलंबन झेल चुकी शिक्षक उत्तरा पंत मुख्यमंत्री काे सार्वजनिक रूप से गाली बक कर राताें रात मुख्यमंत्री विराेधी गुट की नायिका बन गई…और उन्होंने इसे उत्तराखंड की तिलू राैतेली बनाकर हाई कमान के सामने तक पेश कर उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की हवा चला दी…….इसमें मीडिया का एक पहाड़ विराेधी गुट भी शामिल है जाे सत्ता पक्ष के सलाहकार बन अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं. त्रिवेन्द्र के साथ उनकी दाल भी नहीं गल पा रही है. इसलिए वे भी गाहे बघाये नेतृत्व परिवर्तन की हवा चला देते हैं, उन्हें उनके दबाव में काम करने वाले पहाड़ी नेता की दरकार है…..

पर मुख्यमंत्री काे इस बात के लिए बधाई देनी चाहिए कि वे उत्तरागुट के दबाव में नहीं आये……और उसके मामले में नियमानुसार कार्यवाही हाे रही है……वे अपने आप काे पहाड़ के गांव में तैनाती काे बनवास कहती हैं, इसका मतलब है सारे पहाड़ी बनवासी हैं…..?

खैर, इस दबाव में न आकर मुख्यमंत्री ने पहाड़ में नौकरी न कर सिर्फ नेतागिरी करने वाले कारिंदाें के रास्ते बंद कर दिये हैं….
पता चल है कि सत्ता की चाैसर में अपने आप काे माहिर मानने वाला एक पूर्व मुख्यमंत्री व अब भाजपा नेता आजकल भले ही नेपथ्य में हाें पर वे विराेधी विधायकाें काे चाय पिलाकर उनके जख्माें में मरहम
लगाने की काेशिश कर रहे हैं तथा वे इसी बहाने खुद व अपने सुपुत्राें के पुनर्वास का सपना बुन रहे हैं.

वैसे उत्तराखंड की राजनीति पर नजर रखने वाले संघ के बड़े नेताओं की नजराें में त्रिवेन्द्र रावत ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं भले ही राज्य में सत्ता की मलाई के स्वादू कुछ संघी विराेध काे हवा दे रहे हैं……

हमारा मानना है कि लुटते उत्तराखंड काे एक ऐसे मुख्यमंत्री की जरूरत है जाे अपनी कुर्सी की कीमत पर भ्रष्टाचार व पहाड़ की दलाली से समझाैता न करे, उसमें कुछ नेता भले ही उसके विराेध में हाें पर जनता उसके साथ रहेगी…….माल काटू नेताआें के दबाव काे झेल गये ताे त्रिवेन्द्र में उत्तराखंड का जन आकांक्षाओं के अनुरूप वाला मुख्यमंत्री बन सकता है…….उत्तराखंड काे भ्रष्टाचार युक्त ज्यादा विकास की नहीं बल्कि भ्रष्टाचार रहित कम विकास की जरूरत है………..

devbhoomimedia

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