तथ्यों के आधार पर पत्रकारिता करने और सही नियत रखने वालों का नही हो सकता है कभी बाल भी बांका
एक सामान्य व्यक्ति द्वारा की गयी रिपोर्ट ने तो ऐसे ”गैंग” की हिला दी चूलें
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : दोस्तो हम शुरुआत से कहते आ रहे हैं कि तथ्यों के आधार पर पत्रकारिता करने और सही नियत रखने वालों का बाल भी बांका नहीं हो सकता है। बशर्ते पत्रकारिता करते समय हम आरोप लगाने से पहले दूसरे की मान मर्यादा का भी सम्मान करना सीखें। प्रायोजित खबर चलाने के बाद जब हम घिर जाते हैं तो सरकार पर पाने किए धरे का आरोप लगाना शुरु कर देते हैं कि सरकार लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दमन कर रही है।
आज यह बात फिर से कुछ ब्लेकमेलर पत्रकारों द्वारा सोशल मीडिया में चलाई जा रही है। बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि जब हम दूसरे पर बड़े आरोप लगाते हैं और उनकी मानहानि करते हैं तो यह बात हम उस समय क्यों नहीं सोचते हैं ? जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया जा रहा है वह किसकी शरण में जायेगा ? निःसंदेह पुलिस के पास जाकर ही तो अपनी शिकायत करेगा। लेकिन एक सामान्य व्यक्ति द्वारा की गयी रिपोर्ट ने तो ऐसे गैंग की चूलें हिला दी है।
यहां भी वही हुआ है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को निशाना बना रहे कुछ स्वंयभू पत्रकार जिनका खुद का दामन पाक-साफ नहीं है। लगातार बिना तथ्यों के सरकार और मुख्यमंत्री पर आरोप लगाना ही इनका काम है। कूटरचित षडयंत्र रचना और सिंडिकेट बनाकर कार्य करना इनकी कार्यशैली है। इस सिंडिकेट का मुखिया वही फेसबुकिया पत्रकार है जो अपने साथ मुट्ठीभर पत्रकारों को बरगलाकर और उन्हें पैसे का लालच देकर अपने निजी हितों को साधने की कोशिश कर रहा है।
पुरानी कहावत है कि चोर को चोर का ही साथ भाता है। इन पत्रकारों का भी दामन साफ नहीं है और कम समय में फेसबुक पत्रकार की तरह पैसा वाला बनने की चाहत इन लोगों में घर कर गई है। फेसबुक वाले पत्रकार के लालच में सिंडिकेट बनाकर आरोप लगाना और ब्लेकमेल करना इनकी पुरानी आदत है। मुट्ठीभर पत्रकारों के अलावा इनकी गिरफ़्तारी का कोई विरोध नहीं कर रहा है। कारण साफ है अब पत्रकार लोग समझने लगे हैं कि इन जैसे लोगों के कारण ही पत्रकारों की बिरादरी बदनाम हो रही है। समय आ गया है कि अब अपना दामन भी साफ किया जाए।
लेकिन सोशल मीडिया में पत्रकारों को चुनौती देने वाले अब पत्रकार साथियों से सहयोग मांग रहे हैं। डरा रहे है कि सरकार पत्रकारों का दमन कर रही है। कह रहे है कि सरकार के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है। यह सरासर गलत और मित्थापूर्ण है। ना जाने कितने स्वतंत्र पत्रकार, दैनिक अखबार सरकार के कार्यों को लेकर काॅलम लिखते हैं। सरकार ऐसे पत्रकारों के समाचारों में हो रहीं निंदा से सबक लेते हुए अपने निर्णय पर समीक्षा भी करती है और उसे यदि लगता है की पत्रकार ने सही विश्लेषण किया है तो वह अपने निर्णयों को बदलने से भी गुरेज नहीं करती है। हालांकि कुछ सही तो कुछ गलत, सबका अपना नजरिया है। लेकिन सरकार ना तो अपनी प्रशंसा से फूली समाती है ना वह अलोचना से पत्रकारों के घर डंडा लेकर जाती है। सरकार गंभीर मामलों का सरकार संज्ञान लेती है, उन पर कार्रवाई करवाती है।
अब बड़ा सवाल है कि हम कैसे इन लोगों पर यकीन करे। पत्रकार बिरादरी असमंजस में है। पत्रकारों का कहना है कि अनाप शनाप खबरें करते समय भी हम से पूछ लिया करो ? आज क्यों पत्रकार बिरादरी को साथ नहीं आने पर तोहमत लगाने का अधिकार आपको किसने दिया ? पत्रकार समाज का दर्पण होता है। पत्रकार को अच्छी खबर और उसके कार्यों के लिए जाना जाता है। ब्लेकमेल करना और इरादतन व एक तरह से योजनाबद्ध तरीके से नेगेटिव खबरें चलाने से आप लोग कुछ समय तक अपनी जेबें तो भर सकते हैं लेकिन याद रखें कि यह देवभूमि है। मुख्यमंत्री को बदनाम करने के लिए कितनी प्रायोजित खबरे चलाओंगे। मुख्यमंत्री निष्कलंक है और ईमानदार है। वह कम बोलते हैं तो यह उनकी कमी नहीं है। अपने कामों से लगातार जनता का विश्वास जीत रहे मुख्यमंत्री तुम्हारे झांसे में नहीं आयेंगे और न ही वह इस तरह के गैंग से ही डरने वाले हैं । गलत काम करने वाले और दो नंबर की कमाई करने वाले ही ब्लेकमेल होंगे। देवभूमि को लंबे समय बाद ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जो तुम्हारें जैसे राक्षसों का देवभूमि से सफाया करेगा।
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