देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : मतदान के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों उत्तराखण्ड में सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। भाजपा कांग्रेस दोनों के चालीस से अधिक सीट जीतने के दावे हैं। चालीस सीट का मतलब आवश्यक छत्तीस सीटों से अतिरिक्त चार सीटें। फिर भी हरीश रावत सहित बीजेपी के आधा दर्जन मुख्यमन्त्री पद के दावेदार सम्भावित निर्दलीयों व यूकेडी नेताओं के चौखटों पर लगातार सलाम बजा रहे हैं। इन सबके बावजूद प्रदेश की राजनीती 11 मार्च को क्या गुल खिलायेगी इस पर सभी राजनैतिक पण्डित स्पष्ट नहीं हैं।
हरीश रावत उत्तराखण्ड के हर विधानसभा क्षेत्र और वहां के समीकरणों से वाफिक हैं, इसका कारण उनका जमीनी नेता होना है। इसके उलट भाजपा के मुख्य रणनीतिकार राज्य के भूगोल से पूरी तरह अपरिचित हैं , जो जानकार थे वे ठिकाने लगे थे या लगा दिए गए थे। हरीश रावत द्वारा हर सीट पर ठोस होमवर्क का बीजेपी भी लोहा मान रही है। होटल गेस्टहाउसों में मैराथन बैठक कर सरकार बनाने के दावे करने वाले भाजपाई भी हरदा की धोबी पछाड़ से हलकान हैं। खासकर नरेंद्रनगर, केदारनाथ, धनोल्टी, पुरोला, बाजपुर, जसपुर, नैनीताल जैसी सीटों पर अपने हित के समीकरण बनाकर रावत ने भाजपा को खूब छकाया।
जहाँ बीजेपी के थोक के भाव बागी लड़े वहाँ हरीश रावत जोत सिंह बिष्ट, जोत सिंह गुनसोला, एस पी सिंह, राजीव जैन, ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, शिल्पी अरोड़ा, नारायण पाल जैसे दर्जनों दावेदारों को बागी बनने से ही नहीं रोका बल्कि उन्हें पार्टी हित में काम पर भी लगाया। परिणाम जो भी हो बीजेपी का भारी भरकम प्रचार, प्रसार, विज्ञापन, स्टार प्रचारक, मिडिया प्रबन्धन सारा का सारा तन्त्र हरीश रावत को निशाने पर रखकर कांग्रेस विरोध को भूल गया और चुनाव मोदी बनाम हरीश रावत में बदल गया। बीजेपी नेता एक ओर मोदी लहर के दावे कर रहे हैं साथ ही वे हरीश रावत की व्यूह रचना से भी आशंकित और आश्चर्यचकित हैं।
बीजेपी में रणनीति बनाने के लिए जहाँ भारीभरकम टीम थी वहीँ कांग्रेस में एक व्यक्ति के हाथों में ही कमान थी। पार्टी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से अनबन की खबरों के बीच हरीश रावत पर मनमानी और तानाशाही के आरोप तो लगे किन्तु कांग्रेस के झगड़े का भाजपा राजनैतिक लाभ नहीं ले पायी। जितना संसाधन भाजपा का प्रदर्शित हुआ, हर गली मोहल्लों में पोस्टर होर्डिंग्स, टीवी रेडियो और सोशल मिडिया में प्रचार प्रसार के साथ भीड़ जुटाऊ सेलिब्रिटी चुनाव को भाजपामय बनाये हुये थे। वहीँ कांग्रेस ने अपना चुनाव अभियान केवल सोशल मीडिया व घर-घर संपर्क करके किया।
खुद अमितशाह, राजनाथ सिंह और गडकरी के तीखे बाण अख़बारों की सुर्खियां बने थे। मोदी की रैलियों में भी हरदा पर हमला था, खुद मोदी हरदाटैक्स के आरोप लगा गये। अगर बराबर की टक्कर में बीजेपी सरकार भी बना ले तो भी उसके लिए सबक होगा कि रणनीति महत्वपूर्ण होती है न कि अकूत धन संसाधनों का प्रदर्शन। बहरहाल प्रदेश की जनता को इस चुनाव में पार्टियों को निकट से जानने का बेहतर मौका मिला और उसने बिना आभास दिए अपनी पसन्द का बटन दबा दिया। जिसको देख सभी दल भौंचक व आश्चर्यचकित हैं।अब 11 मार्च को ही पता चलेगा कि जनता के मन में क्या है।