राजनीतिक मोर्चे पर फिसड्डी साबित हुए कर्नल !

- चाटुकारों ने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का विलेन बनाकर किया पेश
- जंग में जमीन पर न तो कर्नल थे और न उनके वे चाटुकार समर्थक
राजेन्द्र जोशी
देहरादूनः भारतीय सेना में कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र और अति विशिष्ठ सेना मैडल जैसे अलंकारणों से नवाज़े गए कर्नल अजय कोठियाल ने भले ही दुश्मनों को मोर्चे पर शिकस्त देकर अपने नाम कई ख़िताब किये, लेकिन राजनीति के मैदान में वे फिसड्डी खिलाड़ी ही साबित हुए हैं। हालाँकि उनके द्वारा लोकसभा चुनाव की तैयारियां काफी पहले से की जा रही थी वह भी दो-दो नावों की सवारी करते हुए । वे कभी कांग्रेस की तरफ अपना झुकाव प्रदर्शित करते रहे तो कभी भाजपा की तरफ। यही एक कारण रहा कि न तो भाजपा ही उनपर विश्वास कर पायी और न कांग्रेस के ही वे विश्वासपात्र बन पाए । रही सही कसर दिल्ली से लेकर देहरादून तक के उनके कुछ चाटुकार पत्रकार मित्रों ने उनको दोनों ही राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का विलेन बनाकर और उनके मंसूबों पर पानी फेरकर पूरी कर दी।
एक कहावत है कि ”सौ मूर्ख दोस्तों से एक चालाक दोस्त” जरुरी होता है। बीते दिनों के घटनाक्रम पर यदि नज़र दौडाई जाय तो यही महसूस होता है कि केदारनाथ जैसी विषम परिस्थितियों वाले करोड़ों हिन्दुओं के तीर्थ के पुनर्निर्माण और पुनर्वास के मोर्चे पर सफल कर्नल के साथ कोई भी कुशल योजनाकार,रणनीतिकार और राजनीतिक समझ वाला सलाहकार के न होने की कमी जरुर नज़र आती रही है। ऐसे चाटुकारों ने पहले तो कर्नल के चुनाव लड़ने की सोशल मीडिया पर जमकर चर्चा करवाई और बाद में प्रेस तक की तैयारी ऐसे कर दी जैसे वे बहुत बड़ा धमाका करने जा रहे हों । उन्हें शायद इस बात का जरा सा भी भान नहीं था सेना की नौकरी करने वाले कर्नल को चुनावी मैदान में उतारने के लिए क्या-क्या नहीं करना चाहिए खैर आनन -फानन में प्रेस कांफ्रेंस स्थगित करनी पड़ी वह भी पत्रकारों की फजीहत करने के बाद ।
गौरतलब हो कि लोकसभा चुनाव को लेकर जहाँ भाजपा और कांग्रेस के स्थापित नेता तक चुपचाप अपने लिए टिकट पाने को लेकर दिल्ली दौड़ में लगे हुए थे तो वहीं कर्नल कोठियाल अपने कुछ चाटुकार पत्रकार समर्थकों के माध्यम से बीजेपी पर टिकट के लिए दबाव बना रहे थे। लेकिन टिकट की मारामारी के बीच और जमीनी जंग में टिकट पाने की इस लड़ाई में जमीन पर न तो कर्नल थे और न उनके वे चाटुकार समर्थक।
चर्चा तो यहाँ तक है कि कर्नल को भाजपा के लोकसभा प्रभारी को मिलने के लिए कांग्रेस के एक कद्दावर नेता का सहारा लेना पड़ा। इसके बाद यह साफ हो गया था कि कर्नल की सियासी गहराई और संपर्क क्या हैं ? बदले सियासी समीकरणों और सियासी मोर्चे पर कर्नल उन निर्दलीय उम्मीदवारों से भी पीछे छूट गए हैं जो केवल नाम प्रकाशित होने के लिए ही नामांकन करवाने तक ही सीमित रहते हैं।
हालांकि भाजपा और कांग्रेस द्वारा टिकट नहीं दिये जाने के बाद और उनके द्वारा निर्दलीय प्रत्याशी तक का चुनाव न लड़ पाने से उनके कुछ समर्थकों और उनसे जुड़े पूर्व सैनिकों में भारी मायूसी तो है। वहीं अब यह चर्चा भी चल रही है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा कर्नल के चुनाव लड़ने के प्रस्ताव को ठुकराए जाने के बाद उनके कुछ पत्रकार समर्थकों ने निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ने का दबाव बनाया हुआ था। जिसे कर्नल ने स्वीकार तो किया लेकिन सियासी मोर्चे पर कर्नल यह भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर उनकी लड़ाई किसके लिए और क्यों है।
हालांकि इससे पहले कर्नल कोठियाल द्वारा बयान जारी किया गया कि वह देहरादून में प्रेस वार्ता कर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ने की घोषणा करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि इस मौके पर वह राज्य के लिए अपना विजन भी रखेंगे और कुछ बड़े खुलासे भी करेंगे। लेकिन पत्रकार वार्ता होने से ऐन पहले कर्नल कोठियाल ने प्रेस वार्ता स्थगित कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़ने तक से मना कर दिया। कर्नल के इस फैसले से उनके पूर्व फौजी और कुछ समर्थकों में भारी नाराजगी है। चर्चा तो अब चल पड़ी है कि कर्नल अजय कोठियाल को यह निर्णय एक उद्योगपति की चेतावनी के बाद करना पड़ा है, अब यह बात सामने आएगी कि आखिर वह कौन उद्योगपति है जिसकी घुड़की पर कर्नल चुनाव लड़ने से ही मुकर गए। या इस घुड़की के कुछ राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं और या किसके इशारे पर हुआ यह कुछ ही दिन बाद स्वतः ही सामने आ जायेगा ।