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बदरीनाथ को विवाद में घसीटा जाना कितना तार्किक ?
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लगभग 152 सालों से चली गयी जा रही है ये आरती
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बदरुद्दीन ने यह आरती वर्ष 1865 में लिखी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड रक्षा अभियान दल द्वारा बद्रीनाथ धाम से एक समुदाय के लोगों को गंगा जल व गोमूत्र पीने अन्यथा बदरीनाथ छोड़ने की हिदायत के बाद हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ को लेकर बयानबाजी शुरू हो गयी है, दारुल उलूम निसवा के मोहतमिम मौलाना अब्दुल लतीफ़ ने मामले को ठंडा करने के बजाय विवाद को और हवा देते हुए कहा कि धमकी देने वालों को नहीं पता कि बदरीनाथ बदरुद्दीन शाह हैं जो मुसलमानों का धार्मिक स्थल है. वहीँ इसके बाद अब बदरीनाथ की आरती को लेकर भी मामला गरमा गया है। कुल मिलाकर धार्मिक उन्मादियों द्वारा भगवान बद्री विशाल जो सैकड़ों वर्षों से सनातन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र रहे हैं, को बेवजह विवाद में घसीटा जाना कितना तार्किक है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस विवाद से अवश्य ही क्षेत्र व देश की धार्मिक भावनाओं को कहीं न कहीं ठेस तो जरुर पहुंचेगी।
चमोली जिले के नंदप्रयाग निवासी फकरुद्दीन (बदरुद्दीन)।बदरुद्दीन ने यह आरती वर्ष 1865 में लिखी थी । जब से ये आरती लिखी गई है तब से भगवान बद्री विशाल की पूजा परंपराओं की शुरुआत इसी आरती के साथ होती है। हां कहा तो यह भी जाता है कि जब ये आरती सूफी फकररुद्दीन ने लिखी थी तब उनकी उम्र महज 18 साल थी। इस आरती में बदरीनाथ धाम के धार्मिक महत्व के अलावा यहां की सुंदरता का भी वर्णन किया गया है।इस आरती को लिखने के बाद उन्होंने अपना नाम बदरीनाथ के नाम पर बदरुद्दीन रख लिया था। 104 वर्ष की उम्र में वर्ष 1951 में बदरुद्दीन का निधन हुआ। बदरुद्दीन के पोते अयाजुद्दीन सिद्दिकी के मुताबिक बद्रीनाथ धाम में मंदिर परिसर की दीवारों पर पहले पूरी की पूरी आरती लिखी गई थी।
वहीँ राष्ट्रीय सनातन सभा की महिला प्रदेश अध्यक्ष निम्मी कुकरेती ने तो अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि सेक्युलर लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न रहेगा, उनके लिए ऐसा समाचार आया है। कश्मीरी पंडितों का कश्मीर नहीं, उत्तराखण्ड का सतपुली, टिहरी, कोटद्वार वो भी हमारा नहीं। बद्रीनाथ, केदारनाथ हमारा नहीं। तो फिर आओ मनाएं खुशियां…. मिठाईयां और पकौड़ियां बाँटें। लेकिन भविष्य में बांग्लादेश के हिंदुओं की तरह एक ही कब्र में दफन हो जाने को मानसिक रूप से तैयार रहें। क्षमा करें सेक्युलरवादियों ! मैं स्वयं और मेरा प्रभावशाली संगठन राष्ट्रीय सनातन सभा व अखिल भारत हिन्दू महासभा उत्तराखंड ऐसी हिमाकत की घोर निंदा करते हैं और इस तरह की घटिया हरकत के विरोध के लिए जो भी करना होगा हम करके रहेंगे।
वहीँ एक समुदाय के लोगों का कहना है कि बदरीनाथ की आरती नंदप्रयाग के बदरुद्दीन ने लिखी जबकि इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट का कहना है कि मेरे शोध और प्राप्त भोजपत्र जिसमें संतेरा खाल के मालगुजार ठाकुर धन सिंह ने ” पवन मंद सुंगध शीतल …. का वर्णन करते हुये लिखा है कि यह आरती उन्होंने “लेखा ” है ( आशय लिखा है ) ठाकुर साहब के परिजनों के पास यह सुरक्षित है । हालांकि जीर्ण शीर्ण है । जहां पर संशय एक टेप का है वह भी अध्ययन के लायक है । जिजीविशा पैदा करता है कि क्या मूल रुप से यह रचना किसकी है । उन्होंने बताया जिस तरह ठाकुर धन सिंह मालगुजार के परिजनों ने वह भोजपत्र की पांडुलिप जिसमें दावा किया गया है कि यही वह पांडुलिपि है जिसमे उनके दादा धन सिंह ने बदरी नाथ जी यह आरती लिखी है साक्ष्य सहित प्रस्तुत की । उसके बाद मैं भी किंकर्तब्य विमूढ कि आखिर यह अत्यंत प्रिय रचना लिखी किसने है ! क्या धन सिंह जी ने लिखी ! जैसा कि उनके परिजन साक्ष्य के रुप में भोज पत्र में लिखे उस साक्ष्य को दे रहे हैं या फिर बद्दरुद्दीन जी ने । जैसा कि धारणा है । मान्यता है । हालांकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बद्दरुदीन जी ने ही लिखी इसका भी लिखित साक्ष्य है ।
वहीँ उनका कहना है कि पांडुलिपि देखने के बाद मेरा यह कहना नही कि अब तक जो धारणा मान्यता थी वह गलत थी मेरा यह कहना है कि जो नयी बात सामने आयी है वह भी अचंभित करती है । और दूसरा यह कि बद्दरुद्दीन जी ने ही लिखी इसके पक्ष में भी लिखित साक्ष्य होने की बात लोग कहते हैं कुल जमा यह कि यह रचना सचमुच जितनी अच्छी है उतनी ही रचनाकार के प्रति कौतूहलता पैदा करती है ।
क्या बद्दरुदीन जी की है या ठाकुर धन सिंह जी की । बद्दरुद्दीन जी सूफी दार्शनिक हो गये ये।.सम्भवतया उन्होंने विवाह भी नहीं किया वे परमपिता परमेश्वर की ही धुन में रहते थे,और सूफी अंदाज में गाते भी थे । हो सकता है उन्होंने यह रचना अपने मधुर कंठो से गायी हो । क्योंकि वे बदरीनाथ में रहते थे पोस्ट मास्टर थे । सम्भवतया वे इतने भक्ति भावी होने के कारण उन्होंने यह रचना गायी हो और लोक प्रसिद्धि इस रचना को मिली । कुछ भी हो बदरीनाथ सबके हैं आरती किसी ने भी लिखी हो गायी हो पर समत्व के भाव जगाती है ।
वहीँ पत्रकार मनोज इष्टवाल के अनुसार पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम…नामक इस आरती के बारे में लिखने से पूर्व कुछ हैरतअंगेज खुलासे सामने आये हैं जो साबित करते हैं कि कर्णप्रयाग और वर्तमान में नंदप्रयाग में अवस्थित वह परिवार जन्मजात मुस्लिम नहीं था जिसे इस आरती से जोड़ा जाता है।
जबकि बकौल मनोज इष्टवाल उनकी केदारनाथ विधायक व पत्रकार मनोज रावत से इस सम्बन्ध में लम्बी वार्ता हुई। तब उन्होंने बताया कि इन लोगों के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे जो किमोली-फळदा गॉव से पथभ्रष्ट होकर यहाँ आ बसे हैं।
बकौल मनोज इष्टवाल उनके पिताजी ने कहानी सुनाते हुए कहा कि किमोली गाँव के हम ब्राह्मणों के ही कुल के एक पढ़े लिखे व्यक्ति हुए पंडित मनु गौड़ ! जिनका पूरा कुनवा बेहद शाकाहारी व पूजा पाठ वाला रहा ! उन्हें उस काल में खान जाति की एक खूबसूरत कन्या पसंद आ गयी और जब यह बात फैली तब उनके पिता ने उन्हें गाँव निकाला कर दिया. मनु गौड़ पढ़ा लिखा था इसलिए ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के छावनी क्षेत्र जहरीखाल के पोस्ट ऑफिस में उनकी नौकरी लग गयी. बदनामी की आंच वहां तक पहुंची तब वे अपनी पत्नी को लेकर चमोली जिले में जा बसे।
उन्होंने बताया कि नन्दप्रयाग के बदरुद्दीन के परिवार के गयासुद्दीन और …से इस सम्बन्ध में जब उन्होंने जानकारी लेनी चाही तब आधी अधूरी जानकारी मिली इसलिए मुंबई में उनके चचाजां कमरुद्दीन जोकि मुंबई हाई कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता थे । उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज जहरीखाल के पास किमोली फलदा से आकर पहले चमोली बसे फिर नन्दप्रयाग जोकि पूर्व में गौड़ ब्राह्मण थे . आज भी उनकी वंशावली मनुगौड़ के नाम से शुरू होती है।
वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट द्वारा बदरीनाथ की आरती सम्बन्धी पांडुलिपि ने जहाँ यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या यह आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । जिसमें संवत भी अंकित है। आखिर क्या है वास्तविकता !
वहीँ विधायक मनोज रावत कहते हैं कि उनके पास हो सकता है आज भी वह आवाज रिकॉर्ड हो जिसमें मनु गौड़ के पौत्र वयोवृद्ध अधिवक्ता कम्रुद्द्दीन की एक घंटा हुई वार्ता रिकॉर्ड है जिसमें उन्होंने कहा है कि चमोली बसने के कुछ समय बाद ही मनु गौड़ के दो पुत्र जोकि माँ खान होने के बाद बदरुद्दीन और नसुरुद्दीन कहलाये में बदरुद्दीन पोस्ट मास्टर बन गए जबकि नसुरुद्दीन दिन भर भटकते रहते थे और उन्हीं ने यह आरती लिखी है।
प्रश्न अभी भी मुंह उठाये बाहे खड़ा है कि आखिर आरती लिखी किसने है. प्रथम दृष्टया तो लगता है कि आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । लेकिन उस पांडुलिपि के अंत में एक सपोर्टिंग कागज़ पांडुलिपि पर अलग से कागज़ चिपकाकर उसमें कुछ मिटाने की कोशिश की है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि उस दौर में जब यह आरती आम चलन में आई और प्रसिद्ध हो गयी तब इसके नामों में छेड़छाड़ की गयी या फिर सचमुच यह आरती मालगुजार ठा. धन सिंह द्वारा लिखी गयी है. अगर ऐसा है तो उसकी धुन तैयार किसने की!
यहाँ प्रमाणिकता को आधारभूत मानकर कहा जाय तो आरती लिखना व उसे स्वरबद्ध करना सिर्फ एक व्यक्ति का कार्य नहीं हो सकता। क्योंकि आरती शुरूआती दौर पर राधेश्याम धुन पर प्रचलन में आई जोकि गढ़वाली रामलीलाओं में गाई बजाई जाती है।
मनु गौड़ के पुत्र बदरुद्दीन जोकि पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर थे तब हिन्दू लोक त्यौहारों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामलीला में संगीत मास्टर का कार्य भी करते थे. हो न हो इसकी धुन कम्पोज करने के कारण यह आरती उन्हीं की लिखी कहलाई हो ?
लेकिन केदार नाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से मिली जानकारी से ज्ञात हुआ कि यह आरती नसुरुद्दीन जोकि उन्ही के पूर्वज थे द्वारा लिखी गयी है. भले ही आज भी उनके खानदान में बदरुद्दीन नामक एक पौत्र है. मनोज रावत वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से टेलीफोनिक वार्ता कि चर्चा करते हुए कहते हैं कि कमरुद्दीन ने उन्हें बताया कि एक बार वे विकट परिस्थितियों में ऐसे उलझ गए थे कि उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था ।तब उनके सपने में पीताम्बर धारी ब्यक्ति आया और उसने उन्हें गायत्री मंत्र जाप करने को कहा. भला मुस्लिम परवरिश में पला बढ़ा मैं कैसे गायत्री मंत्र का जाप जानता. तब मैंने एक हिन्दू मित्र से इस सम्बन्ध में कहा कि वह मुझे गायत्री मंत्र सिखाये लेकिन उसने मेरा मजाक उड़ाया इसलिए मैं झिझक के मारे उस से लिखवा नहीं पाया. लेकिन जब दुसरे दिन भी वही पीताम्बरधारी फिर मेरे सपने में आये तब मैंने बहुत अर्ज करके उस से गायत्री मंत्र लिखवा ही लिया और जब मैंने उस मंत्र को पढ़ना शुरू किया तो मुझे लगा जैसे यह मंत्र वह पहले भी कई बार जाप चुका हो।
कमरुद्दीन ने यह भी बताया कि उनकी माँ कहती थी कि हमारा बूढा मालाजाप करता था. अब जबकि वे लोग पूर्णत: मुस्लिम व्यवहारों में ढल गए हैं तब यह सब छूट गया है. लेकिन आज भी वे अपने वंशजों को विकास खंड कल्जीखाल के किमोली-फलद गाँव से आये मनु गौड़ ब्राह्मण की संतान मानते हैं।
यह तो सर्वथा सत्य है कि किमोली गाँव में गौड़ ब्राह्मण रहते हैं और यह भी कि फलद गाँव में खान मुस्लिम! जिनके गठजोड़ में धर्म से बाहर किये गए मनु गौड़ ने हिन्दू धर्म छोड़ा और मुस्लिम हो गए. भले ही यहाँ विधायक मनोज रावत बताते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन ने यह बताया था कि जहरीखाल में नौकरी कर रहे मनु गौड़ को क्षय रोग हो गया था जिस से घर वालों ने उन्हें गाँव से बेदखल कर दिया और जहरीखाल के ही एक खान परिवार ने उनकी देख रेख की। बाद में जिनकी लड़की से मनु गौड़ ने शादी कर ली. लेकिन किमोली असवालस्यूं क्षेत्र के बूढ़े बुजुर्ग भी वही बताते हैं जो मेरे पिताजी ने मुझे बचपन में बताया था कि उस युग में ब्राह्मण जाति का व्यक्ति यदि किसी अन्य जाति में शादी कर देता था तब उसे बेदखल कर दिया जाता था. मनु गौड़ ने तो फलद गाँव की खान जाति की मुस्लिम युवती से शादी की थी।
बहरहाल बद्रीनाथ की आरती में मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लिखा होना भले ही प्रमाणिकता हो लेकिन पांडुलिपि में चिपकी चिप्पी थोड़ा बहुत तो संदेह पैदा करती ही है कि यह आरती क्या सचमुच एक ही ब्यक्ति द्वारा लिखी गयी थी। और अगर ऐसा था तब मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लोगों की जुबान पर क्यों नहीं था और ना ही नसुरुद्दीन का ! बदरुद्दीन को ही इस आरती का लेखक क्यों अब तक माना गया. अब यही शोध का बिषय है. लेकिन इतना तो तय है कि नंदप्रयाग में बसे ये मुस्लिम हिन्दू गौड़ ब्राह्मण मनु गौड़ की संतति हैं।
यह है श्री बद्रीनाथ जी की आरती…..
पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम |
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम |
शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम |
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम |
सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम |
श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
कैलाश में एक देव निंरजन शैल शिखर महेश्वरम |
राजयुधिष्ठिर करतस्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
श्री बद्री जी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम |
कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम |