देहरादून : सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव, परमवीर चक्र विजेता ने ”विद्यावीरता अभियान” कार्यक्रम के दौरान बताया 20 मई 1999 का दिन मैं कभी नहीं भूल सकता। तब मेरी उम्र मात्र 19 साल और नौकरी ढाई साल की थी। पांच मई को मेरी शादी थी। छुट्टियां लेकर घर आया था। कि अचानक 20 मई को हैड क्वार्टर से बुलावा आ गया।
मेरी बटालियन को दराज सेक्टर के तोलोलिंग पहाड़ी फतह करने का टास्क मिला। तोलोलिंग पहाड़ी पाकिस्तानी फौज के कब्जे में थी। मेरी पलटन के जांबाज फौजियों ने 22 दिन की लंबी लड़ाई के बाद तोलोलिंग पहाड़ी पर कारगिल युद्ध की पहली विजय के साथ तिरंगा फहरा दिया।
तोलोलिंग के बाद पलटन का अगला टास्क टाइगर हिल टॉप था। टाइगर हिल टॉप पूरी तरह पाकिस्तानी फौज के कब्जे में था। वहां पहुंचना आसान नहीं था। जुनून और जज्बे के साथ मेरी पलटन ने दुश्मनों की तरफ कदम बढ़ाते हुए चढ़ाई शुरू कर दी।
पाकिस्तानी फौज पहाड़ी की चोटी पर थी। उसके लिए टारगेट बहुत आसान था। मैने और मेरी पलटन के जवानों ने रास्ता साफ करने के लिए पांच पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया। पाकिस्तानी फौज ने ताबड़तोड़ गोलीबारी कर हिंदुस्तानी फौज का रास्ता रोक दिया।
पाकिस्तानी फौज की गोलीबारी से बचते हुए मैं अपने सात जांबाज जवानों के साथ टाइगर हिल टॉप पहुंचा। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई। हमारे पास बारूद कम था। तब कुछ समझ नहीं आ रहा था।
जुनून सिर्फ टाइगर हिल टॉप पर तिरंगा फहराने का था। पाकिस्तानी फौज की आंखों में धूल झोंकने के लिए हमने प्लान के तहत गोलीबारी बंद कर दी। इससे पाक फौज गलतफहमी का शिकार हो गई।
सिक्के ने ऐसे बचाई थी मेरी जान
उन्हें लगा कि गोलीबारी में हिंदुस्तानी फौजी मर गए। रणनीति के तहत अचानक पाकिस्तानी फौज पर हमला बोल दिया और कई पाकिस्तानी मारे गए। कुछ पाकिस्तानी फौजी भाग निकले और हमने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया।
जीत का जश्न मना पाते 35 मिनट के बाद पाक की तरफ से दोबारा हमला हो गया। पाक फौजियों की संख्या काफी अधिक थी। आमने-सामने की लड़ाई में मेरे सभी साथी मारे गए। मैं भी बुरी तरह जख्मी हो गया। हाथों और पैरों में कई गोलियां लगी थी। लहूलुहान जमीन पर गिरा था। पाक फौजियों ने शहीद हिंदुस्तानी फौजियों के साथ क्रूरता की।
शहीदों के पार्थिव शरीर को बूटों से कुचला और गोलियां बरसाई। जमीन पर पड़ा मैं सब देख रहा था। पाक फौजी वापस होने लगे। एक सैनिक ने जाते-जाते मेरे हाथ और पैरों में गोलियां दागी। उस वक्त दर्द को मैं भूल गया। पाक सैनिक ने एक गोली मेरे सीने में दागी।
मेरी जैकेट की जेब में सिक्के थे। सिक्कों ने मेरी जान बचा ली। सीने में गोली लगते ही मुझे एहसास हो गया मैं जिंदा नही बचूंगा। भगवान मेरे साथ था। हाथ में गोली लगने से वो सुन्न हो गया था। ऐसा लगा हाथ जिस्म से अलग है। मैंने हाथ उखाड़ने की कोशिश की। लेकिन हाथ जिस्म से अलग नहीं हुआ।
जब 72 घंटे से आधे डिब्बा बिस्कुट पर था जिंदा
मुझे एहसास हो चुका था मेरी मौत नहीं हो सकती। मैंने दर्द को भुलाकर हिम्मत जुटाई और रैंगते हुए शहीद सैनिकों के पास गया। कोई जिंदा नहीं था। काफी रोया। मेरे पास एक हैंड ग्रेनेड बचा था। उसे खोलकर फेंकने की ताकत नहीं थी। कोशिश की और ग्रेनेड खोलने के साथ फट गया और बाल बाल बचा।
फिर अपने साथी की राइफल उठाई और ताबड़तोड़ गोलियां चलाते हुए एक नाले से लुढ़ककर नीचे आ गया। खाने को कुछ नहीं था। ठंड से जिस्म अकड़ा था। खुद को भारतीय फौज के बेस तक पहुंचाया।
वहां पहुंचने पर पाकिस्तानी फौज की पूरी प्लानिंग की जानकारी दी। 72 घंटे से आधे डिब्बा बिस्कुट पर जिंदा था। तीन दिन के बाद होश आया। तब तक मेरी बटालियन ने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर तिरंगा फहराने के साथ कारगिल युद्ध में विजय फतह कर ली।
सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव ने कहा शायद अब आपको शायद ये किसी फिल्म की कहानी लगे कि एक सिक्के ने युद्घ में किसी की जान बचा ली। लेकिन यह बिल्कुल सच है।जिसकी जान एक सिक्के ने बचाई और उसने दुश्मनों से लड़ते हुए कारगिल युद्घ में विजय के बाद हिल टॉप पर तिरंगा फहराया।
वक्त गुजरने के साथ यादें धुंधली हो जाती हैं। कारगिल विजय को पूरे 17 साल हो गए। कारगिल की यादें जहन में आज भी जिंदा हैं। वहीं यादें मेरा हौसला बढ़ाती हैं और हर मोर्चे पर ताकत देती हैं।
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