”चिपको आंदोलन” के जनक रैंणी गांव के ग्रामीणों का डर जब हुआ सच !
एक मामूली हिमखंड से मानव निर्मित विशाल पावर हाउस,पुल और यहाँ तक कि तपोवन तक निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना तक को धराशाही कर डाला
कथित विकास के नाम पर यदि ऐसे ही जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण होता रहेगा तो एक दिन प्रकृति का यह प्रकोप तो झेलना पड़ेगा
राजेंद्र जोशी
देहरादून : देश -दुनिया में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को लेकर वर्ष मार्च 1973 में इसी ऋषि गंगा के पास बसे रैणी गांव से ही चिपको आंदोलन की शुरुआत तब हुई थी जब इसी गांव के ऊपरी भाग के जंगल को काटने के लिए लकड़ी के ठेकेदारों ने स्थानीय ग्रामीणों के पेड़ों को बचाने की मुहीम को नज़र अंदाज़ करते हुए उनपर आरियां और कुल्हाड़ियाँ चलानी शुरू कर दी थी,लेकिन इसी गांव की गौरा देवी और उनकी सहेलियों ने उन्ही पेड़ों को बचाने के लिए उन पेड़ों को अपनी आगोश में ले लिया था और उस दौरान इस आंदोलन को पर्यावरविद चंडी प्रसाद भट्ट का साथ मिला तो शासन -प्रशासन को पीछे हटना पड़ा था।
ज्ञात हो यह वही रैणी का जंगल है जहाँ से ऋषिगंगा बहकर निकलती है और धौली गंगा में जा मिलती है। इसी ऋषि गंगा के उद्गम से लेकर धौली गंगा में जा मिलने से कुछ ही पहले रैणी गांव के पास वह पावर स्टेशन था जिसको हिमखंड ने अपनी आगोश में लिया और और उसका अस्तित्व ही मिटा डाला, जबकि इससे पहले ग्रामीण इस पावर स्टेशन के यहाँ बनाये जाने का विरोध कर रहे थे कि इससे उनकी शांति तो भंग हो ही जाएगी साथ ही उसकी स्थापना के लिए वहां लगने वाले स्टोन क्रशर और ब्लास्टिंग से इलाके का पर्यावरण भी खराब हो रहा है लेकिन ग्रामीणों के इस डर को सत्ता से लेकर शासन ने अनसुना कर दिया और उसकी परिणीति इस भयंकर आपदा के रूप में सामने आया जब एक ग्लेशियर के मामूली हिमखंड से मानव निर्मित विशाल पावर हाउस,पुल और यहाँ तक कि तपोवन तक निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना तक को धराशाही कर डाला।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड में चमोली जिले के रेणी गांव वाले करीब दो साल पहले ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचे थे। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर दो आदेश भी जारी किए थे, लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। ग्रामीणों ने 2019 की गर्मियों में गांव वालों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो पता करे कि आखिर चमोली जिले के रेणी गांव में ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना से जुड़े कंस्ट्रक्शन के काम को लेकर हो क्या रहा है।
इतना ही नहीं उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चमोली जिला अधिकारी और सदस्य सचिव, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक संयुक्त टीम गठित करने के निर्देश भी दिये थे। कोर्ट ने कहा था कि ये कमेटी ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना स्थल का निरीक्षण करेगी। गांव वालों ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि ब्लांस्टिंग और स्टोन क्रशिंग के काम से पर्यावरण और स्थानीय लोगों के जीवन पर असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक इलाके में ब्लास्टिंग के काम पर रोक भी लगा दी थी जो अभी भी जारी है।
ज्ञांत हो कि ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना चमोली जिले में ऋषि गंगा नदी पर स्थित थी, जो कि अलकनंदा की एक सहायक नदी है। यह प्रोजेक्ट जोशीमठ से करीब 27 किलो मीटर दूर रेणी गांव के पास स्थित है। अलकनंदा के बेसिन और उसकी सहायक नदियों पर वर्तमान में एक ही परियोजना नहीं बल्कि इस पर ऋषिगंगा, जोशीमठ के ही पास विष्णुप्रयाग, पीपल कोटी, श्रीनगर और तपोवन विष्णुप्रयाग पनबिजली परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि क्या यहाँ की पारिस्थितकीय संरचना की धत्ता बताते हुए कथित विकास के नाम पर यदि ऐसे ही जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण होता रहेगा तो एक दिन प्रकृति का यह प्रकोप तो झेलना ही पड़ेगा। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव स्थानीय लोगों पर पड़ता है जबकि इन परियोजनाओं के निर्माण में लगे उद्योगपतियों को परियोजना के क्षतिग्रस्त हो जाने पर इंश्योरेंस से मिलने वाले पैसे से क्षतिपूर्ति हो जाती है लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के पास अपनों को खोने का गम पीढ़ी दर पीढ़ी सालते रहने पर मज़बूर होना पड़ता है।