सभ्य समाज में लैंगिक और यौनिक हिंसा कैसे ?
एशिया पैसिफिक देशों में अंतरंग साथी द्वारा लैंगिक और यौनिक हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 15 से लेकर 64% तक
माया जोशी
अनेक देशों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के चलते उत्पन्न गहरी लैंगिक असमानताएं तथा भेदभाव पूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएँ हैं और इस क्षेत्र में लैंगिक और यौनिक हिंसा की व्यापकता भी जारी है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, एशिया पैसिफिक देशों में अंतरंग साथी द्वारा लैंगिक और यौनिक हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 15 % (भूटान, लाओ पीडीआर, जापान और फिलीपींस में) से लेकर 64% (फिजी और सोलोमन द्वीप में) तक है। पिछले एक साल में अंतरंग साथी की हिंसा से प्रताड़ित महिलाओं का प्रतिशत 4% (जापान) से 48% (पापुआ न्यू गिनी) रहा है। ये सभी महिलाएं, जो विभिन्न प्रकार की हिंसा का सामना कर रही हैं, वे इसको रोकने या अपने हिंसात्मक संबंध छोड़ने की कोई राह नहीं खोज पा रही हैं।
कई अध्ययनों से साबित होता है कि आपदा के समय में लैंगिक और यौनिक हिंसा बढ़ जाती है। इंडोनेशिया के सेंट्रल सुलावेसी क्षेत्र मे किए गए ऐसे ही एक अध्ययन के नतीजों को संयुक्त राष्ट्र संस्था (यूएनएफपीए) इंडोनेशिया के प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रम की राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी सुश्री मेलानिया हिदायत ने साझा किया। इस अध्ययन से पता चलता है कि एक प्राकृतिक आपदा (भूकंप और भूस्खलन) के बाद लैंगिक और यौनिक हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार और घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ गई। परन्तु अधिकाँश पीड़ित महिलाएं, संकोच और लज्जा वश यह त्रासदी चुपचाप सहती रही हैं। इसके अलावा उन्हें अपने परिवार वालों का भी सहयोग नहीं मिलता। अपराधी का विरोध करने के बजाय परिवार जन और समाज भी उन्हें ही दोषी करार करते हैं।
और तो और, मानवीय कार्यक्रम प्रबंधक और सेवा प्रदाता भी आपातकालीन मानवीय सेवा कार्यक्रमों में लैंगिक और यौनिक हिंसा की रोकथाम और प्रबंधन को प्राथमिकता के रूप में नहीं देखते हैं। साथ ही सामुदायिक जागरूकता और समझ में भी कमी है जो महिलाओं को पुनः हिंसा के जोखिम की ओर ले जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अनेक बार यह कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान किये गए वैश्विक लॉकडाउन के परिणामस्वरूप पहले से विद्यमान लैंगिक और यौनिक हिंसा में भयावह वृद्धि हुई है, जिसके कारण लैंगिक असमानताएं और अधिक बढ़ गई हैं।
कोविड-19 के कारण महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा के बढ़ते हुए खतरों ने एशिया पैसिफिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। इसने मौजूदा महिला हिंसा रोकथाम की रणनीतियों के संचालन में अतिरिक्त बाधाओं को उत्पन्न किया है तथा लैंगिक और यौनिक हिंसा झेलने वाली महिलाओं की अत्याचारियों से निपटने की क्षमता को भी कम किया है और उनकी जीवन-रक्षक सेवाओं तक पहुँच को सीमित कर दिया है।
लेकिन महामारी के दौरान इस हिंसा से निपटने के कुछ नए तरीके भी उत्पन्न हुए हैं, जैसा कि यूएनएफपीए, एशिया पैसिफिक रीजनल ऑफिस की तकनीकी विशेषज्ञ, डॉ सुजाता तुलाधर ने बताया। उन्होंने ऐसे कई देशों के उदाहरण दिए जहाँ महामारी के बावजूद, समुदाय आधारित (कम्युनिटी बेस्ड) डिजिटल उपकरण, जैसे रेडियो और टीवी, सामुदायिक सहभागिता और संघटन कार्यक्रमों को जारी रखने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं।
फिलीपींस में सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के जरिए टेक्स्ट मैसेज सहित अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म का उपयोग महिलाओं के खिलाफ हिंसा की दृश्यता को बढ़ाने और मौजूदा सेवाओं के बारे में जानकारी देने के लिए किया जा रहा है।
पैसिफिक क्षेत्र में द्वीप देशों में लैंगिक और यौनिक हिंसा से सम्बंधित संदेशों को उन आपातकालीन कार्डों में शामिल किया जा रहा है जो लोगों को कोविड- १९ संबंधित जानकारी प्रदान करने के लिए दिए जाते हैं।
पाकिस्तान, मंगोलिया और इंडोनेशिया आदि देशों में फ़ोन/टेली काउंसलिंग अब आम बात हो गई है। नेपाल में प्रशिक्षित समुदाय कार्यकर्ताओं को मोबाइल फ़ोन के लिए ‘क्रेडिट’ दिए गए हैं, ताकि वे टेलीफोन द्वारा समुदाय की उन महिलाओं से निरंतर संपर्क बनाये रह सकें जिन्हें हिंसा का खतरा है, और ज़रुरत पड़ने पर उनकी सहायता भी कर सकें।
सेवा प्रदाता मोबाइल सुरक्षा ऐप और अन्य ऑनलाइन संसाधनों के माध्यम से भी लैंगिक और यौनिक हिंसा से जूझती हुई महिलाओं से जुड़ रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है फिलीपींस में हाल ही में ही शुरू किया गया मोबाइल ऐप ‘हर वॉयस’ (महिला की आवाज़)।
सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जैसे दाई और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता, को भी और अधिक सहयोग प्रदान किया जा रहा है, ताकि वे लैंगिक और यौनिक हिंसा के मामलों को पहचान कर सम्बंधित महिलाओं की यथोचित सहायता कर सकें। ऐसा ही एक उदाहरण है बांग्लादेश का कॉक्स बाज़ार, जहां दाई-महिलाओं के लिए सुरक्षित और अनुकूल स्थान में बैठ कर हिंसा से पीड़ित महिलाओं को सहायता प्रदान करती हैं।
इन सभी प्रयासों के बावजूद भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं।अधिकांश संदर्भों में लैंगिक और यौनिक हिंसा सेवाओं को अभी भी आवश्यक कोविड-१९ सेवाओं के रूप में नहीं माना जाता है और लैंगिक और यौनिक हिंसा सेवाओं का दूरस्थ प्रतिपादन अभी भी कठिन है।
इसके अलावा हिंसा प्रतिपादित करने के नये नए उपक्रम भी सामने आ रहे हैं। डिजिटल तकनीक साध्य लैंगिक और यौनिक हिंसा सबसे नवीनतम तरीका है, जहां अपराधी दूर बैठे ही इंटरनेट के माध्यम से किसी महिला को ब्लैकमेल कर सकता है, बिना सहमति के उसके निजी फ़ोटो/वीडियो पब्लिक कर सकता है, उसका ऑनलाइन पीछा (स्टॉकिंग) कर सकता है और उसे नुक़सान पहुँचाने की धमकी दे सकता है।
लैंगिक और यौनिक हिंसा को समाप्त करने के लिए – दीर्घकालिक व परिवर्तनकारी बदलाव सुनिश्चित करने के लिए – संभवतः कोविड-19 महामारी ने अभिनव दृष्टिकोण अपनाने का अवसर प्रदान किया है। १०वीं एशिया पैसिफ़िक कान्फ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हैल्थ एंड राइट्स (एपीसीआरएसएचआर) के आभासी सत्र के दौरान एक बात जो उभर कर सामने आयी, वह यह थी कि हिंसा की घटनाओं की रोकथाम के उपायों में पुरुषों और लड़कों को भी सम्मिलित करना आवश्यक है। हम केवल लड़कियों और महिलाओं पर ही ध्यान केंद्रित नहीं कर रख सकते हैं। लैंगिक समानता लाने के लिए हमें पुरुषों का पूर्ण सहयोग लेकर काम करने की जरूरत है, यह मानना है बर्मा की पूर्व उप-स्वास्थ्य मंत्री प्रोफेसर थेन थेन थे, का।
मेलानिया हिदायत ने चेताया कि लैंगिक और यौनिक हिंसा को समाप्त करने के लिए पुरुष समूहों के साथ मिलकर काम करना तो अच्छा है, लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि कहीं वे इस भागीदारी के ज़रिये महिलाओं पर और अधिक हावी न हो जाएँ। असल इरादा तो महिलाओं को उनकी गतिविधियों या काम को सीमित किए बिना सुरक्षित करने का है।
वाईपी फाउंडेशन इंडिया में कार्यरत सागर सचदेवा का मानना है कि भारत जैसे देशों में बढ़ता हुआ धार्मिक कट्टरवाद और दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद, लैंगिक और यौनिक हिंसा के साथ-साथ विकृत पित्रत्मकता पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है। इसके चलते अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ हिंसा में भी वृद्धि हुई है।
सुजाता तुलाधर ने हिंसा की रोकथाम और सामाजिक मानदंडों में बदलाव हेतु निरंतर निवेश के लिए आह्वान किया- चाहे वह बच्चों की उचित परवरिश सम्बन्धी कार्यक्रमों के माध्यम से हो, या जीवन कौशल कार्यक्रमों के माध्यम से, या फिर ऐसी व्यापक बाल-शिक्षा के माध्यम से जो युवा लड़कियों और लड़कों के जेंडर सम्बन्धी मानदंडों को संबोधित कर उनमें रचनात्मक सुधार ला सके।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के अभियान, ‘यूनाइट टू एंड वॉयलेंस अगेंस्ट वीमेन कैंपेन’, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हर प्रकार की हिंसा को रोकने और समाप्त करने की दिशा में प्रयास है। यह वैश्विक स्तर पर उचित कार्यवाही का आह्वान करता है जिसके द्वारा निवेश की कमी को पूरा किया जा सके, हिंसा से जूझ रही महिलाओं /लड़कियों के लिए आवश्यक सेवाएं सुनिश्चित की जा सकें, लैंगिक हिंसा की रोकथाम की जा सके, और साक्ष्य आधारित नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए विश्वसनीय डेटा इकठ्ठा किया जा सके, ताकि महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा- चाहे वह यौन हिंसा हो या फिर शारीरिक या भावनात्मक हिंसा- समाप्त हो सके।
(माया जोशी भारत संचार निगम लिमिटेड – बीएसएनएल – से सेवानिवृत्त माया जोशी अब सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के लिए स्वास्थ्य और विकास सम्बंधित मुद्दों पर निरंतर लिख रही हैं)