रानीखेत को ब्रिटिश अधिकारियों ने अपनी फौज के लिए वर्ष 1869 में छावनी के रूप में चुना
सी एम पपनैं
रानीखेत (उत्तराखंड)। उत्तराखंड स्थित देश का सु-विख्यात रमणीक पर्यटन स्थल रानीखेत अपनी स्थापना के वैभवशाली 150 वर्ष पूर्ण कर चुका है। स्वर्गिक सुषमा से आच्छादित रानीखेत दशकों से देश-विदेश के सैलानियों के लिए मात्र आकर्षण का केंद्र ही नहीं रहा है, एक प्रेरणाश्रोत पर्यटन स्थल भी रहा है।
देश के जानेमाने साहित्यकारों ने जहां इस पर्यटन नगरी में श्रेष्ठ गद्य-पद्य की रचना कर साहित्य स्मृद्धि व ख्याति अर्जित की। वहीं कुमाऊं व नागा रेजीमैंट का मुख्यालय होने से सैनिक वीरों ने युद्ध के करतब सीख, देश की सीमाओं पर दुश्मन को धूल चटा, परचम लहराया। भारतीय फौज को सबसे ज्यादा जनरल दिए। युद्ध के सबसे बड़े वीरता मैडल प्राप्त किए, वहीं पहली बार दुनिया के सबसे उच्च शिखर एवरेस्ट को फतह करने की प्रेरणा भी इसी पर्यटन नगरी रानीखेत से मिली। हालांकि विगत कुछ दशकों से बढ़ती विकृत जन आकांक्षाओ ने सौम्य प्रकृति का अंधाधुन्ध दोहन कर, उसके नैसर्गिक सौन्दर्य को अपार क्षति पहुंचाई है, फिर भी, खूबसूरत पर्यटन नगरी रानीखेत मे अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, सन 1815 मे गोरखाओं और अंग्रेजी फौज के मध्य हुए युद्ध के दौरान, अंग्रेजों का आगमन रानीखेत मे हुआ। बड़े ही सुनियोजित रूप से ब्रिटिश हुकूमत ने सन 1815 से 1947 तक भारत की निचली पर्वत श्रंखलाओं में चार हजार से आठ हजार फीट की ऊंचाई पर, करीब अस्सी शहरी बस्तियां बसाई। रानीखेत भी उनमे एक था। दो पर्वत श्रेणियों, जिन्हे रानीखेत रिज, ऊंचाई 5983 फिट व चौबटिया रिज, ऊंचाई 6942 फिट, कुल क्षेत्रफल 4176.031 एकड़ मे रानीखेत पर्यटन नगरी बसी हुई है।
ब्रिटिश हुकूमत ने रानीखेत की सुरम्य प्रकृति व स्वास्थ वर्धक जलवायु को अपने अधिक करीब पाया। चारों ओर हरित चीड़, बांज, बुरांश व देवदार वन, उत्तर में हिमालय की हिम श्रेणियां, स्वछ जलवायु के कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने अपनी फौज के लिए इस स्थान को सन 1869 मे छावनी के रूप में चुना।
भारत के चौथे वायसराय लार्ड मेयो (1869-1872) ने जब प्रथम बार रानीखेत का भ्रमण किया, तो वह विलक्षण प्राकृतिक सुषमा के मुरीद हो गए। भारत की ग्रीष्म कालीन राजधानी को शिमला से रानीखेत शिफ्ट करने को उतारू हो गए। इस क्रम में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठके भी की। रानीखेत को रामनगर रेल लाइन से जोड़ने के लिए सर्वे करने का आदेश भी जारी किया। 8 फरवरी 1872 को एक अफगान शेरअली अफरीदी द्वारा उस्तरे से गोंद कर लार्ड मेयो की हत्या कर दी गई। असमय हुई इस मौत से, रानीखेत के लिए राजधानी और रेल दोनों स्वप्न बन कर रह गए।
हिमालय की चोटियों के विहंगम दृश्यों का अवलोकन ब्रिटिश हुकुमतदार रानीखेत मे निर्मित सुन्दर बंगलों, होटलो, खेल मैदानों, चाय व फल बगानों से पल-पल किया करते थे। मुख्य मार्ग से निर्मित प्रत्येक बंग्ले व होटल तक सड़क निमार्ण कार्य, सुबह सायं टहलने के लिए मालरोड, खरीदारी के लिए सदर बाजार व सैनिकों के लिए लालकुर्ती, अंग्रेज फौजी अधिकारियों ने बनवाई।
ब्रिटिश फौज अधिकारियों के साथ देश-विदेश से भ्रमण पर पहुचने वाले सैलानियों ने रानीखेत की भव्य रमणीक प्राकृतिक सौन्दर्यता के दर्शन करने के साथ-साथ स्थानीय सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, खेल इत्यादि गतिविधियों का अवलोकन कर, आनंद मना, प्रकृति के इंद्रलोक रानीखेत को, उसके शैशव काल मे ही, पर्यटन के मानचित्र पर ला खड़ा किया था।
समय गुजरते, रानीखेत मे छावनी परिषद, तहसील, स्कूल, बैंक, सरकारी दफ्तरों व सिनेमा टाकीज खुलने तथा सिविल नागरिको की आबादी मे निरंतर बृद्धि से खड़ी बाजार, जरूरी बाजार, आबकारी, दय्योलीखेत, राजपुर, रायस्टेट, मालरोड, चौबटिया इत्यादि सिविल रिहायसी इलाको व बाजार का विस्तार होता चला गया। 2011 की जनगणना के मुताबिक रानीखेत छावनी के सिविल नागरिकों की कुल आबादी 18,886 की संख्या तक पहुच चुकी थी।
रानीखेत स्थापना के 150 वर्षो के गौरवशाली ऐतिहासिक पन्नों मे, रानीखेत प्रवास मे रहे कुछ सैलानियों से जुडी मिशाले भी प्रेरणादायी रही हैं, जो दिल मे जोश व जश्बा पैदा कर, आज की पीढ़ी को कुछ कर गुजरने हेतु हौसला प्रदान करती है। साहित्य रचना के क्षेत्र मे जिन प्रबुद्ध साहित्यकारो ने रानीखेत प्रवास मे अपनी श्रेष्ठ रचनाए रची, उनमे सुमित्रा नंदन पंत, राहुल सांकृत्यायन, निर्मल वर्मा, नामवर सिंह, अज्ञयेय, उमर अंसारी, रामकुमार, उपेंद्र नाथ अश्क, यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’, रमेश चंद्र शाह, राजेन्द्र यादव, श्रीपत राय, अकुलेश परिहार, डॉ राम सिंह, दिनेश पाठक इत्यादि का नाम प्रमुखता के साथ लिया जा सकता है।
रानीखेत मे प्रवासरत पर्वतारोही सैलानियों मे प्रथम एवरेस्ट विजेता शेरपा तेनजिंग नोर्गे का नाम भी पर्यटन नगरी के 150 वर्षो के इतिहास मे दर्ज है। सन 1936 मे ह्यू रत्नेज के नेतृत्व मे गए ब्रिटिश एवरेस्ट आरोहण के असफल लौटने के बाद, दो सप्ताह तक रानीखेत प्रवास मे रहे, शेरपा तेनजिंग नोर्गे को रानीखेत के उत्तर मे स्थित देवतुल्य विराट हिम शिखरों के रमणीक दर्शनों से जो प्रेरणा प्राप्त हुई, उसी के परिणाम स्वरूप उन्होंने मध्य हिमालय की 80 से 100 कि.मी. की चौड़ाई मे फैले उत्तराखंड के हिम शिखरों सहित 2400 कि.मी. की लंबाई मे फैले हिमालय की सौ से ज्यादा गगनचुम्बी चोटियों पर विजय पताका फहरा, उन चोटियों की सही ऊंचाई की माप का ज्ञान विश्व समुदाय को करवाया। साथ ही विश्व के विराट अविजित हिमशिखर एवरेस्ट को इस महान पर्वतारोही ने 39 वर्ष की उम्र मे फतह करने का गौरव हासिल किया।
रानीखेत मे निवासरत सन 1936 की पीढ़ी ने तब बसंत ऋतु मे ईरिक शिप्टन के साथ मध्य हिमालय के सर्वेक्षण अभियान के लिए चुन लिए गए नेपाली अंचल थामी गांव के शेरपा तेनजिंग को अगर देखा भी होगा, तो रानीखेत मे घूमते-फिरते अन्य कुलियों की भांति ही उन्हे भी, एक साधारण कुली ही समझा होगा।
रानीखेत प्रवास मे शेरपा तेनजिंग को पूर्व दिशा मे शोभायमान मध्य हिमालय की सौम्य विराट पर्वत श्रंखलाओ ने दिल की गहराई तक प्रभावित किया था।अपने एक मित्र से तेनजिंग ने कहा था- (तेनजिंग नोर्गे की आत्म कथा से) ‘ऐसा लगता है कि मै अपने घर में हूं। हिमालय यहां से भी उतना ही करीब है, कि मै उसकी धड़कने सुन सकता हूं’।
सन 1936 से पूर्व तक विराट हिमालय की गगन चुम्बी चोटियों की वास्तविक ऊंचाई का पता किसी भी देश को ज्ञात नही था। रानीखेत पहुचे इस आरोही दल को माह जुलाई व अगस्त मे सर्वेक्षण विभाग के अधिकारी मेजर ओस्माइस्टन के साथ उत्तराखंड की सर्वाधिक ऊंची नंदादेवी शिखर की गोद मे सर्वेक्षण कार्य करना था।
अपने प्रेरणाश्रोत रमणीक कस्बे रानीखेत मे सन 1947 माह सितम्बर मे दूसरी बार शेरपा तेनजिंग नोर्गे तीन शिखरों की विजय का सम्मान जुड़ने के पश्चात पुनः आए। तब वे पहले शेरपा नायक बनाए गए थे। विजयी तीन शिखरों मे नंदाघुंटी हिम विहीन चट्टानी चोटी 6309 मीटर की दुरूह चढ़ाई इनमे मुख्य थी। जिसे फतह कर वापसी मे शेरपा तेनजिंग अपने दल के साथ रानीखेत प्रवास मे ठहरने के बाद मंसूरी को रवाना हुए।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, पर्वतारोहण के क्षेत्र मे शेरपा तेनजिंग नोर्गे को उत्तराखंड की लगभग उच्च चोटियों की माप हेतु किए गए अभियानों से मिले हिम्मत-हौसले ने उनके पर्वतारोहण कौशल को निखारा। हिमालय की चुनोतियों से जूझने का उन्हे ज्ञान मिला। इन्ही अनुभवो के बल शेरपा तेनजिंग नोर्गे का अविजित विराट हिम शिखर एवरेस्ट को फतह करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
13 अप्रैल से 3 जून 1953 के अभियान मे न्यूजीलैंड के एडमंड पर्सिवल हिलेरी के साथ 29 मई 1953 अपरान्ह 11.30 बजे शेरपा तेनजिंग नोर्गे और हिलेरी ने एवरेस्ट के 29,028 फीट ऊंचे शिखर को पहली बार छू कर चमत्कारिक, ऐतिहासिक कारनामा कर दिखाया था।
एवरेस्ट विजय से पूर्व शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने उत्तराखंड क्षेत्र के सौ से अधिक हिम पर्वत शिखरो मे साहस और हौसले के साथ सफल पर्वतारोहण कर अपने को जिस अभियान के लिए निरंतर तैयार किया था, उस अविजित विराट हिमशिखर एवरेस्ट पर विजय हासिल करने मे निः संदेह रानीखेत प्रवास मे हिमशिखरों के भव्य दर्शनों से मिली प्रेरणा से व मध्य हिमालय उत्तराखंड के बार-बार के आरोहणो व अभियानों मे मिली निरंतर सफलता के बल ही शेरपा तेनजिंग नोर्गे को उस योग्य बनाया कि उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर डाली। शेरपा तेनजिंग नोर्गे द्वारा एवरेस्ट विजय की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को 2020 मे 67 वर्ष हो गए हैं।
सु-विख्यात पर्यटन नगरी रानीखेत की 150 वर्षो की वैभवगाथा मे पारंपरिक स्मृद्ध सांस्कृतिक आयोजनों की भी अहम भूमिका रही है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकिया, गेय प्रधान रामलीला व होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। रानीखेत मे नन्दाष्टमी महोत्सव विगत 129 वर्षो से निरंतर प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता रहा है, जो अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण एक अलग ही छटा लिए हुए होता है। इसी प्रकार गणेश चतुर्दशी, मोहर्रम व चेहलुम का भी इस पर्यटन नगरी मे विशेष महत्व रहा है।
रानीखेत छावनी के 150 वर्षो के वैभवशाली इतिहास को संजोने मे स्थानीय प्रबुद्ध नागरिकों का बड़ा योगदान रहा है। दुर्भाग्यवश, वर्तमान मे स्थानीय सिविल नागरिक रानीखेत छावनी के अंतर्गत देश की अन्य 61 छावनियों के करीब पचास लाख सिविल नागरिकों की तरह दोयम दर्जे की नागरिकता जीने को मजबूर हैं। 12 सितम्बर सन 1836 के गवर्नर जनरल आड्स (जीजीओ) जैसे पुराने ब्रिटिश गुलाम कालीन कानून के तहत, उनको अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद का हक देश को मिली आजादी के 73 वर्षो बाद भी नही मिल पाया है। उक्त विषय के बावत संसद के आगामी मानसून सत्र मे ‘कैंटोनमेंट बिल 2020’ प्रस्तावित है, जिसके यथावत पारित हो जाने पर, रानीखेत के सिविल नागरिको का अस्तित्व ही दाव पर लग जाएगा, सदैव के लिए। ऐसे में रानीखेत के 150 वर्षो का वैभवशाली इतिहास कही दफन न हो जाए, नोकरशाहो व सियासतदारो की अकड़ व दमनकारी नीतियों मे।