LITERATURE

दुनिया में सात हजार बोली-भाषाओं में से आधी विलुप्ति के कगार पर

ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल और साहित्य का उत्थान ‘राइटर्स मीट 2020’ का ऑनलाइन आयोजन

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। एशियन अकादमी ऑफ आर्ट की ओर से ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल  ‘राइटर्स मीट 2020’ में कहा गया कि पत्रकारिता से साहित्य लुप्तप्रायः हो गया। किताबें प्रकाशित हो रही हैं, पढ़ी नही जा रही हैं। अन्य देशों में लोग अपनी भाषाओ को महत्व देते हैं। हमारे देश के लोग अंग्रेजी को महत्व देते हैं। सात हजार बोली-भाषाएं विश्व में हैं,आधी विलुप्ति के कगार पर हैं।
लिटरेरी फेस्टिवल का ऑनलाइन शुभारंभ और अध्यक्षता करते हुए डॉ. संदीप मारवाह ने कहा कि 2015 मे इस आयोजन की शुरुआत एक मीडिया एजुकेशन के दौरान, छात्रों को बोलने, लिखने व पढ़ने की ओर अग्रसर करने के लिए एक कमेटी का गठन करके की गई। कमेटी की विचारधारा बनी, क्यों न लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन करें। पहला आयोजन जर्नलिज्म के छात्रों के बैच से आरंभ हुआ।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष वैश्विक कोरोना संकट के कारण आयोजन स्थगित नहीं करके ऑनलाइन किया जा रहा है। हमारा मकसद सभी भारतीय भाषाओं, चाहे वह आंचलिक ही क्यों न हो, संवर्धन व संरक्षण करना है। सौ से ज्यादा विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित पुस्तकों का लोकार्पण अब तक हो चुका है। ग्लोबल स्तर पर फिल्म, टीवी, आर्ट, फैशन व पत्रकारिता के छात्र भी इस फेस्टिवल से जुड़े रहे हैं। 145 देशों के लोगो ने स्थानीय भाषा में, अपनी विचारधारा को फेस्टिवल मे व्यक्त किया। 
डॉ. मारवाह ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से नेशनल अवार्ड जूरी से चयनित साहित्यकार को प्रदान किया जाता है। छात्रों को पढ़ना, बोलना व लिखना आना चाहिए, मुख्य उद्देश्य रहा है। 
ऑनलाइन जुड़े हिंदी साहित्यकारों ने कहा कि साहित्य के अस्तित्व को लेकर नई सोच पैदा हो रही है। कोरोना संकट ने सबको इकट्ठा कर दिया है, जो कोरोना की त्रासदी से बच जाएंगे, वे नई दुनिया का निर्माण करेंगे।
उन्होंने कहा कि बाजारीकरण में साहित्य गिरता जा रहा है। साहित्य में कमी नजर आ रही है। साहित्य का रूप परिवर्तित होता जा रहा है। पत्रकारिता से साहित्य लुप्त प्रायः हो गया है। किताबें प्रकाशित हो रही हैं, पढ़ी नही जा रही हैं। अन्य देशों में लोग अपनी भाषाओ को महत्व देते हैं। हमारे देश के लोग अंग्रेजी को महत्व देते हैं। सात हजार बोली-भाषाएं विश्व में हैं,आधी विलुप्ति के कगार पर हैं।
साहित्यकारों ने कहा कि उत्तर प्रदेश की मूल भाषा हिंदी है। हिंदी में वहां के दस लाख छात्र फेल हो जाते हैं, उस पर विचार करना चाहिए। हिंदी की समृद्धि के लिए स्थापित सरकारों से अपेक्षा नही की जा सकती। छपी हुई किताबों की गणना होती है। कोशिश लिखने की जो नई दिशा में हो रही है, उसकी गणना नहीं है।
साहित्यकारों ने कुछ सुझाव भी दिए, जिनमें प्रादेशिक भाषा व हिंदी को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। इस दौरान साहित्यकारो के साथ सवाल-जवाब का सत्र भी चला। करीब डेढ़ घंटे चले ऑनलाइन ग्लोबल विमर्श का संचालन नेशनल अकादमी ऑफ आर्ट के निदेशक सुशील भारती ने किया। इस मौके पर साहित्यकार डॉ. दिविक रमेश, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्रा, डॉ. मीनाक्षी जोशी, प्रो.डॉ. उषा उपाध्याय, डॉ. विवेक गौतम, डॉ. आशीष कांधवे, डॉ. रेखा राजवंशी, भावना सक्सेना, देवेन्द्र मित्तल, आशा शैली, निशा भार्गव, रवि पराशर, मुख्य रूप से शामिल हुए।

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