EXCLUSIVE
लॉकडाउन के नाम पर लूट सके तो लूट, लॉकडाउन ख़त्म हो जाएगा तो कहीं किस्मत न जाए फूट
खनन माफ़ियाओं और अधिकारियों के गठजोड़ का नायब नमूना
जब सरकारी स्तर पर ही नदियों की संपदा को लूटने की दे दी गई छूट
आखिर कौन रोकेगा नदियों में मनमानी खनन की लूट खसोट
जब श्रमिक नहीं मिल रहे तो फिर सरकार किनकी आर्थिक गतिविधियों के लिए हो रहा है चिंतन ?
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
लॉकडाउन का पालन करने का अब पाठ पढ़ाने वाले अफसर ने ही तो उड़ाया था लॉकडाउन का मज़ाक
मशीनों से खनन की अनुमति संबंधी आदेश अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने जारी हुआ। वहीं इस आदेश में तो अपर मुख्य सचिव जी ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए भारत सरकार की गाइडलाइन का जिक्र किया है। लेकिन लॉकडाउन का पाठ पढ़ाने वाले अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने बीते दिनों यूपी के चर्चित विधायक अमन मणि त्रिपाठी और उनके साथियों को लॉकडाउन तोड़ने में भरपूर मदद ही नहीं की बल्कि बदरीनाथ धाम के बंद होने के बावजूद और केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक के बावजूद वहां तक जाने को पत्र ही नहीं लिख डाला बल्कि जिलाधिकारी देहरादून को इन्हे वहां तक जाने और लौटने का पास तक जारी करना पड़ा था । इतना ही नहीं अपर मुख्य सचिव ने विधायक और उनके साथियों को उत्तराखंड की सैर कराने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के नाम तक का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं किया। यह मामला बीते एक पखवाड़े से उत्तरप्रदेश सहित उत्तराखंड के सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए देशभर में लॉकडाउन घोषित है, पर उत्तराखंड में नौकरशाहों ने इसी लॉकडाउन की आड़ लेकर नदियों को तहस नहस करने के सारे इंतजाम कर दिए। पहले से ही गिद्ध दृष्टि जमाए बैठे खनन में शामिल लोगों को अब दिल खोलकर नदियों को लूटने का मौका उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी से मिल गया है, क्योंकि अब सरकारी तौर पर नदियों में मशीनें उतारने का लाइसेंस जो मिल गया है, तो नदियों के पर्यावरण और उनकी संपदा से मनमानी करने से उनको कौन रोकेगा। खनन के ठेकेदारों के लिए यह इंतजाम जुटाने का काम किया है, उत्तराखंड के एक चर्चित और विवादित वरिष्ठ नौकरशाह ने, जिनके तार स्वयं लॉकडाउन तुड़वाने के हाइप्रोफाइल मामले से जुड़े हुए हैं।
उत्तराखंड में खनन और आबकारी ही राजस्व के दो बड़े स्रोत माने जाते हैं, वो इसलिए क्योंकि अन्य पुख्ता स्रोतों पर काम करने में कभी रूचि नहीं दिखाई गई। इसकी वजह भी है खनन और आबकारी में काले कारनामे करके लूट खसोट करने की गुंजाइश इनकी नजरों में बहुत अधिक है। चर्चा तो यहाँ तक है कि इन दोनों धंधों से जहां खनन माफियाओं और शराब के धंधेबाज़ों की जेबें गरम होती है वहीँ इनकी इन जेबों से इन चर्चित अधिकारियों की जेबें भी तो गरम होती हैं ।
उत्तराखंड शासन में बैठे ऐसे चर्चित अधिकारियों ने लॉकडाउन खुलने का भी सब्र नहीं किया और राज्य की नदियों में मशीनों से खनन का आदेश जारी कर दिया। इसके लिए जो तर्क दिया गया है, वो यह है कि इनको श्रमिक नहीॆ मिल रहे हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि ज्यादा संख्या में श्रमिकों को इकट्ठा नहीं करना, क्योंकि इससे कोरोना वायरस संक्रमण होने की आशंका है। कुल मिलाकर अधिकारी यही चाहते हैं कि नदियों में खनन की खुली छूट दे दी जाए, वो भी मशीनों से। मशीनों से जितना चाहो, रेत बजरी लूट लो। और धरती माँ का सीना चीयर लो।
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश की ओर से जारी आदेश में मशीनों शब्द का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि किन मशीनों से। उत्तराखंड की नदिय़ों में रेत बजरी निकासी के लिए जेसीबी से लेकर पॉकलैंड जैसी भारी भरकम मशीनों का इस्तेमाल होता रहा है, जिनसे बहाव क्षेत्र में नदियों में बड़े बड़े तालाब और कुएं बना दिए गए हैं।
इन मशीनों से उत्तराखंड की छोटी से छोटी और गंगा जैसी नदियों के सीने को अवैध खनन से तहस नहस कर दिया गया है। आज तक जिसको अवैध खनन कहा जाता था, वो अब इस नये आदेश से वैध खनन हो गया, क्योंकि सरकारी स्तर पर नदियों की संपदा को लूटने की खुली छूट दे दी गई है।
उत्तराखंड में सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि कामगारों, श्रमिकों की आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के प्रयास चल रहे हैं। जब राज्य में श्रमिक ही नहीॆ हैं तो यह चिंतन आखिर किसके लिए हो रहा है। मशीनों से खनन कराने संबंधी सलाह देने वालों के पास ऐसा कौन सा डाटा है, जो यह बताता है कि खनन गतिविधियों के लिए श्रमिकों की कमी है।
नदियों में मशीनों से खनन की अनुमति का आदेश यहां देखिये
डंपरों में रेत बजरी भी क्या पॉकलैंड से भरेंगे खनन ठेकेदार
जब नदियों में खनन के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं तो यह भी बता दो कि रेत बजरी, पत्थरों को डंपरों में भरने और उनको भंडार स्थलों तक ले जाने और वहां डंपरों को खाली करने के लिए श्रमिक कहां से मिल रहे हैं। निर्माण स्थलों पर खनन सामग्री पहुंचाने के लिए श्रमिक कहां से मिल रहे हैं।
क्या मशीनों के अलावा होने वाले इस कार्य के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने की गारंटी ली जा रही है खनन के ठेकेदारों से। जब खनन की परमिशन दी गई है तो स्क्रीनिंग प्लांट्स भी चलवा दिए जाएंगे, वहां के लिए श्रमिक उपलब्ध है या नहीं। परमिशन का आदेश जारी करने वाले अफसर को यह तो बताना ही चाहिए।
इधर लॉकडाउन में दो माह तक घर में ही बैठे श्रमिकों को अब पेट पालने के लिए काम की तलाश है और सरकारी स्तर पर केवल खनन ठेकेदारों की मौज कराने के लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं।
अपर मुख्य सचिव के पत्र की एक और एक और बात, जो आमजन को हजम नहीं हो रही है, उसमें कहा गया कि अधिक संख्या में मजदूर इकट्ठे होने से संक्रमण की संभावना होगी। वैसे भी यदि देखा जाय तो नदियों में खनन का कार्य किसी कमरे या बंद स्थान पर नहीं होता है, वहां श्रमिक एक दूसरे से काफी दूरी पर रहकर काम करते हैं, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन प्राकृतिक रूप से स्वतः ही होता है और इसका पालन आसानी से कराया भी जा सकता है।
जहाँ तक नदियों में तीन मीटर तक खनन संबंधी लगभग तीन माह पूर्व के एक और आदेश की जानकारी मिल रही है, इसका सीधा सीधा अर्थ है कि उत्तराखंड की नदियों में खुलेआम लूट का अरमान अब पूरा होने जा रहा है। अब नदियों में भारी भरकम कुएं तक भी बना दो,तो कोई नहीं रोकेगा, क्योंकि इसकी परमिशन दी गई है।
वहीं, खनन ठेकेदारों के लिए श्रम विभाग से इस आशय का प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक होगा कि कोविड-19 के संक्रमण के कारण चुगान क्षेत्र में आवश्य़क श्रमिक उपलब्ध नहीं है। इस पर यह सवाल उठाना लाजिमी है कि क्या श्रम विभाग के पास प्रदेश के सभी खनन श्रमिकों का रिकार्ड है, और अगर रिकॉर्ड है भी तो वर्तमान कोरोना संक्रमण के दौरान कितने ऐसे श्रमिकों के खातों में सरकार ने वह रकम डाली जिसका श्रम विभाग दावा करता है?
अगर श्रम विभाग से ही यह प्रमाण पत्र लेना है तो सरकार के पास भी इसके पूरे आंकड़े होंगे कि किस खनन क्षेत्र में श्रमिकों की उपलब्धता है या नहीं, क्योंकि शासनादेश में यह स्पष्ट है कि श्रमिकों की उपलब्धता नहीं है, तो फिर यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि खनन के लिए श्रमिक नहीं होने की वजह क्या है। दरअसल, अवैध खनन से जुड़े लोगों ने पहले भी श्रमिकों का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि उनकी तिजोरियां तो रात में नदियों में जेसीबी और पॉकलैंड उतारने से भर रही हैं। वहीं अफसरों के साथ खनन वालों का गठजोड़ किसी से नहीं छिपा है।
हरिद्वार, लक्सर और रुड़की क्षेत्र में गंगा में अवैध खनन की जड़ में राजनीति, अफसरशाही और माफिया का गठजोड़ ही तो काम करता है। हरिद्वार जिला में यूपी बॉर्डर पर गंगा में गोल पत्थरों और रोड़ी का अवैध खनन यूपी में निर्माण कार्यों के लिए ज्यादा किया जाता है। क्रशरों की जांच में लगातार इसका खुलासा होता रहा है। वहां पहले भी पॉकलैंड इस्तेमाल होती थी, अब तो इस नये आदेश ने माफिया को सरकारी परमिट ही थमा दिया है। अब डर काहे का, डर तो पहले भी नहीं था।
किसको है पर्यावरण की परवाह ?
सिंचाई नहरों में पानी हो सकता है कम
नदियों में अवैध खनन के गंभीर परिणाम वो किसान झेल रहे हैं, जिनके खेतों में इन नदियों से जुड़ी नहरों का पानी आता है। नदियों में कुओं और तालाब की गहराई तक खुदान से नदियों में पानी का बहाव कम हो रहा है। इस वजह से नदियों से जुड़ी नहरों में पानी कृषि की मांग के अनुरूप नहीं मिल पा रहा है। डोईवाला में सौंग नदी से जुड़ी ग्रामीण क्षेत्रों की नहरों में पानी कम होने की शिकायत अक्सर होती रही है। अवैध खनन से केवल नदी, उसके जैवीय संतुलन को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि आसपास की कृषि भी बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका रहती है।
नदिय़ों में खनन के लिए विस्तृत गाइडलाइन हैै, जो नदियों में चुगान की अनुमति देती है, न कि मशीनों से बड़े बड़े खुदान करने की। नदियों में मशीनें उतारकर यह अपेक्षा करना कि नियमों का पालन करते हुुए चुगान ही होगा, बड़़ी भूल होगी। नदियों में जैवीय संतुलन बना रहना बहुत जरूरी है, लेकिन मशीनों से बड़े बड़े तालाब बनाने से नदियों की जैवीय संपदा को भी बड़ा नुकसान होगा।
शासनादेश में शर्त है कि मशीन के प्रयोग से वातावरण पर किसी भी प्रकाश का कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा और न ही भराव होने लायक मात्रा से अधिक चुगान होगा। वातावरण पर दुष्प्रभाव पड़ा या नहीं या कितना चुगान मशीनों से किया गया, इसकी जानकारी तो तभी हो पाएगी, जब हमारे पास वर्तमान के आंकड़े होंगे। क्या नदियों में मशीनों की परमिशन देने से पहले ये आंकड़ें जुटा लिए गए हैं। यदि इन आंकड़ों संबंधी रिपोर्ट है तो पहले इसका खुलासा किया जाना चाहिए, ताकि बाद में दुष्प्रभावों का आकलन किया जा सके।