उत्तराखंड के इस गांव से हनुमान जी ले गए थे संजीवनी बूटी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : कोरोना के कारण आजकल आप लोग रामानंद सागर द्वारा निर्देशित भारतीय पवित्र ग्रंथ ”रामायण” पर बने टेलीविजन की दुनिया का सबसे पसदंदीदा सीरियल देख रहे हैं, इस सीरियल में मेघनाथ द्वारा लक्ष्मण को शक्ति लगने और उसके बाद रावण के राज वैद्य सुसेन द्वारा एक ही रात में हिमालय से संजीवनी बूटी का प्रसंग भी आपने देखा होगा,लेकिन क्या आप जानते हैं हनुमान जी संजीवनी कहाँ से लाए थे ? लेकिन ये तो आपने सुना होगा कि वे हिमालय से लाए थे और पूरा पहाड़ ही उखाड़ लाए थे। अब जानिए उस गाँव के बारे में जहाँ से हनुमान ये पर्वत लाए थे।
यह समुद्र की सतह से लगभग 12 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह गाँव उत्तराखंड राज्य में जोशीमठ से मलारी मार्ग मार्ग पर लगभग 55 किलोमीटर दूर है जुम्मा जो एक छोटा सा गांव है और मुख्यमार्ग पर स्थित है, बस यहीं से धौली नदी पार करने पर लगभग 10 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर स्थित गांव का नाम है द्रोणागिरी। यह गांव साल में केवल छह माह गर्मियों में ही आवाद रहता है सर्दियों में द्रोणागिरी सहित नीती, माणा, बाम्बे, गोशाला, फरकिया, महगाई, कैलाशपुर, कोषा, झेलम, जुम्मा, द्रोणागिरी, कागा, गरपक आदि गांवों के लोग जिला मुख्यालय गोपेश्वर के अलावा जोशीमठ व आसपास के इलाकों में पहुंच जाते हैं।
द्रोणागिरी गांव उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है। इस गांव में आज भी हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है, यहां के लोगों को पवन पुत्र हनुमान से इसलिए नाराज़गी है कि वे उनके गांव के पास असीमित आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों वाले पहाड़ को श्री लंका ले गए और वापस नहीं लाये , यहाँ के लोगों की मान्यता है कि यदि हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत को वापस छोड़ जाते तो इससे करोड़ों लोगों को आयुर्वेदिक उपचार मिलता।
वहीं इस गांव के लोग सदियों से पर्वत देवता को पूजते हैं। पर्वत देवता यानी द्रोणागिरी पर्वत। माना जाता है कि द्रोणागिरी वही पर्वत है जहां से हनुमान जी संजीवनी बूटी ले गए थे। वहीं गाँव वालों का मानना है कि संजीवनी के साथ हनुमान जी जो पहाड़ उखाड़ ले गए, वह असल में उनके पर्वत देवता की एक भुजा थी। इसलिए गाँव के लोग आज तक हनुमान जी से नाराज़ हैं।
मज़ेदार बात तो यह है कि यहां जो रामलीला होती भी है उसमें हनुमान जी का पूरा प्रसंग ही ग़ायब कर दिया जाता है। न गाँव में हनुमान जी का कोई झंडा लगता है, न तस्वीर और न उनकी पूजा होती है। इस गांव की एक और खासियत है यहाँ आलू प्रचुर मात्रा में पैदा होता है जिसे यहाँ के गांव वाले सर्दियों में अपने प्रवास वाले इलाकों में जाने से पहले एक अब्दे से गड्डे में बोरियों सहित दबा जाते हैं इस गड्डे में चूहे तक नहीं जा सकते और ये आलू छह माह बाद ग्रीष्मकाल तक भी खराब नहीं होता , इस गड्ढों को यहाँ का स्थानीय कोल्ड स्टोर कहा जा सकता है। यहां रखे आलू न तो ख़राब ही होते हैं और न इनमें अंकुर ही फूटते हैं, इन्ही आलुओं में से ये लोग अगले वर्ष के लिए आलू का बीज भी निकाल लेते हैं बाकि के आलू को ये लोग अपने सब्जी आदि में प्रयोग करते हैं। है न दिलचस्प बात ? असल में यह विविधता और इसकी स्वीकार्यता ही इस देश की आत्मा है।। ये तस्वीरें उसी द्रोणागिरी गाँव की हैं।
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