UTTARAKHAND

उत्तराखंड के विधायकों पर गजब की दरियादिली

केवल विधायकों पर ही मेहरबानी क्यों और सांसदों की क्यों हो उपेक्षा 

उत्तराखंड के विधायक का उत्तर प्रदेश के विधायक से तीन गुना है निर्वाचन क्षेत्र का भत्ता

सांसद का निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70 हजार रुपये, जबकि एक संसदीय क्षेत्र में लगभग 14 विधानसभाएं

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून। यह तो गजब हो गया कि कर्ज में डूबा उत्तराखंड अपने विधायकों पर इतना दरियादिल है कि उनको सांसदों से भी दोगुना से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्र भत्ता दे रहा है। यही नहीं उत्तराखंड ने तो उत्तर प्रदेश के विधायकों को भी पीछे छोड़ दिया। इनको उत्तर प्रदेश के विधायक से तीन गुना निर्वाचन क्षेत्र भत्ता मिलता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विधायकों का भत्ता इतना तो होना ही चाहिए। सवाल उठता है कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों तो यहां के सांसद के लिए भी है।

हम यहां बात कर रहे हैं यूपी और उत्तराखंड के विधायकों तथा सांसदों के वेतन भत्तों के तुलनात्मक अध्ययन की। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के एक विधायक को हर माह 2 लाख 91 हजार 83 रुपये मिलते हैं, जिसमें 30 हजार रुपये वेतन तथा डेढ़ लाख रुपये निर्वाचन क्षेत्र भत्ता है।

उत्तर प्रदेश में कुल वेतन 2 लाख पांच हजार 416 रुपये महीने की पगार है। वहां 50 हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र भत्ता है, जबकि विधानसभा क्षेत्र बड़े हैं। इनका मूल वेतन 25 हजार रुपये है। उत्तर प्रदेश के विधायक को उत्तराखंड के विधायक से लगभग 80 हजार रुपये कम मिलते हैं।

अब हम, सांसद के वेतन तथा भत्तों पर बात करें तो वो भी उत्तराखंड के विधायकों से पीछे हैं। अगर, हम यह बात कहते हैं कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विधायकों को क्षेत्रभ्रमण भत्ता अधिक मिलना चाहिए तो यह बात उत्तराखंड के सांसदों के लिए भी लागू होती है। सांसद को 1.90 लाख रुपये मिलते हैं,जिसमें एक लाख रुपये मूल वेतन तथा 70 हजार रुपये क्षेत्र भ्रमण व 20 हजार रुपये स्टाफ भत्ता है।

अब सवाल उठता है कि उत्तराखंड का एक सांसद, जिनके संसदीय क्षेत्र में राज्य की लगभग 14 विधानसभाएं आती हैं, उनका क्षेत्र भ्रमण भत्ता विधायक से लगभग आधे से भी कम क्यों है। इस हिसाब से देखा जाए तो सांसद को विधायक से 14 गुना यानी 21 लाख रुपये मिलना चाहिए।

यह रिपोर्ट केवल विसंगतियों की ओर इशारा करती है। यह किसी भी राज्य का अपना निर्णय है कि उनके विधायकों को कितना वेतन दिया जाए या फिर कितना भत्ता दिया जाए, लेकिन अगर हम उत्तराखंड के मामले में बात करें तो यह तो कहा ही जा सकता है कि जिस राज्य पर लगभग 50 हजार करोड़ का कर्जा हो और जहां स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन में संसाधनों की कमी हमेशा गिनाईं जाती रही हों, वहां जनता के सेवकों पर इतना खर्च किसी भी दशा में सही नहीं ठहराया जा सकता।

devbhoomimedia

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