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क्यों शर्मसार हैं ओलंपिक खेल?

बाकी खेलों के भारतीय खिलाड़ी नीलामी में जितना पाते हैं, क्रिकेट के गुमनाम खिलाड़ी उस से अधिक बेस प्राइज़ के दावेदार

क्रिकेट के आगे किसी खेल की कोई हैसियत नहीं

राजेंद्र सजवान
शायद आप दिल्ली के क्रिकेट खिलाड़ी पवन नेगी को नहीं भूले होंगे जिसे आईपीएल नीलामी में 7.5 करोड़ रुपये मिलने पर हैरानी व्यक्त की गई थी। हालाँकि जब युवराज सिंह को 2015 में डेयर डेविल्स ने 16 करोड़ में खरीदा और इस बार विराट पर 17करोड़, धोनी, रोहित और ऋषभ पर 15-15 करोड़ खर्च किए जाते हैं तो तब भी कोई हैरानी नहीं होती क्योंकि इन खिलाड़ियों का कद पवन से बहुत उँचा है। अब ज़रा देश में आयोजित होने वाली अन्य खेलों की लीग के बारे में भी बात कर लेते हैं।

फुटबाल में आईएसएल, हॉकी लीग, बॉक्सिंग लीग, बैडमिंटन लीग, टेबल टेनिस लीग, कुश्ती लीग, कबड्डी लीग और तमाम अन्य लीग मुकाबलों पर नज़र डालें तो इनके स्टार खिलाड़ी औने पौने में खरीदे बेचे जा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार इनका टोटल खर्च आईपीएल के दसवें हिस्से से भी कम होगा। ओलंपिक और एशियाई खेलों के चैम्पियन खिलाड़ियों पर सरसरी नज़र डालें तो पहलवान सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त को 40 से 55 लाख में खरीद गया। छ्ह बार की विश्व चैम्पियन और ओलंपिक पदक विजेता मेरी काम को बिग बाउट में 18लाख मिले, बैडमिंटन की विश्व चैम्पियन और ओलंपिक रजत पदक जीतने वाली पीवीसिंधु 77 लाख, हॉकी के स्टार खिलाड़ी सरदार सिंह लगभग 70 लाख, फुटबाल का नंबर एक खिलाड़ी सुनील छेत्री शायद एक दो करोड़ और चार-पाँच बड़े कबड्डी खिलाड़ी एक से डेढ़ करोड़ में खरीदे जाते हैं। इसे भारतीय खेलों का दुर्भाग्य ही कहेंगे क़ी इन चैम्पियनों का टोटल एक क्रिकेटर को मिलने वाली अनुबंध राशि से भी कम बैठता है।

यह भी सच है कि बाकी खेलों के भारतीय खिलाड़ी नीलामी में जितना पाते हैं, क्रिकेट के गुमनाम खिलाड़ी उस से अधिक बेस प्राइज़ के दावेदार होते हैं। स्थापित क्रिकेटरों की बात छोड़िए, अंडर 19 टीम के संभावितों यशवि जयसवाल, कार्तिक त्यागी, प्रियाम गर्ग, रवि विश्नोई आदि को डेढ़ से ढाई करोड़ में खरीदा गया है। अर्थात इन खिलाड़ियों के खेल जीवन की शुरुआत उस कीमत या सम्मान के साथ हुई है, जिसे बाकी खिलाड़ी रिटायरमेंट पर भी नहीं पा सकते। यह फ़र्क बताता है कि भारतीय बच्चे और युवा क्रिकेट की तरफ क्यों दौड़ रहे हैं और क्यों बाकी खेल अपनी कोई हैसियत नहीं बना पाए। शायद यही कारण है कि बाकी खेल और खेल आका क्रिकेट से जलते हैं। यही कारण है कि क्रिकेट खुद को श्रेष्ठ मानती है और उसके करोड़पति खिलाड़ी किसी से सीधे मुँह बात नहीं करते। मामला गंभीर है लेकिन सच्चाई यही है कि क्रिकेट के आगे किसी खेल की कोई हैसियत नहीं है।

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