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क्या कानून की लपेट और चपेट में फंस पाएंगे गीता

एक व्यक्ति जो निरंतर कानून की बाहें मरोड़ कर अपना बचाव का तलाश रहा है रास्ता 

व्हिसिल ब्लोअर को ही फंसाने के किये कई तिकड़म 

इन्द्रेश मैखुरी 

देहरादून : उत्तराखंड में अनुसूचित जाति/जनजाति छात्रवृत्ति घोटाले के प्रकरण में जांच एक चक्र पूरा हो गया है। कई सौ करोड़ रुपये के इस घोटाले के मामले में एक व्यक्ति जो निरंतर कानून की बाहें मरोड़ कर अपना बचाव तलाश रहा था और घोटाला उजागर करने वाले पर ही हमलावर था,कानूनी दाँवपेंच के खेल के एक चरण में अब वह कानून की लपेट और चपेट दोनों में है। इस व्यक्ति का नाम है गीता राम नौटियाल।

नौटियाल साहब समाज कल्याण विभाग में संयुक्त निदेशक हैं। उनके द्वारा कानून की बाहें मरोड़ने की बानगी देखिये। नौटियाल गढ़वाल में ब्राह्मणों की उपजाति है। समाज कल्याण वाले नौटियाल जी जौनसार क्षेत्र के वाशिंदे हैं। जौनसार जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इसलिए ब्राह्मण उपजाति धारी इन नौटियाल साहब ने शुरुआती तौर पर अपने विरुद्ध भ्रष्टाचार के खुलासे को ही अनुसूचित जनजाति का उत्पीड़न करार दिया।

अनुसूचित जाति/जनजाति छात्रवृत्ति घोटाले को उजागर करने वाले अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता चन्द्रशेखर करगेती पर तो नौटियाल उपजाति धारी इन महाशय ने अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के उत्पीड़न का मुकदमा किया और लगभग वर्ष भर पहले हाईकोर्ट से करगेती पर 2 लाख रुपये का जुर्माना तक करवाने में वे कामयाब हो गए थे। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने चंद्र शेखर करगेती पर उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा लगाए गए जुर्माने और एफआईआर पर कार्यवाही को स्थगित कर दिया था।

इतना ही नहीं उच्च न्यायालय में मुकदमा विचारधीन होने के बावजूद नौटियाल मामले को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग ले गए। वहाँ से वे अपने पक्ष में आदेश कराने में भी कामयाब हो गए। लेकिन उच्च न्यायालय ने उस आदेश को रद्द कर दिया और नौटियाल पर उच्च न्यायालय ने 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।

उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक उक्त घोटाले में गिरफ्तारी से बचने के लिए नौटियाल साहब गए। उच्चतम न्यायालय तो वे तब पहुँच गए जबकि इस मामले की जांच करने वाली एस।आई।टी की पकड़ से वे दूर हो गए और एसआईटी उनकी संपत्ति की कुर्की करने की तैयारी कर रही थी।

एक समय नौटियाल कानून से खुलेआम खेल रहे थे। वे घोटाला उजागर करने वाले करगेती को ही अपराधी साबित करने पर उतारू थे। लेकिन करगेती मोर्चे पर डटे रहे और साल भर बाद नौबत नौटियाल साहब के जेल जाने की तक आ पहुंची है। फिलहाल तो ऐसा ही दिख रहा है कि नौटियाल पर कानून का शिकंजा कस ही जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने नौटियाल की याचिका को रद्द करते हुए,सात दिन के अंदर आत्मसमर्पण करने को कहा है।

यह विडम्बना ही है कि कानून का लाभ पीड़ित या कमजोर को तो बिरले हे मिल पाता है। लेकिन नौटियाल जैसे चतुर-सुजान उसके हर पैंतरे का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति के कई सौ करोड़ रुपये हड़पने में नौटियाल ही अकेले तो नहीं होंगे,बल्कि उनसे बड़े घड़ियाल भी इसमें शरीक रहे होंगे। भ्रष्टाचार के इस खेल में छोटे-मोटे नौटियाल को कानून की चौहद्दी तक लाना इतना जटिल है तो बड़े घड़ियाल को कानून के पिंजरे में लाना किस कदर मुश्किल होगा !

लेकिन गरीब अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति की लूट करने वालों को सजा और सबक तो निश्चित ही मिलना चाहिए। शुभकामनायें चंद्रशेखर करगेती जी।

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