Uttarakhand

पहाड़ और पहाड़ी की चिंता को दर्शाती है “अपना वोट, अपने गांव” मुहिम

  • रिवर्स पलायन को ध्यान में रखते हुए बलूनी की शुरुआत 

बिपिन कैंथोला

राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की मुहिम अपना वोट, अपने गांव अभियान तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। अनिल बलूनी ने रिवर्स पलायन को ध्यान में रखते हुए यह अभियान चलाया है। इससे पहले उन्होंने एक गांव को भी गोद दिया था। वहां काम भी तेजी से चल रहा है। अनिल बलूनी ने पहाड़ में स्वास्थ्य को लेकर भी आर्मी के अस्पतालों से लेकर अपनी सांसद निधि से आईसीयू बनावाए, ये सब बातें बताती हैं कि उनको पहाड़ से कितना प्यार है। उनके ये प्रयास यह बताने के लिए भी काफी हैं कि वो सही मायने में पहाड़ के प्रति उनके दृष्टिकोण को दिखाता है।

पलायन भीषण समस्या बनती जा रही है। उत्तराखंड के पहाड़ खाली हो रहे हैं। सांसद बलूनी की यह पहल अपने आप में पलायन पर किसी चोट से कम नहीं है। जिस अवधारणा को लेकर उत्तराखंड राज्य की कल्पना की गई थी, वह साकार  हो पाई हो यह भी यक्ष प्रशन्न है ।राज्य के पहाड़ बसने के बजाय उजड़ते चले जा रहे है। अगर जल्द पलायन को रोका नहीं गया, तो तय मानिय कि उत्तराखंड  पहाड़ी राज्य से मैदानी राज्य बनकर रह जाएगा। 

उत्तराखंड राज्य बनते वक्त पौड़ी जिले में 7 विधानसभा सीटें हुवा करती थी। मात्र 18 वर्षो में एक सीट कम हो गई, जो पूरी तरह पलायन की देन है। यह हाल केवल पौड़ी का ही नहीं, बल्कि लगभग उत्तराखंड के सभी पहाड़ी जिलों का है। आने वाला समय दस्तक दे रहा है कि पहाड़ों से बढ़ता पलायन व पहाड़ों में घटती जनसंख्या पहाड़ी राज्य के लिए अभिशाप न बन जाये।  ऐसे में बलूनी की यह जनमुहिम आश जगाती है कि शायद अब कुछ होगा। लोग जागेंगे और लौट आएंगे। भले ही उस एक दिन के लिए ही सही, जब वो अपना वोट डालने, अपने गांव आएंगे। उस एक दिन के कई मायने हैं। 

बड़े शहरों में किसी भी रेस्टोरेंट या होटल को ले लीजिए 80 प्रतिशत स्टाफ पहाड़ी है और वो भी ज्यादातर उत्तराखंड से। कहीं किसी बड़ी कम्पनी में जाइए वहां भी आपको उत्तराखंड के नौजवान काम करते नजर आएंगे। ऐसा नहीं कि पहाड़ में टेलेंट की कमी हो, आज पहाड़ का टेलेंट देश ही नहीं विदेश में भी अपना मुकाम बना रहा है , आज हम सबका ये कर्तव्य बनता है कि जिन समस्याओं के कारण हमारे घरवालों ने पहाड़ से मैदान का रुख किया हम सब अनिल बलूनी के साथ मिलकर इन सभी पहलुओं पर जमीनी काम करें तो फिर से गांव आबाद हो सकते है, पहाड़ में पलायन की मुख्य वजह रोजगार है, अच्छी शिक्षा है और स्वास्थ्य सुविधा है। किंतु एक बड़ा वर्ग पहाड़ियों का ऐसा भी है जो बहुत ज्यादा संपन्न हैं। वो उत्तराखंड के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। लोग उनको आशाभरी निगाहों से भी देखते हैं। 

अब इन परिस्थितियों में उनसे यह उम्मीद जगती  है कि वो अपने गांव व पहाड़ को बचाने लिए अपना कर्तव्य निभाएंगें। आज लोगों ने भले ही पहाड़ छोड़ दिए हो, लेकिन अगर समाज का सम्पन्न वर्ग तय कर ले कि वह कुछ अंश अपने पूर्वजों को पितृ प्रसाद समझकर पहाड़ में रोजगार सृजन व स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा पर खर्च करे तो, आने वाली पीढ़ी को अपने गांव से जोड़ने की इस मुहिम में अपना योगदान दें सकते है । इससे पलायन से निपटने में बड़ी मदद मिलेगी। 

अनिल बलूनी की यह मुहिम यह संदेश देने की शुरुआत है कि हम किसी न किसी माद्यम से अपनी जड़ों से जुड़ें। अपनी परम्परा को न भूलें, अपनी संस्कृति से जुड़े । यह मुहिम राजनीति से हटकर अनिल बलूनी की पहाड़ के प्रति चिंता और जुड़ाव को साफ दर्शाती है। कहा जाता है कि जो समाज अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों को भूल जाए, वह अपनी पहचान खो देता है। आइय और इस मुहिम को आगे बढ़ाइये। ये आपके और हमारे भविष्य की मुहिम है ओर उत्तराखंड के विकास की मुहिम है,

Related Articles

Back to top button
Translate »