- उत्तराखंड में ईमानदारी नजर नहीं आ रही : हाई कोर्ट
- विधायकों के कथित खरीद-फरोख्त का मामला
- स्टिंग मामले का जिन्न दो साल बाद फिर निकला बोतल से बाहर
नैनीताल । हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन के दौरान विधायकों के कथित खरीद-फरोख्त के स्टिंग मामले का जिन्न दो साल बाद फिर बोतल से बाहर आ गया है। इस मामले में अगस्त 2016 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हाईकोर्ट ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, द्वाराहाट से कांग्रेस के पूर्व विधायक मदन सिंह बिष्ट और एक न्यूज चेनल संचालक के अलावा केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
पूर्व दर्जाधारी व सामाजिक कार्यकर्ता रघुनाथ सिंह नेगी ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि मार्च 2016 में न्यूज चैनलों में तत्कालीन सीएम हरीश रावत का स्टिंग प्रसारित किया गया था। जिसमें न्यूज चैनल संचालक व रावत खुलेआम विधायकों की कथित खरीद फरोख्त को लेकर बातचीत हो रही थी। आठ मई 2016 को एक और वीडियो जारी हुआ, जिसमें तत्कालीन व वर्तमान कैबिनेट हरक सिंह रावत व द्वाराहाट के तत्कालीन कांग्रेस विधायक मदन सिंह बिष्ट स्टिंग में हुई खरीद फरोख्त की पुष्टि कर रहे थे। स्टिंग के आधार पर सीबीआई द्वारा रावत के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज की गई थी।
नेगी ने कहा कि जनहित याचिका में मा. न्यायालय से आग्रह किया गया था कि तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री हरीश रावत के कार्यकाल के समय किये गये स्टिंगबाजों के इतिहास की भी जॉंच होनी चाहिए, क्योंकि जिनके द्वारा जो स्टिंग किये गये थे वो जनहित में न होकर व्यक्तिगत स्वार्थों से परिपूर्ण थे तथा स्टिंगबाजों में से एक स्टिंगबाज पर एक दर्जन से अधिक ब्लैकमेलिंग, फर्जीवाड़े व अन्य संगीन अपराधों में मुकदमें दर्ज थे।
याचिकाकर्ता का कहना था कि इस मामले में अन्य के खिलाफ भी जांच होनी चाहिए। याचिकाकर्ता के अनुसार उत्तराखंड संघर्ष से बना राज्य है, मगर भ्रष्घ्टाचार का अड्डा बन गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने इसे गंभीर मामला बताते हुए टिप्पणी की कि उत्तराखंड में ईमानदारी नजर नहीं आ रही है। कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकार, कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, कांग्रेस के पूर्व विधायक मदन सिंह बिष्ट व चैनल संचालक उमेश शर्मा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।