TEMPLES

नृसिंह की मूर्ति पुनर्स्थापन से कहीं आपदा तो नहीं आएगी !

  • नृसिंह भगवान की मूर्ति की दाहिनी भुजा हो रही पतली 
  • तो क्या हो जाएगा बदरीनाथ धाम लुप्त ?
  • धरती पर जोशीमठ में ही एक मात्र मंदिर है जहाँ हैं नृसिंह विराजमान 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

धारी देवी को उसके सिंहासन पत्थर से उठाने के बाद केदारनाथ में तबाही ही नहीं मची थी बल्कि इसका त्रिकोणीय प्रभाव पूरे गढ़वाल क्षेत्र में देखने को मिली थी। इसी त्रिकोण में वर्ष 2013 में व्यापक तबाही हुई थी। ठीक इसी तरह अब जोशीमठ में नृसिंह मंदिर में स्थित नृसिंह की मूर्ति को लेकर भी आजकल चर्चाएं चल रही हैं। कि कहीं कोई प्राकृतिक आपदा तो नहीं आने वाली है! क्योंकि इसके पीछे कई किवदंतियां भी हैं तो वहीँ भगवान नृसिंह की मूर्ति को रोज देखने वाले कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद भगवान नृसिंह भगवान की मूर्ति में अपने आप हर साल कुछ न कुछ परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वहीँ जहाँ तक सबसे अधिक शक्ति वाले इलाके धारी देवी के त्रिकोण की बात की जाय तो यह धारी देवी से शुरू होकर कालीमठ और हनुमान चट्टी से पहले क्षीर नदी के तट पर स्थित माँ भैरवी के मंदिर तक जाता है,और इसी भैरवी के पास हैं भगवान बदरीनाथ। अब धारी देवी की तरह नृसिंह भगवान् की मूर्ति को पुनर्स्थापन नए मंदिर में किया जा रहा है और नृसिंह को भी शक्ति का प्रतीत कहा जाता है क्योंकि यह धरती पर जोशीमठ में ही एक मात्र मंदिर है जहाँ नृसिंह विराजमान हैं।  

उल्लेखनीय है कि धरती के ऊपर किसी भी जगह केवल बदरीनाथ धाम ही एक ऐसा स्थान है कहा जाता है भगवान के तप से उत्पन्न ऊर्जा के प्रभाव को कम करने के लिए देवी यन्त्र (भैरवी) के ऊपर भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति विराजमान है।  इससे तो कम से कम यह साफ़ है कि उत्तराखंड शक्ति की धरती रही है और खासकर बदरीनाथ क्षेत्र तो तपस्वियों की तपस्थली रही है जहाँ अनगिनत साधु -संत अब भी तपस्या में लीन बताये जाते हैं ।  

यहाँ नृसिंह मंदिर के माहात्म्य को लेकर कई तरह की  किवदंतियां प्रचलित हैं। एक किवदंती के अनुसार जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध बद्रीनाथ से माना जाता है। ऐसी मान्यता है इस मंदिर में भगवान नृसिंह की बायीं भुजा की कलाई काफी पतली है जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगी उस दिन नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे। वहीँ दूसरी किवदंती के अनुसार स्थानीय मान्यता है कि भगवान नृसिंह की बायीं भुजा की कलाई धीरे-धीरे पतली होती जा रही है और कहा तो यहाँ तक जाता है जिस दिन यह कलाई भुजा से टूटकर अलग हो जाएगी, उसी दिन विष्णुप्रयाग में स्थित जय और विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जाएगा। तब भगवान बदरीनाथ के दर्शन जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में होंगे।

वहीँ एक प्राचीन मान्यता यह भी है कि जब आठवीं वीं शताब्दी में जब आदि गुरु शंकराचार्य शंकराचार्य ने लोगों को श्रृष्टि की रचना से लेकर देव उत्पत्ति के बारे में बताया। तो इसी दौरान शंकराचार्य ने जोशीमठ में विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान की प्रतिमा स्थापित कर उनकी यहाँ प्राणप्रतिष्ठा की थी । इस प्रतिमा की दाहिनी भुजा पतली है। जो धीरे-धीरे और अधिक पतली होती जा रही है। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में कहा गया है कि जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा तो विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और इसके बाद यह मार्ग बंद हो जाएगा और श्रद्धालुओं को वर्तमान बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे।

इसके बाद श्रद्धालुओं को जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। केदारखंड के सनतकुमार संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है। बताते हैं कि आठवीं सदी में ही आदि गुरू शंकराचार्य ने ही भविष्य बदरी मंदिर की स्थापना कर दी थी। वहीँ भविष्य बदरी मंदिर के समीप ही एक पत्थर पर शंकराचार्य ने भविष्णवाणी भी लिखी है। जिस भाषा में भविष्यवाणी लिखी गई है, उसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है।

वहीँ इस बार जोशीमठ में स्थित भगवान नृसिंह 18 अप्रैल को अपने नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो जाएंगे। यहाँ स्थापित होने वाली नृसिंह भगवान की मूर्ति के लिए लुधियाना के एक व्यवसायी ने करीब 15 किलो चांदी का सिंहासन बनवाया है। हालाँकि व्यवसायी की ओर से सिंहासन को गुप्त दान के रुप में दिया जा रहा है।वहीँ दूसरी तरफ कपाट खुलने के नौ दिन बाद भगवान बदरीनाथ के गर्भगृह स्थित छत्र को लगभग 600 सालों बाद बदला जा रहा है। 

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