कई सालों बाद एक हुआ उतराखंड क्रांति दल
देहरादून। विधानसभा चुनाव के इस मौके पर काफी समय से विवाद में चल रहे उक्रांद के दोनों गुटों में एका हो गया है। निर्वाचन आयोग से लेकर कोर्ट कचहरी तक के विवादों के बाद त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने चौखुटिया जाकर निर्वाचन आयोग द्वारा असली उक्रांद करार दिए दल के अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी के समक्ष अपने दल का विलय करने की घोषणा की।
धड़ों में बंटे उक्रांद के सामने असली और नकली का सवाल कई सालों से मुंह बाएं खड़ा था। वोट मांगने जाने वाले प्रत्याशियों से मतदाताओं का सवाल होता था कि वह किस धड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब उक्रांद प्रत्याशियों को इस संकट से नहीं जूझना पड़ेगा। एकजुट उक्रांद के नाम से वह मतदाताओं के सामने जा पाएंगे।
पुष्पेश त्रिपाठी और त्रिवेंद्र पंवार धड़ों के बीच लंबे समय से निर्वाचन आयोग तथा दिल्ली हाई कोर्ट में विवाद चल रहा था। निर्वाचल आयोग द्वारा पुष्पेश त्रिपाठी के नेतृत्व वाले दल को असली उक्रांद और पहले सीज किया गया कुर्सी चुनाव चिन्ह देने का निर्णय किया गया था। इसके खिलाफ त्रिवेंद्र पंवार दिल्ली हाई कोर्ट गए थे। चुनाव के इस मौके पर कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार नहीं की। इससे पहले दोनों धड़ों का करीब दो साल पहले विलय हो गया था, लेकिन समझौते को सही ढंग से लागू न करने का आरोप लगाते हुए त्रिवेंद्र पंवार ने अपने अलग धड़े के अस्थित्व बरकरार रखने की घोषणा की थी।
निर्वाचन आयोग के निर्णय और कोर्ट का रास्ता भी बंद होने के बाद त्रिवेंद्र पंवार के पास और कोई विकल्प नहीं बचा रह गया था। उक्रांद से उनके साथ गए लगभग सभी साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया था। नए लोगों को खड़ा कर उन्होंने अपने गुट को जिंदा रखने की भरपूर कोशिश की, लेकिन अब उसे और खींचना संभव नहीं था। त्रिवेंद्र पंवार की उत्तराखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आंदोलन के दौर में संसद की गैलरी से उत्तराखंड राज्य समर्थित पर्चें फैंकने और गैलरी से कूद जाने से लेकर आंदोलन से जुड़ी हर रैली में उनकी भूमिका रही। काशी सिंह ऐरी से पहले उनकी बहुत बढ़िया ट्यूनिंग थी। लेकिन इस जोड़ी को दिवाकर भट्ट ने ऐसे तोड़ डाला, जैसे जंगल में दो बैलों की जोड़ी को बाग ने तोड़कर एक-एक कर दोनों का निवाला बना दिया वाली कहानी प्रचलित है। अब दल की एकजुटता में इनकी क्या भूमिका रहती है? यह देखने वाली बात होगी।
पुष्पेश त्रिपाठी जैसे युवा नेता को इस एकजुटता का श्रेय जाता है। इस कड़ी में उक्रांद की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष डीडी जोशी की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने निर्वाचन आयोग से लेकर हाई कोर्ट तक मजबूत पैरवी की। जिससे उक्रांद का विवाद समय से निपट पाया। यही वजह रही कि अब उक्रांद एकजुट हुआ है।