!!सम्पूर्ण सृष्टि ही कवि की कविताएं हैं!!
!!The entire universe is the poems of the poet!!
!!सम्पूर्ण सृष्टि ही कवि की कविताएं हैं!!
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब!
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल,सफल समान मनोरथ!
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा!
कदम मिलाकर चलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा!!
उत्तराखंड की जेलों में नई नियमावली होगी जल्द लागू, बदलेगा सालों पुराना कानून
आज का दिन भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में “विश्व कविता दिवस” के लिए समर्पित है।यूनेस्को ने प्रतिवर्ष 21 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय कविता दिवस के रुप में मनाये जाने की घोषणा की है। इसके माध्यम से पूरे विश्व के कवियों और कविताओं को निकट लाना है।
वैसे अगर देखा जाए तो सम्पूर्ण विश्व ही किसी न किसी कवि की कविता है। हमारे वेदों में ईश्वर के अनेक नामों में एक नाम “कवि” का भी है। किसी भी देश की कोई भी कविता हो,उसके मूल भाव और प्रवृत्तियां लगभग एक जैसी होती हैं।भारत में सभी प्रकार के साहित्य को काव्य कहा गया है,जिसे हम समाज का दर्पण कहते हैं। सभी प्रकार की कविता व साहित्य को समाज में कविता या साहित्य के रुप में समझा या पढ़ा जा सकता है।
भारत में कविता किसे कहा गया है तथा उसे किस तरह परिभाषित किया गया है। जीवन की तरह कविताएं भी अनंत है,जिस प्रकार जीवन को नहीं बॉधा जा सकता है वैसे ही कविता को भी किसी परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता। फिर भी कविता रुप में अनेक कवियों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है।जहाँ तक भारतीय कविता का प्रश्न है,तो उसे समझने की शुरूआत हमें देववाणी संस्कृत से ही समझना होगा,क्योंकि संस्कृत सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं की जननी है।हमारे देश में साहित्य के अनेक सम्प्रदाय हैं और हर सम्प्रदाय के आचार्यों ने कविता को अपने-अपने ढंग से निरूपित और परिभाषित किया है। किसी ने अलंकार को कविता माना,तो किसी ने रीति को;किसी ने औचित्य को तो किसी ने वक्रोक्ति को;किसी ने ध्वनि को कविता माना तो किसी ने रस को…लेकिन इसमें से किसी ने भी कविता के पूरे मर्म को अभिव्यक्त नहीं किया।
भारतीय मनीषियों का हर विषय में चिन्तन सर्वोच्च स्तर का रहा है। उन्होंने ईश्वर को कवि रुप में निरूपित करते हुए कहा कि कवि मनीषी,परिभू यानी सर्वव्याप्त और स्वयंभू एवं अनादि है। एक प्रकार से कवि को हमारे शास्त्रों में असाधारण मानव माना है।जो सामान्य व्यक्ति से ऊपर उठा होता है। कविताओं के विषय में भारत और पाश्चात्य साहित्य के मनीषियों का चिन्तन लगभग एक जैसा है।उन्होंने इसके लिए प्रतिभा को पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता माना है,जिसके बिना कविता का सृजन करना संभव नहीं है।अधिकतर मनीषियों का मत है कि मानव में काव्य सृजना की प्रतिभा जन्मजात होती है। जिसे निरन्तर प्रयास और अभ्यास से इसे अर्जित किया जा सकता है।
प्रतिभा सिर्फ कविता करने वाले के लिए ही नहीं, उसे सुनने वाले के लिए भी आवश्यक बतायी गयी है।हमारे देश में कार्य प्रतिभा और भावयत्री प्रतिभा दो प्रकार की प्रतिभाएँ बताई गयी हैं। जिसका पहला सम्बन्ध कवि से है और दूसरा सुनने वाले श्रोता से रहता है। अकेली प्रतिभा से बहुत प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। निरन्तर अभ्यास और ज्ञान अर्जन की प्रवृत्ति से ही किसी कवि की कविता की रचना श्रेष्ठ हो सकती है।
रामचरितमानस मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी भले ही कहते हों:-
कवित विवेक एक नहीं मोरे,
सत्य कहहुं लिखि कागद कोरे!
यानी मैं कोरे कागज़ पर यह बात लिखकर दे सकता हूँ कि मुझे कविता का बिल्कुल भी विवेक,ज्ञान नहीं है,लेकिन इतनी बड़ी बात तो तुलसीदास जैसा महाकवि ही कह सकता है। जबकि उन्हें काव्यशास्त्र,छंद विधान, व्याकरण,भाषा और काव्य के सभी अंगों में असाधारण श्रेष्ठता हासिल थी लेकिन उक्त पंक्तियों में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की भाव प्रधानता को देखा जा सकता है।
कविता केवल प्रतिभा,काव्यशास्त्र के नियमों और भाषा की श्रेष्ठता भर से श्रेष्ठ कविता नहीं हो सकती इसके लिए कवि की चेतना को इतना ऊंचा उठना पड़ता है इसके बिना कवि रह ही नहीं जाता सिर्फ कविता रह जाती है।दुनिया में जितने भी श्रेष्ठ कवि हुए हैं, उनकी चेतना इतनी ही ऊपर उठी जितने भावाविष्ट हुए उन्हें खुद ही पता नहीं होता कि वे क्या लिख रहे हैं।लिखने के बाद उन्हें खुद आश्चर्य होता है कि क्या यह मैंने लिखा है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी कालजयी कृति “रामचरितमानस” के बारे में कहा कि यह उनके भीतर से प्रकाशित हुयी है।इसीलिए रामायण,महाभारत आदि सभी महान ग्रंथों को अपौरुषेय कहा गया है।
उत्तराखंड की जेलों में नई नियमावली होगी जल्द लागू, बदलेगा सालों पुराना कानून
आमतौर पर इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि इन्हें किसी व्यक्ति ने नहीं लिखा, लेकिन इसका मतलब सिर्फ इतना है कि चेतना की जिस अवस्था में उनकी रचना हुई,उस समय व्यक्ति के रूप में रचनाकार नहीं रह गया।कहने का अर्थ है,कि ईश्वर की तरह ही कविताओं का भी कोई अंत नहीं है।इस पर हज़ारों पुस्तकें लिखने के बाद भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है।
सभी को “विश्व काव्य दिवस” की शुभकामनाएँ….