जनादेश का अपमान कर सीबीआई के हंटर से कभी नहीं जीत सकती है भाजपा !
उत्तराखण्ड में सियासी जंग……
छलबल से सरकार गिराने वाले गुनाहगारों को छोड़ कर केवल हरीश रावत की ही जांच करके अपनी जगहंसाई क्यों करा रही है सीबीआई ?
देवसिंह रावत
नयी दिल्ली : लगता है भाजपा नेतृत्व को या तो उत्तराखण्ड का इतिहास मालुम नहीं है या उसे नर नारायण की इस पावन देवभूमि की न्यायप्रियता का भान नहीं। अगर होता तो वह एक बार मुंह की खाने के बाद पुन्न उसी गलती को दोहराने की भूल नहीं करते। सीबीआई की जांच होनी चाहिए तो इस प्रकरण की होनी चाहिए थी कि किसने बहुमत की सरकार को बलात गिराने का काम किया। किसने लोकशाही का हरण किया। घर में सेंघ लगाने वाले की जांच नहीं और जिसके घर में सेंघ लगी उस पर सीबीआई की जांच यह न्याय का गला घोंटना ही है। जांच हो तो पूरे प्रकरण की हो, आधी अधूरी जांच को कम से कम भगवान बदरी केदार की मोक्ष भूमि में कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या मोदी सरकार को लोकसभा में उत्तराखण्ड की 5 सीटों सहित देशभर में 35 से अधिक सीटों पर भारी विजय देने वाले सत्य, न्याय व देश के लिए जीने वाले उत्तराखण्डी जनता पर विश्वास नहीं था या अंध सत्तालोलुपता के लिए कुछ भी करने को उतारू थे। हमारा तो एक ही निवेदन है कि उत्तराखण्ड में छलबल से सरकार बनाने में विफल रही भाजपा की केन्द्र सरकार, अब सीबीआई का दुरप्रयोग कर जनता के जख्मों को न कुरेदने की भूल न करें। उत्तराखण्ड में छल बल से नहीं न्याय व देशप्रेम से ही जीता जा सकता है।
उत्तराखण्ड की जनता किसी भी भ्रष्टाचारी व तानाशाह के दमन व धौंस को एक पल के लिए भी नहीं सहती। वह अन्याय किसी भी व्यक्ति, दल व सरकार का कभी भी स्वीकार नहीं करती है और उचित समय पर करारा जबाब देने से नहीं चूकती है। हरीश रावत जो पहले राज्य बिरोधी रहे जनता द्वारा प्रचण्ड विरोध व बार बार हराने के बाद उनकी आंखे खुली और वे राज्य के पक्षधर हो गये। यही नहीं राज्य गठन आंदोलन के अंतिम दौर में उन्होने न केवल सडकों पर उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन का नेतृत्व किया अपितु उन्होने भी इस आंदोलन में पुलिस की लाठियां भी खाई। चाहे आम जनता की तरह उनका नजरिया भी राजनैतिक लाभ उठाने का रहा हो। क्योंकि राजनेताओं से आम जनता व समर्पित आंदोलनकारियों की तरह निस्वार्थ रूप से आंदोलन करने की आश करना उचित नहीं है। भाजपा को जनता पर विश्वास रखना चाहिए था। जनता ने कई बार हरीश रावत हो या अन्य नेता उनके गलत कामों का सही समय पर जवाब दिया। पर भाजपा नेतृत्व यह समझती है कि तिकडम व दागदार लोगों को आगे करके जनता की आंखों में धूल डाला जा सकता है तो यह उनकी आत्मघाती भूल होगी। भाजपा को जनता पर विश्वास करना चाहिए था, जनादेश का सम्मान करना चाहिए था। जिस समय हरीश रावत की सरकार गिराने की धृष्ठता भाजपा ने की उस समय ऐसा कोई कृत्य हरीश रावत सरकार ने नहीं किया जो संवैधानिक संकट खड़ा किया हो। जनता के दर पर जा कर हरीश रावत सरकार के भ्रष्टाचार या कुशासन पर जनता से जनादेश मांगती तो जनता न्याय करती। परन्तु भाजपा को जनता पर नहीं बहुगुणा व हरक सिंह जैसे नेताओं पर विश्वास करके उत्तराखण्ड जैसे सीमान्त राज्य में राजनैतिक अस्थिरता पैदा की, विकास को अवरूद्ध किया। वह किसी भी कीमत पर विवेकशील समाज में स्वीकार नहीं होता।
उत्तराखण्ड की स्वाभिमानी जनता ने देश की अब तक की सबसे जनप्रिय व मजबूत प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी को भी हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ हुए लोकसभा के उप चुनाव में करारा सबक सिखाया था। उत्तराखण्ड की जनता ने ही सत्तांध हुए प्रधानमंत्री नरसिंह राव व उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के तमाम अमानवीय दमन के आगे न झूक कर उत्तराखण्ड से कांग्रेस व सपा का सफाया किया था। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य गठन का सराहनीय कदम उठाया तो प्रदेश की जनता ने भाजपा को ताज सौंपा। परन्तु जब भाजपा की सरकार ने भी गैरसैंण राजधानी बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड के गुनाहगारों को सजा देने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन सहित प्रदेश के हक हकूकों की रक्षा करने जैसे ज्वलंत मुद्दों पर कांग्रेस की तरह उत्तराखण्ड से विश्वासघात किया तो जनता ने भाजपा को भी सत्ता से बेदखल किया। कांग्रेस ने जब उत्तराखण्ड विरोधी द्वारा मुलायम व राव के उत्तराखण्ड विरोधी कृत्यों को आगे बढ़ाने का कृत्य करने वाले तिवारी को आगे बढ़ा कर निराश किया तो जनता ने उसे भी सबक सिखाया। जब देश की आम मान शान को कांग्रेस के कुशासन में रौंदने का काम हुआ तो प्रदेश की जनता ने मोदी जी का साथ देश को बचाने के लिए दिया।
जनता को जब तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा ने निराश किया तो जनता ने इनको भी सबक सिखाया। परन्तु पहली बार जब गैरसैंण में विधानसभा भवन निर्माण आदि का निर्माण करके राजधानी गठन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने वाले हरीश रावत की सरकार को बिजय बहुगुणा व हरक सिंह जैसे भाजपा द्वारा कुशासक बताये गये नेताओं के सहारे छल प्रपंच से सरकार गिराने का कृत्य किया उसको देश के प्रबुद्ध न्यायप्रिय जनता के साथ न्यायालय ने भी सिरे से नकार दिया। इस करारी मात से सबक लेने के बजाय भाजपा का वर्तमान नेतृत्व फिर इस प्रकरण को कुरेदने का काम सीबीआई द्वारा करने की फिर आत्मघाती भूल कर रही है।
उत्तराखण्ड में जिस छलप्रपंच से भाजपा ने केन्द्र की सत्ता का दुरप्रयोग करके प्रदेश की निर्वाचित सरकार को अपदस्थ करने की कुचैष्टा की उसे लोकशाही व न्याय में विश्वास रखने वाले देश हर जागरूक व्यक्ति के साथ देश की न्यायपालिका ने भी नापसंद किया। सीबीआई सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं का दुरप्रयोग करने के बाबजूद भाजपा, बलात सरकार बर्खास्त करने के महिनों बाद भी सदन में अपने पर्याप्त बहुमत होने के दावे को ही साबित करने में असफल रही। इससे पूरे देश में भाजपा की किरकिरी हुई। क्योंकि निर्वाचित सरकारों को छल प्रपंच से गिराना भी खुद भाजपा की स्वयं घोषित नीति का ही गला घोंटने के समान है।