UTTARAKHAND

उत्तराखंडी परंपरा को जीवंत करता इगास पर्व

कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया था आज के ही दिन से भगवान शिव त्रिपुरारि कहलाये।
भगवान शिव का आभार व्यक्त करने के लिए देवताओं ने देव लोक में दीप जलाकर आनन्दोत्सव मनाया था। कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाने वाली इगास-बग्वाल देव दीपावली के रुप में भी मनायी जाती है।
कमल किशोर डुकलान

देवभूमि मीडिया ब्यूरो। उत्तराखण्डी लोक संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं एवं त्योहारों को मनाने का तरीका बेहद ही अनूठा तरीका है। कहते हैं कि भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया और त्रिपुरारि कहलाये। इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर आनन्दोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनायी जाती है। चूंकि उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। इसलिए उत्तराखंड में देव दीपावली को हम इगास-बग्वाल के नाम से भी जानते हैं। जिसका कि प्रदेशवासी लम्बे समय से बेसब्री से इंतजार करते हैं। 

 दीपावली के ग्यारह दिन बाद पड़ने वाली इगास-बग्वाल को प्रदेशवासी सदियों से चली आ रही अपनी लोक संस्कृति,रीति-रिवाज,परम्पराओं को आगे बढ़ाते हैं।
प्रदेश में देव दीपावली (इगास-बग्वाल) के दिन भैला खेलने का विशेष प्रचलन है। इस दिन गाँव के लोग एक साथ मिलकर भैलो का खेल खेलकर और सामूहिक नृत्य कर अपनी खुशियों को एक दूसरे में बांटते हैं।
भैलो का मतलब एक विशेष प्रकार की रस्सी से है। यह रस्सी पेड़ों की छाल से बनी होती है। बग्वाल के दिन लोग इस रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैला खेलते हैं।यह परंपरा उत्तराखंड के हर कोने में सदियों से चली आ रही है।
इस दिन लोग भैलो खेलने के साथ ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति में भावविभोर हो जाते हैं। लोग विभिन्न समूहों में एकत्रित होकर पारंपरिक थड़िया,चौफला,तांदी,झूमेलौ आदि लोक पारम्परिक गीतों पर नृत्य करते हैं, जिसकी छटा देखते ही बनती है।
उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां की संस्कृति अनेक रंगों से भरी हुई है। यहां की बोली में एक प्रकार की विशेष प्रकार की मिठास है।उत्तराखंड के हर त्योहार को एक अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। इगास-बग्वाल राज्य का एक ऐसा ही त्योहार है जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति,परंपराओं को जीवंत करता है।

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