!!धराली के बाद थराली: असुरक्षित हो गया हिमालय पर रहना!!

!!धराली के बाद थराली: असुरक्षित हो गया हिमालय पर रहना!!
(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)
हिमालय पृथ्वी की सबसे युवा और भूगर्वीय रूप से अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। इसकी खड़ी ढलानें, भूकंपीय गतिविधियां, और ग्लेशियरों की उपस्थिति इसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए स्वाभाविक रूप से संवेदनशील बनाती हैं।…..
उत्तरकाशी के धराली की आपदा में दबे दर्जनों लोंगों की तलाश अभी जारी ही है कि चमोली के धराली में आसमानी आफत से भारी तबाही बन गई है। उत्तरकाशी के ही भागीरथी में बनी अस्थाई झील,उत्तरकाशी जिले के यमुना घाटी के स्यानाचट्टी का बरसाती मलबे से नदी पर बनी विशाल झील आम रोजामर्रा के जनजीवन के लिये नया खतरा पैदा कर दिया हो गया है।
हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड,विशेष रूप से बादल फटने, त्वरित बाढ़, और भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदाओं चपेट में है। पिछले कुछ वर्षों में इन आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है। जिस तरह से राज्य में प्राकृतिक आपदाएं घटित हो रही हैं।
वैज्ञानिक शोधों और प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर यह लेख आपदा के कारणों,प्रभावों और संभावित समाधानों का विश्लेषण करता है।
हिमालय पृथ्वी का एक प्रकार से भूगर्वीय रूप में अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। पृथ्वी की भूकंपीय गतिविधियां, और ग्लेशियरों की उपस्थिति इसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए स्वाभाविक रूप से संवेदनशील बनाती हैं। बरसाती दिनों में अत्याधिक वर्षा,बादल फटना, भूस्खलन होना, त्वरित बाढ़ आने का कारण बनती हैं, बरसाती दिनों में हिमालय की संकुचित वायु प्रवाह प्रणाली और उच्च नमी के कारण अधिक आम हैं।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, क्यूमोलोनिंबस बादल, जो 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचते हैं और वहां से नमी लेकर हिमालयी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश का कारण बनते हैं हैं। केदारनाथ में 2013 की त्रासदी केदारनाथ इसका एक स्पष्ट प्रमाण है। इस आपदा में मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों में आई बाढ़ ने 6,000 लोगों की जान ले ली और हजारों लोग इस आपदा में लापता हुए थे।
उत्तरकाशी की धराली और चमोली की थराली आपदा ने स्थानीय लोगों का जनजीवन को पूरी तरह नष्ट कर दिया। उत्तराखंड के धराली में 5 अगस्त 2025 को बादल फटने और त्वरित बाढ़ ने कई घरों, दुकानों, और वाहनों को मलबे में दबा दिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की सैटेलाइट छवियों से पता चला कि इस आपदा ने नदी के अपने सौ- दो सौ साल पुराने जल प्रवाह के मार्ग में बदल दिया है और 20 हेक्टेयर क्षेत्र में मलबा जमा कर दिया।
जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले कुछ वर्षों में पृथ्वी के औसत तापमान में 0.75 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है,जिससे उत्तरकाशी के धराली और चमोली के थराली में झीलों का तेजी से वाष्पीकरण और ग्लेशियरों का क्षरण हुआ है। यह प्रक्रिया बादल फटने की अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती है, क्योंकि उच्च ऊंचाई वाली झीलें बादलों के सीधे संपर्क में आती हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में भी पिछले आठ वर्षों में 67 बड़ी बादल फटने की घटनाओं ने व्यापक तबाही मचाई है।
चमोली जिले के रैणी गांव में पिछले सन् 2021 में ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़,जो एक हिमनद झील के टूटने के कारण हुई, चमोली जिले की रैणी गांव में हिमनद झाली के टूटने से दो जलविद्युत परियोजनाओं को नष्ट कर दिया था और 200 से अधिक लोग इस आपदा से लापता हो गए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले 2030 तक जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी ग्लेशियर अपनी मात्रा का 30-50% खो सकते हैं, जिससे ऐसी आपदाओं का खतरा आने वाले समय में और बढ़ेगा।
वर्तमान समय में जिस तरह से भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए जंगलों की कटाई, अनियोजित निर्माण, और बांधों का निर्माण आदि मानवीय गतिविधियां हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं की तीव्रता को बढ़ा रही हैं। जंगलों की कटाई से मिट्टी की जल धारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे इन क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ता है। 5 अगस्त की उत्तरकाशी के धराली में आई त्वरित बाढ़ ने लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र में मलबा जमा हो गया था, जिसका कारण अनियंत्रित निर्माण और वन कटाई को माना जा रहा है।
उत्तरकाशी के धराली ,स्यानाचट्टी और चमोली के थराली में भागीरथी,यमुना और अस्थाई झीलों का निर्माण होना देखा गया है। ऐसे क्षेत्रों में अनियोजित बुनियादी ढांचे के कारण मलबे के जमा होने से हुआ। ये झीलें न केवल जनजीवन के लिए खतरा भी पैदा करती हैं, बल्कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित भी करती हैं, जिससे बरसाती दिनों में बाढ़ का जोखिम बढ़ता जाता है।
इसके अलावा, जलविद्युत परियोजनाओं और सड़क निर्माण के लिए पहाड़ों की अंधाधुंध खुदाई ने भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ावा दिया है। बद्रीनाथ-माणा मार्ग पर बार-बार होने वाले भूस्खलन अनियोजित सड़क निर्माण का ही परिणाम हैं।
उत्तरकाशी, धराली (5 अगस्त 2025): इस क्षेत्र में बादल फटने और त्वरित बाढ़ ने कई घरों, दुकानों, और वाहनों को मलबे में दबा दिया। आपदा प्रबंधन टीमें अभी भी मलबे में फंसे लोगों की तलाश कर रही हैं। इस आपदा ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को गहरा झटका दिया, क्योंकि धराली और हर्षिल पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
चमोली, थराली (22-23 अगस्त 2025): चमोली जिले के थराली तहसील में रात 1:00-1:30 बजे बादल फटने से पिंडर और प्रणमति नदियां उफान पर आ गईं। कई वाहन और दो घर मलबे में दब गए,दो लोगों के लापता होने का समाचार भी मिल रहा है। स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं ने राहत और बचाव कार्य शुरू किए हैं,लेकिन सड़कों के क्षतिग्रस्त होने से बचाव कार्यों में बाधा आई।
पौड़ी गढ़वाल (6 अगस्त 2025): पौड़ी जिले के कई गांवों में भारी बारिश और भूस्खलन ने सड़कों और घरों को नष्ट कर दिया। कई लोग लापता हो गए, और राहत कार्यों में देरी के कारण स्थानीय लोगों में आक्रोश देखा गया।
हिमालयी क्षेत्र में बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं ने आपदा प्रबंधन तंत्र की कमियों को उजागर तो किया ही है साथ ही राज्य के सीमित संसाधन,अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, और दूरस्थ के क्षेत्रों में पहुंच की कमी ने राहत कार्यों को जटिल बनाया है। स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, लेकिन ये अपर्याप्त हैं। किश्तवाड़ में स्थापित कंट्रोल रूम और हेल्प डेस्क ने त्वरित कार्रवाई में मदद की, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं सभी प्रभावित क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, सड़क और जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन में पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हिमालयी समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करना और स्थानीय स्तर पर राहत केंद्र स्थापित करना आवश्यक है। स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। किश्तवाड़ में स्थापित कंट्रोल रूम और हेल्प डेस्क इसका एक उदाहरण हैं।
ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता है। हिमनद झीलों के प्रबंधन के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए, जैसे कि जल निकासी प्रणालियों का निर्माण और ग्लेशियर निगरानी। जंगलों को बचाने और पुनर्जनन के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए प्राकृतिक अवरोधक, जैसे कि वनस्पति और चट्टानों का उपयोग, बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने,त्वरित बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम है। उत्तरकाशी,चमोली जैसे क्षेत्रों में हाल की घटनाएं इस क्षेत्र के निवासियों के समक्ष अस्तित्व के संकट को दर्शाती हैं। वैज्ञानिक शोध, उन्नत तकनीक, और सतत विकास नीतियों के माध्यम से इन आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
नीति-निर्माताओं,वैज्ञानिकों, और समुदायों को एकजुट होकर इस चुनौती का सामना करना होगा ताकि हिमालयी क्षेत्र की जैव-विविधता और जनजीवन को सुरक्षित रखा जा सके। सरकार को तत्काल कार्रवाई करनी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके और हिमालयवासियों का जीवन सुरक्षित हो सके।
ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर, सुमन नगर, बहादराबाद (हरिद्वार)