उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद: घिंघारू

डॉ. राजेन्द्र डोभाल
प्राचीन काल से ही जंगली उत्पाद/पेड़ -पौधे पौष्टीकता तथा औषधीय का एक बडा स्रोत रहे हैं और उत्तराखण्ड प्रदेश तो खुद में ही जैव विविधता का भण्डार है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड में पाये जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है जिसे घिंघारू के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Pyracantha crenulata है तथा रोजेसी कुल से संबंध रखता है। Pyracantha crenulata को Crataegus crenulata के नाम से भी जाना जाता है। सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्रों में घिंघारू 800 से 2500 मी0 की ऊॅचाई तक पाया जाता है। सामान्यतः घिंघारू को हिमालयन रेड बेरी के नाम से भी जाना जाता है और यह प्राकृतिक रूप से बंज़र, पथरीली भूमि पर झाडीनुमा उगने वाला बहुवर्षिय पौधा है जिसका फल पकने पर संतरे की तरह लाल हो जाता है। Spectrum, 2010 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार घिंघारू में सूखा सहन करने की भी अदभुत क्षमता होती है। यह विभिन्न तापमान 0-35 डिग्री सेंटीग्रेड तक आसानी से रह जाता है।
पारंपरिक रूप से घिंघारू का फल पौष्टिक एवं औषधीय गुणो से भरपूर होता है तथा कई बिमारियों के निवारण जैसे- ह्दय संबंधी विकार, हाइपर टेन्शन, मधुमेह, रक्तचाप तथा इसकी पत्तियां एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइन्फलामेट्री गुणों से भरपूर होती है जिसके कारण हर्बल चाय के रूप में भी बहुतायत प्रयुक्त होती है। एंटी आक्सीडेंट, न्यूट्रास्यूटिकल, खनिज लवण, विटामिन, प्री-बायोटीक्स, प्रो-बायोटिक्स महत्वपूर्ण गुणों से भरपूर होता है। घिंघारू के फल में विद्यमान Flavonoids तथा Glycosides की वजह से बेहतरीन anti – inflamatory गुण पाये जाते है।
यद्यपि घिंघारू का फल खाने में बहुत स्वादिष्ट तो नहीं होता फिर भी इसकी पौष्टीक एवं औषधीय महत्व की वजह एक बेहतर फलो की श्रेणी में आंका जाता है। इसके औषधीय गुणों के कारण ही घिंघारू को cardio-tonic का नाम दिया गया है तथा रक्तचाप को सुचारू करने के साथ-साथ रक्त से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी कम कर देता है। इन्ही औषधीय गुणों के कारण Defence Institute of bioenergy Research field station, Pithoagarh द्वारा घिंघारू से ’ह्दय अमृत’ नामक औषधीय तैयार की गयी है। जिसका शाब्दिक अर्थ ही इसकी महत्व को जाहिर करता है कि यह हृदय के लिये अमृत के समान है। एक वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार यदि घिंघारू की पत्तियों को गिगों (Gingkago biloba) के साथ सेवन किया जाय तो यह दिमाग में रक्त प्रवाह को सुचारू कर स्मरण शक्ति को बढाने में सहायक होता है।
कई वैज्ञानिक अध्ययनों में पश्चिमी हर्बलिस्ट ने यह माना है कि घिंघारू में मौजूद bioflvonoids की वजह से यह ह्दय में रक्त संचार को सुचारू करने में सहायक होता है तथा रक्त वाहिनियों को नष्ट होने से भी बचाता है।
यदि घिंघारू के फल की पौष्टिकता की बात की जाय तो एक वैज्ञानिक अध्ययन में बताया गया है कि घिघांरू के 500 ग्राम फल में वो सभी पौष्टीक तत्व विद्यमान रहते है जो एक व्यक्ति को एक दिन में आवश्यक होते है। इसमें प्रोटीन-5.13 प्रतिशत, वसा-1.0, फाइबर- 7.4, कार्बोहाइड्रेट-24.98 प्रतिशत तथा विटामिन-C 57.8 मि0ग्रा0, विटामिन A -289.6 IU, विटामिन B12- 110 माइक्रो ग्रा0, विटामिन E- 289 मि0ग्रा0, कैल्शियम 37.0 मि0ग्रा०, पोटेशियम 13.9 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्रा0 तक पाये जाते है।
यद्यपि उत्तराखण्ड में घिंघारू को जंगली फल के रूप में खाया जाता है तथा वैद्यों द्वारा पारम्परिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार विभिन्न रोगों के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है किंतु वर्तमान में वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार घिंघारू में हाइपर टेंशन के इलाज तथा हृदय संबंधी विकार के निवारण के लिये अदभुत क्षमता पाई जाती है। 1800 शताब्दी में ही अमेरिकन डाक्टर द्वारा घिघारू को Circulatory disorder तथा Cardic disorder के निवारण के लिये पहचान लिया गया था।
यदि उत्तराखण्ड में भी घिंघारू से संबंधित अन्य पौष्टिक उत्पादों एवं औषधीय गुणों हेतु मुख्यता हृदय संबंधी विकार के लिए विस्तृत अध्ययन किया जाय तो यह प्रदेश में व्यावसायिक रूप ले सकता है जो विश्वभर में प्रदेश को एक अलग पहचान दिला सकता है।
डॉ. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखण्ड।