TOURISM

प्रवासी परिंदे अब लौटने लगे अपने वतन

देहरादून : तापमान बढ़ने के कारण देश के पहले कंजरवेशन रिजर्व आसन वेटलैंड में प्रवास पर आए परिंदे अपने देश लौटने लगे हैं। इसके चलते 20 में से तीन प्रजातियों के परिदों की संख्या काफी कम हो गई है। विधिवत गणना में नमभूमि क्षेत्र में 4589 परिंदे आंके गए थे।

चकराता वन प्रभाग की लोकल गणना में वर्तमान में करीब 3000 परिंदे ही दिख रहे हैं। वैसे तो नमभूमि क्षेत्र में अक्टूबर में परिंदे प्रवास के लिए आने शुरू हो जाते हैं और मार्च अंत तक सभी परिंदे अपने देश को वापस लौट जाते हैं। सबसे बाद में रुडी शेलडक यानि सुर्खाब लौटता है। इस बार पक्षी विशेषज्ञों की ओर से की गई विधिवत गणना में आसन नमभूमि क्षेत्र में 4589 परिंदे आंके गए थे, जो अब घट गए हैं।

मौसम का मिजाज बदलने के साथ ही दिन का तापमान बढ़ने से कॉमन कूट, रेड क्रिस्टड पोचार्ड, कामन पोचार्ड प्रजातियों के परिंदों की संख्या रोज कम हो रही है। यह भी पढ़ें: बरसात के साथ घोंसलों से झांकने लगे हैं नन्हें परिदे, बर्ड लवर्स की मौज चकराता वन प्रभाग की गणना में प्रवासी परिंदों की संख्या तीन हजार के करीब आंकी गई। प्रवास पर आए कॉमन पोचार्ड, रुडी शेलडक यानि सुर्खाब, ब्लैक विंग्ड स्टिल, कॉमन कूट, मैलार्ड, गैडवाल, ग्रे हेरोन, बार हेडेड गीज, लिटिल ग्रेब, स्पॉट बिलडक, पर्पल स्वैप हेन, किंगफिशर, कॉमन मोरहेन, इंडियन कोरमोरेंट, ग्रेट कोरमोरेंट, नार्दन पिनटेल, इरोशियन विजन, ग्रे लेगगीज, रेड कैप्टड आइबीज आदि 20 प्रजातियों के परिंदे फिलहाल प्रवास पर हैं।

चकराता वन प्रभाग के बीट अधिकारी प्रदीप सक्सेना के मुताबिक दिन का तापमान बढ़ने का असर परिंदों के प्रवास पर पड़ रहा है। इसके चलते कई प्रजातियों के परिंदों की संख्या कम हो गई है। प्रवासी परिंदों की कई प्रजातियों का अपने देश लौटने का क्रम शुरू हो गया है, जो मार्च अंत तक चलेगा।

वहीँ हिमालयन माउंटेन क्वेल (पहाड़ी बटेर) जो आज से 140 साल पहले मसूरी के झड़ीपानी व सुवाखोली में देखा गया था। इसकी तलाश में देशभर से बर्ड वॉचर अक्सर मसूरी का रुख करते हैं, पर इसका दीदार अब तक नहीं हो पाया है। हालांकि, पक्षी प्रेमियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है।

एक ज़माने में देहरादून से मसूरी जाने के लिए राजपुर से लेकर झड़ीपानी पैदल ट्रैक सबसे अहम था। प्राकृतिक नजारों के बीच जंगल से गुजरने वाला यह रास्ता आज भी प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र है। इस क्षेत्र में 120 प्रजातियों के परिंदों का खूबसूरत संसार बसता है।

इनमें से 90 तो अकेले राजपुर क्षेत्र में ही चिह्नित की गई हैं। झड़ीपानी इसलिए भी अहम है कि 19वीं सदी में यहां हिमालयन माउंटेन क्वेल भी देखी गई थी। रविवार की नेचर वॉक के दौरान होने वाली बर्ड वाचिंग में यह पहाड़ी बटेर भी उत्सुकता के केंद्र में रही।

2009 से हिमालयन माउंटेन क्वेल की ढूंढ में जुटी संस्था एक्शन एंड रिसर्च फॉर कंजर्वेशन इन हिमालयन (आर्क) के संस्थापक सदस्य प्रतीक पंवार कहते हैं कि यह परिंदा सिर्फ मसूरी और नैनीताल में ही देखा गया था। इसकी खोज के लिए आर्क अब नए सिरे से रणनीति तैयार कर रहा है।

वहीं, अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) डॉ. धनंजय मोहन बताते हैं कि भले ही मसूरी में 1876 के बाद हिमालयन माउंटेन क्वेल न दिखी हो, लेकिन उम्मीद अभी नहीं छोड़ी गई है। कोशिशें जारी हैं। साथ ही उन कारणों की भी गहनता से पड़ताल की जा रही है, जिनकी वजह से यह पक्षी गायब हुआ है।

devbhoomimedia

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