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एयर पोल्यूशन के ‘A Town Hall On Air Pollution’ में मिले कई सल्यूशन

Climate Resilient Maharashtra
Environment पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाले पहलुओं पर समावेशी और सार्थक विचार विमर्श
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
टाउन हॉल कार्यक्रम के माध्यम से आयोजित Climate Resilient Maharashtra (जलवायु के लिहाज से सतत महाराष्ट्र) का उद्देश्य आम नागरिकों, सरकारी इकाइयों, गैर सरकारी संगठनों और शोधकर्ताओं समेत विभिन्न हितधारकों के बीच एक आंदोलन खड़ा करने का है। इन सभी हितधारकों ने मंगलवार 2 मार्च 2021 को आयोजित इस वर्चुअल कार्यक्रम में environment पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाले पहलुओं पर समावेशी और सार्थक विचार विमर्श की अगुवाई की। इसका उद्देश्य केंद्रित सिफारिशों के जरिए एक सतत कार्य योजना तैयार कर जलवायु के प्रति विमर्श को और मजबूत करना भी है।
टाउन हॉल का आयोजन परपज़, असर और Climate Trends के समूह क्लाइमेट वॉयसेस ने किया है। इसका उद्देश्य लोगों को साथ लेकर वायु की गुणवत्ताम के बारे में चर्चा करना और समाधान निकालना है। इसमें महाराष्ट्र के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की पहल माझी वसुंधरा (माई अर्थ अभियान) भी साथ है। ‘A Town Hall On Air Pollution’ एक अनौपचारिक जनसभा है जिसमें हितों के ऐसे साझा विषय शामिल किए गये, जो उभरते हुए मुद्दों के बारे में नागरिकों को जानकारी देने के लिहाज से महत्वपूर्ण माध्यम का काम करते हैं। इस विचार-विमर्श से यह अंदाजा लगाने में मदद मिली कि सुनिश्चित विषयों पर हमारा समुदाय कहां खड़ा है। साथ ही इस कवायद से प्रमुख मुद्दों पर क्रियान्वित किए जाने वाले समाधान की पहचान करने और उनके बारे में सुझाव देने का मंच भी मिला।
इस ऑनलाइन सभा में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों और नागरिकों ने महाराष्ट्र के नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के समाधान, प्रदूषण मुक्त अर्थव्यवस्था के निर्माण, बहुमूल्य पारिस्थितिकी संसाधनों के संरक्षण वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक पर्यावरण को सुरक्षित रखने आदि पर सरकारी तथा आम नागरिकों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में भी विचार-विमर्श किया।
इस कवायद के जरिए हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने की राज्य सरकार की जलवायु संबंधी योजना के लिए स्पष्ट सिफारिशों और मौजूदा महत्वपूर्ण जानकारियों का एक स्पष्ट खाका पेश किया गया। साथ ही इसके माध्यम से आम जनता के बीच इसके संदेश को बेहतर तरीके से पहुंचाने, समाचार मीडिया कवरेज कराने तथा सरकार और नागरिकों दोनों के ही द्वारा स्थानीय स्तर पर पैरोकारी (एडवोकेसी) संबंधी प्रयासों को जमीन पर उतारने की कोशिश भी की गई।
महाराष्ट्र ने वायु प्रदूषण का संकट एक राज्यव्यापी समस्या :Climate Trends
Climate Trends की निदेशक आरती खोसला ने महाराष्ट्र सरकार और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की साथ-साथ चलती भूमिकाओं के बारे में एक प्रस्तुतीकरण देते हुए आयोजनकर्ताओं का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र ने वायु प्रदूषण का संकट एक राज्यव्यापी समस्या है। वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों के मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर था। ग्रेटर मुंबई में लघु, मंझोले तथा भारी उद्योग पीएम 2.5 का प्रमुख स्रोत हैं। कोयले पर अत्यधिक निर्भरता इसका एक बहुत बड़ा कारण है। नागपुर जिले में 63% औद्योगिक इकाइयां जहरीले प्रदूषण का स्त्रोत हैं। परिवहन क्षेत्र भी पूरे राज्य में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
बड़े शहरों के लिए प्रदूषण नियंत्रण की अलग से योजनाएं बनाई जानी चाहिए : आरती खोसला
उन्होंने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सुझाव देते हुए कहा कि अधिक प्रदूषण बड़े शहरों के लिए प्रदूषण नियंत्रण की अलग से योजनाएं बनाई जानी चाहिए। प्रदूषण की मार झेल रहे क्षेत्रों की पहचान कर उनकी समस्या का समाधान किया जाना चाहिये और कृषि, पर्यटन तथा आतिथ्यर के क्षेत्रों में सरकार तथा उद्योग के बीच संवाद स्थापित किया जाना चाहिये। लैंडफिल मैनेजमेंट के लिए तकनीक का सहारा लिया जाए तथा नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की योजना तथा उसके क्रियान्वयन के स्तर पर आम नागरिकों की भी सहभागिता सुनिश्चित की जाए।
राज्य सरकार जलवायु परिवर्तन, क्लाइमेट रेसिलियंस तथा Climate Action के प्रति बहुत गंभीर : प्रमुख सचिव मनीषा म्हाइसकर
महाराष्ट्र के Department of Environment and Climate Change की प्रमुख सचिव मनीषा म्हाइसकर ने टाउन हॉल और राज्य के क्लाइमेट एक्शन प्लान के लिहाज से इसके क्या मायने हैं, इस बारे में कहा कि राज्य सरकार जलवायु परिवर्तन, क्लाइमेट रेसिलियंस तथा Climate Action के प्रति बहुत गंभीर है। अगर हम 2020 में जाएं तो हमने कोरोना महामारी के बीच माझी वसुंधरा अभियान का गठन किया। हम सभी का मानना है कि 2020 से शुरू हुआ यह दशक वह जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिहाज से आखिरी दशक है। उसके बाद बहुत देर हो जाएगी। पूरी दुनिया से उठ रही आवाजें कह रही हैं कि यह महामारी जलवायु परिवर्तन का परिणाम थी। कोविड-19 वायरस एक जूनोटिक वायरस है जो जानवरों से इंसान में पहुंचा है। ऐसा इसलिये सम्भथव हुआ क्योंकि हमने जंगली जानवरों के निवास स्थानों पर कब्जा कर लिया।
उन्होंने कहा ‘‘जहां तक वायु प्रदूषण का सवाल है तो मैं कहूंगी कि यह 21वीं सदी में एक खतरनाक रूप ले चुका है। Covid-19, Zika, Ebola all zoonotic viruses है और यह जानवरों से इंसान में दाखिल हुए लेकिन हमने इन संकेतों को गंभीरता से नहीं लिया। माझी वसुंधरा में हम विश्वास करते हैं कि क्लाइमेट एक्शन में हर किसी को साझीदार बनना होगा। बहुत से लोग अपने हिस्से की भूमिका निभाना चाहते हैं। माझी वसुंधरा के तहत पहला कदम उठाते हुए हमने लगभग 700 बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों और गांवों को भी साथ लिया है। दूसरी पहल के तहत 18 लाख लोगों को ई-प्रतिज्ञा दिलायी है, क्योंकि हर व्यक्ति फर्क पैदा कर सकता है। हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में भी अपनी छोटी-छोटी आदतों को बदलकर पर्यावरण का संरक्षण करने में योगदान कर सकते हैं। मांझी वसुंधरा की टीम ई-प्रतिज्ञा लेने वाले सभी लोगों को साथ लाकर उनके प्रतिज्ञा को पूरा करने की प्रक्रिया पर काम कर रही है।’’
उन्होंने कहा ‘‘तीसरी पहल हमारी यह है कि माझी वसुंधरा पाठ्यक्रम शुरू किया जाए। अगर महाराष्ट्र के स्कूलों में शुरुआत में ही पाठ्यक्रम में प्रदूषणमुक्त क्रियाकलापों के बारे में पढ़ाया जाएगा तो बच्चे उन्हें अपने जीवन में उतारेंगे।’’
वातावरण फाउंडेशन के संस्थापक भगवान केस भट्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वायु प्रदूषण आखिर क्यों महाराष्ट्र के नागरिकों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
वातावरण फाउंडेशन के संस्थापक भगवान केस भट्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वायु प्रदूषण आखिर क्यों महाराष्ट्र के नागरिकों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
Green Planet सोसायटी चंद्रपुर के योगेश दुधपचारे ने चंद्रपुर की वायु की गुणवत्ता पर थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्वों के प्रभाव और उनके समाधान के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि चंद्रपुर में जब थर्मल पावर प्लांट लगा था उस वक्त इसे तरक्की का प्रतीक माना गया था लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसकी वजह से प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से बढ़ा है। यहां का आसमान प्रदूषण के इन स्तरों की गवाही देता है। वर्ष 2008 में जन सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि जब कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो उसका धुआं नजर आता है लेकिन कोई भी व्यक्ति आसमान की तरफ नहीं देखता जहां पर बिजली संयंत्र से निकल रहा धुआ तैर रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक चंद्रपुर में पीएम2.5 का चरमस्त र 1700 पर पहुंच गया था।
उन्होंने कहा ‘‘चंद्रपुर पर्यावरण संबंधी गंभीर स्थिति से गुजर रहा है। इसकी वजह से आंखों में जलन, दमा और त्वचा संबंधी बीमारियां पैदा हो रही हैं हालात बता रहे हैं कि चंद्रपुर की स्थिति दुनिया के प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में है। यहां जल प्रदूषण और मृदा प्रदूषण की स्थिति भी ठीक नहीं है।’’
वायु प्रदूषण चाहे किसी भी तरह से हो, मगर सबसे पहले हम शिकार बनते हैं : फ्रेडरिक डिएसा
मुम्बई रिक्शा चालक यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष फ्रेडरिक डिएसा ने ऑटो तथा टैक्सी चालकों की सेहत पर वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण के प्रभाव के बारे में कहा कि वर्ष 2005 में महाराष्ट्र के टैक्सी और रिक्शा चालकों ने अपने रिक्शा और टैक्सीे को सीएनजी में तब्दील करने पर कुल 700 करोड़ रुपये खर्च किये। अगर ऐसा नहीं करते तो वे रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो जाता। महाराष्ट्र में इस वक्त 35 से 40 लाख लोग रिक्शा और टैक्सी के जरिए जीवन यापन करते हैं लेकिन हम लोगों की दुर्दशा ऐसी है कि कि वायु प्रदूषण चाहे किसी भी तरह से हो, मगर सबसे पहले हम शिकार बन जाते हैं। इसके बाद हम लोगों की जिंदगी बहुत मुश्किल हो जाती है जिसे बयान करना बहुत मुश्किल है।
उन्होंने कहा ‘‘हम लोगों ने सरकार के सामने अपनी परेशानी रखी है लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है और पता नहीं आगे क्या होगा। हम लोग दिन भर लगभग 12 घंटे रोड पर अपनी जिंदगी बिताते हैं। मुंबई का यह हाल है कि टैक्सील और ऑटो रिक्शा1चालक 15 से 20 सिगरेट के बराबर धुआं अपने फेफड़ों में लेता है। सरकार को हमारी समस्या ओं पर ध्यान देना चाहिये।’’
औद्योगिक क्षेत्रों और रिहायशी इलाकों के बीच सुरक्षा के लिहाज से एक दूरी होनी चाहिए : बिलाल खान
घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन से जुड़े बिलाल खान ने महाराष्ट्र के माहौल में रहने वाले लोगों पर औद्योगिक कारखानों से निकलने वाले प्रदूषण के असर तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से जुड़े मामले पर अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि माहौल एक बहुत अनोखा मामला है। यह बेहद कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठिभूमि वाला इलाका है। यहां दो बड़ी रिफाइनरी के उत्सर्जन के कारण आबादी पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है। यह इलाका अब लोगों के रहने लायक नहीं रह गया है। वर्ष 1987 में एस. सी. मेहता केस मेहता मामले की उच्चनतम न्यायालय में सुनवाई हुई थी। तब कोर्ट ने कहा था कि औद्योगिक क्षेत्रों और रिहायशी इलाकों के बीच सुरक्षा के लिहाज से एक दूरी होनी चाहिए लेकिन अभी तक इस बारे में कोई भी नीति नहीं बनाई गई है। बाद में एनजीटी ने भी इस विषय पर बहुत विस्तार से गौर किया और महाराष्ट्र सरकार को विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के निर्देश दिए, मगर इस दिशा में भी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण के संकट के लिए अलग से बजट आवंटित : अनुमिता रॉय चौधरी
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की अधिशासी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने ऐसे 10 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का जिक्र किया जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण के संकट के लिए अलग से बजट आवंटित किया गया है। यह एक अच्छा कदम है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2021-22 के आम बजट में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए महाराष्ट्र को 793 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इनमें मुंबई को 488 करोड़, पुणे को 134 करोड़, नागपुर को 66 करोड़, नासिक को 41 करोड़ और औरंगाबाद तथा वसई-विरार को 32-32 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। मगर महाराष्ट्र के बाकी 13 नॉन अटेनमेंट शहरों को अपने-अपने यहां वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए बहुत कम रुपए दिए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के अमरावती, कोल्हापुर, नागपुर और सांगली जिलों को वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र से नहीं जोड़ा गया है जबकि रियल टाइम मॉनिटरिंग ग्रिड का विस्तार किया जाना चाहिए। इसके अलावा ग्रामीण तथा उपनगरीय इलाकों में वायु की गुणवत्ता की निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण की स्थिति सुधारने के लिए प्रदूषण रहित ईंधन और प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा, परिवहन व्यवस्था के स्वरूप में आमूलचूल बदलाव करना होगा, ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन की व्यवस्था मैं भी बुनियादी बदलाव करने होंगे। साथ ही प्रदूषण नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदमों के पैमाने और गति को भी बढ़ाना होगा। इसके अलावा वर्ष 2022 तक सभी नए थर्मल पावर प्लांट में प्रदूषण नियंत्रण संबंधी मानकों को सख्ती से लागू कराया जाना चाहिए। साथ ही साथ प्रदूषण नियंत्रण संबंधी मानकों को लागू करने के लिए संयंत्रवार कार्य योजना लागू करनी होगी।
परिवहन व्यवस्था के विद्युतीकरण पर जोर देते हुए अनुमिता ने कहा के सार्वजनिक परिवहन की बसों के बेड़े में बैटरी से चलने वाली नई बसें शामिल किए जाने को बढ़ावा देना चाहिए। साथ ही वाहनों के विद्युतीकरण के लिए समय बाद लक्ष्य तय किए जाने चाहिए। इसके अलावा वर्ग वार तथा शहरवार योजना बनाकर दोपहिया वाहनों, बसों तथा माल वाहनों का विद्युतीकरण किया जाना चाहिए। स्रोत के स्तर पर कूड़े के पृथक्करण की व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए। खुले में कूड़ा जलाने वालों पर जुर्माने के प्रावधान किए जाने चाहिए।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वॉकिंग और साइक्लिंग को बढ़ावा देना चाहिए :सरत गुट्टीकुंडा
Urban Emissions के संस्थापक सरत गुट्टीकुंडा ने महाराष्ट्र की हवा को प्रदूषित कर रहे तत्वों का जिक्र करते हुए कहा कि हम विभिन्न विचार विमर्श और वेबिनार में नई चीजों को करने पर जोर दिया जाता है लेकिन यह जरूरी है कि हम मूलभूत चीजों पर पहले काम करें। हमें हमारे पास जो भी मौजूद है उसे आगे बढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं है। हमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वॉकिंग और साइक्लिंग को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वाहनों से निकलने वाले धुएं और सड़कों पर उड़ने वाली धूल को कम किया जा सके। इसके अलावा खाना पकाने, ऊष्मा और लाइटिंग के लिए प्रदूषण मुक्त ईंधन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। खुले में कचरा जलाने से रोकने के लिए कचरे का प्रबंधन किया जाना चाहिए। निर्माण स्थहलों तथा सभी औद्योगिक स्थलों पर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन के नियमन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। प्रदूषण की आशंका वाले हर क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। कागज पर तो हमारी तैयारी बहुत पक्की दिखती है लेकिन उसे जमीन पर उतारने के मामले में हम बहुत पीछे हैं।
वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में विचार-विमर्श के लिए एक समिति गठित : सुधीर श्रीवास्तव
Maharashtra Pollution Control Board के अध्यक्ष सुधीर श्रीवास्तव ने राज्य में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रदेश की कार्य योजना पर रोशनी डालते हुए कहा कि हर वैज्ञानिक कहता है कि आप जिस चीज को नाप नहीं सकते उसे आप जान नहीं सकते। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का नेटवर्क बढ़ रहा है। रेगुलेटरी एनालाइजर्स बहुत महंगे हैं। हमें स्थानीय स्तर पर निर्मित सेंसर की जरूरत है मगर उनके भरोसेमंद होने को लेकर कुछ समस्या है। हम इसका हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। हम सभी सोर्स अपॉर्शनमेंट पर ध्यान दे रहे हैं लेकिन रिसेप्टर स्तलरीय प्रदूषण पर भी ध्यान देने की जरूरत है। जब हम सोर्स अपॉर्शनमेंट पर देखते हैं तो पाते हैं कि खासतौर पर पावर प्लांट की वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। हम सभी जानते हैं कि प्रदूषण के स्रोत क्या हैं। जहां तक गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का सवाल है तो हम मानते हैं कि इस दिशा में काफी प्रगति हुई है। हम इस मसले पर परिवहन विभाग के सम्पर्क में हैं। हम वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में विचार-विमर्श के लिए एक समिति गठित कर चुके हैं।
श्रीवास्तभव के सहयोगी डॉक्टमर वी. एम. मोटघरे ने कहा कि महाराष्ट्र के 18 जिले नॉन अटेनमेंट शहरों में शामिल हैं। महाराष्ट्र नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को लेकर काफी गंभीर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए 42 कदम सुझाए थे। उन पर काम किया जा रहा है। महाराष्ट्र के लिए ई-वाहन नीति बनाने का काम अंतिम चरण में है। मुंबई में मॉनिटरिंग नेटवर्क को मजबूत किया जा रहा है। सड़कों से उड़ने उड़ने वाली धूल की समस्या का समाधान किया जा रहा है। इसके अलावा ईंधन में सल्फर की मात्रा कम की जा रही है। होटल उद्योग में प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल पर काम किया जा रहा है, वाहनों से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित किया जा रहा है और कचरे तथा बायोमास को गलत जगह पर फेंकने और जलाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
ढाई-ढाई किलोमीटर या 5-5 किलोमीटर के क्षेत्र में वर्गीकरण करके यह देखना होगा कि प्रदूषण का स्त्रोत है कहां : NIRI निदेशक
NIRI के निदेशक डॉक्टयर राकेश कुमार ने महाराष्ट्र के प्रमुख नगरों में वायु प्रदूषण के भार से जुड़े अध्ययनों और सोर्स अपॉर्शनमेंट स्टडी के तथ्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अब कुछ नहीं हो सकता हमारा। भारत बहुत घनी आबादी वाला देश है। मौतों के जो आंकड़े सामने आते हैं, वे काफी जटिल होते हैं। हम देखें तो 80 और 90 के दशक में मुंबई को गैस चैंबर माना जाता था लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान हालात में काफी सुधार हुआ है। मुंबई में स्थित पावर प्लांट सबसे दक्ष संयंत्रों में गिने जाते हैं। चंद्रपुर की बात करें तो पानी की कमी की वजह से वहां का पावर प्लांट 4 महीने बंद रहा लेकिन फिर भी वहां की हवा की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं हुआ। इस बात पर चर्चा होनी चाहिए कि प्रदूषण कहां से आ रहा है। हम प्रशासनिक सीमाओं में रहकर प्रदूषण का हल नहीं निकाल सकते। अगर हमें कामयाब होना है तो बहुत छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे। हमें ढाई-ढाई किलोमीटर या 5-5 किलोमीटर के क्षेत्र में वर्गीकरण करके यह देखना होगा कि प्रदूषण का स्त्रोत कहां पर है। अगर यह काम किया गया तो संबंधित क्षेत्रों के लोगों के अंदर विश्वास बढ़ेगा और वे समस्या के प्रति अधिक गंभीर होंगे।
फेफड़ों में संक्रमण और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी) वायु प्रदूषण का नतीजा : डॉक्टयर संदीप सालवी
Palamocare Research and Education Foundation के निदेशक डॉक्टयर संदीप सालवी ने महाराष्ट्र की जनता की सेहत पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान ध्यान दिया जाना शुरू किया गया है। The Global Burden of Disease Study 2017 से इस बात को बहुत शिद्दत से महसूस किया गया कि वायु प्रदूषण के कारण हमारी सेहत पर क्या असर पड़ता है। कुछ बीमारियां वायु प्रदूषण के साथ बहुत गहरे से जुड़ी हैं। फेफड़ों में संक्रमण और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी) वायु प्रदूषण का नतीजा है। पहली बार यह समझ पैदा हुई कि वायु प्रदूषण और विभिन्न बीमारियों के बीच क्या संबंध है। वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली वाली बीमारियों से निपटने के लिए स्वाीस्य् ह सम्बणन्धीो ढांचे को ठीक करना होगा।
उन्होंने कहा कि डॉक्टर के पास रोजाना जाने वाले एक दिन के बच्चेब से लेकर 60 साल तक के बुजुर्गों तक 50% मरीज सांस से संबंधित बीमारी से ग्रस्त होते हैं। भारत में घर के अंदर का वायु प्रदूषण भी उतनी ही बड़ी समस्या है। भारत के विभिन्न इलाकों में पराली, उपले और कंडे तथा लकड़ी जलाये जाने से रोजाना खाना बनाने वाली महिला 25 सिगरेट के बराबर धुआं अपने फेफड़ों में लेने को मजबूत होती है। इसी तरह से मच्छर अगरबत्ती 100 सिगरेट के बराबर पीएम2.5 उत्सनर्जित करती है। इसके अलावा धूपबत्ती 500 सिगरेट के बराबर धुआं छोड़ती है। पटाखे भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में बहुत योगदान करते हैं। इनडोर एयर पॉल्यूशन को दूर करने के लिए खिड़की और दरवाजे खोलने का बहुत महत्व है।
डॉक्टर साल्वीम ने कहा कि The Global Burden of Disease Study 2019 के मुताबिक वायु प्रदूषण से संबंधित असामयिक मौतों के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष 280000 करोड रुपए है, जबकि महाराष्ट्र में यह 33000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष है।